कुदरत का खेल निराला है, कुदरत का खेल निराला है ।
कोइ गोरा है कोई काला है, कुदरत का खेल निराला है ॥
कोइ बाहर लडने वाला है, पर घर मे डरने वाला है ।
कोइ बाहर डरने वाला है, पर घर मे लडने वाला है ॥
कोई झील का पानी पीता है, कोई नमक चाट कर जीता है ।
कोई फ्रिज का पानी पीता है, कोई बोतल व्हिसकी पीता है ॥
कोई बडा ही किस्मत वाला है ड्योढी पर पक्का नाला है ।
कुदरत का खेल निराला है, कुदरत का खेल निराला है ।
कोइ कालीन गलीचे सोता है, दाने दाने को होता है ।
कोइ अन्न फसल पर सोता है दाने दाने को रोता है ॥
कोई महल अँटारी खुली कोइ छप्पर मे लगाया ताला है ।
कुदरत का खेल निराला है ...........
कोई फटी कमीची गुजर करे, कोइ शेरवानी मे चलन करे ।
कोइ एयरोप्लेन मे सफर करे, कोई सायकल से ही रगड करे ।
कोइ ओढे कमली काला है, कोई ओढे शालदुसाला है ।।
कुदरत का खेल निराला है...........
लिखे अनिल साकेतपुरी सँसारिक तस्वीरों को ।
क्या किस्मत यार अमीरी की, क्या किस्मत यार फकीरों को ॥
कोइ पक्का है बेईमानी का, कोइ नियत की खुद्दारी का ।
कोई पक्का चोर डकैती का, कोई पक्का छुरी कटारी का ॥
देश का पैसा बाहर जिसका नाम पडा धन काला है
जग पे तनिक विश्वास करो, जग वाला दिल का काला है ॥
कुदरत का खेल निराला है .......
अनिल साकेतपुरी