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कुदरत का खेल निराला है ।

14 नवम्बर 2016

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कुदरत का खेल निराला है, कुदरत का खेल निराला है । कोइ गोरा है कोई काला है, कुदरत का खेल निराला है ॥ कोइ बाहर लडने वाला है, पर घर मे डरने वाला है । कोइ बाहर डरने वाला है, पर घर मे लडने वाला है ॥ कोई झील का पानी पीता है, कोई नमक चाट कर जीता है । कोई फ्रिज का पानी पीता है, कोई बोतल व्हिसकी पीता है ॥ कोई बडा ही किस्मत वाला है ड्योढी पर पक्का नाला है । कुदरत का खेल निराला है, कुदरत का खेल निराला है । कोइ कालीन गलीचे सोता है, दाने दाने को होता है । कोइ अन्न फसल पर सोता है दाने दाने को रोता है ॥ कोई महल अँटारी खुली कोइ छप्पर मे लगाया ताला है । कुदरत का खेल निराला है ........... कोई फटी कमीची गुजर करे, कोइ शेरवानी मे चलन करे । कोइ एयरोप्लेन मे सफर करे, कोई सायकल से ही रगड करे । कोइ ओढे कमली काला है, कोई ओढे शालदुसाला है ।। कुदरत का खेल निराला है........... लिखे अनिल साकेतपुरी सँसारिक तस्वीरों को । क्या किस्मत यार अमीरी की, क्या किस्मत यार फकीरों को ॥ कोइ पक्का है बेईमानी का, कोइ नियत की खुद्दारी का । कोई पक्का चोर डकैती का, कोई पक्का छुरी कटारी का ॥ देश का पैसा बाहर जिसका नाम पडा धन काला है जग पे तनिक विश्वास करो, जग वाला दिल का काला है ॥ कुदरत का खेल निराला है ....... अनिल साकेतपुरी

अनिल साकेतपुरी की अन्य किताबें

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एक परदेशी की व्यथा

12 नवम्बर 2016
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मलकिन कै फोनवा आय गवा ।तू घरे चला आवा जल्दी ॥मडही चुवति अहै कसके ।एका तू दिया छवाय जल्दी ॥पिन्टू कै नइकर फाट गवा ।लाडो कै टूट गवा जूता ॥गाय कै पगहा लाय रह्या ।ऊ टूट गवा एक एक बीता ॥पण्डोहे कै हाल बतायी ।बगल पडोसी रोंका थे ॥अब अइसन हालत बनी अहै ।अँगनै मा मेघा बोलाथे ।😄लग्गा से घुइहाय थकेन हम ।अउर

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फसाद की जड । गाँव का मेड ॥

12 नवम्बर 2016
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आवा सुनायी तोहैं गउवाँ कै झक्सा ।छोट छोट बात से कपार जँहा चटखा॥शुरु होइगै हइजा भगवती कै चश्का ।इहै हउवै भइया कचहरी कै रस्ता इहै हउवै भइया कचहरी कै रस्ताकल्लू के बगिया मा आमे कै झोप्सा ।पियर पियर हरियर कटहुली कै नक्शा ॥मार दियैं लालच मा लल्लू जौ चीपा ।भर भर के गिर जाय अमवा कै घोप्सा ॥इहै हउवै भइया क

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हजार का नोट

12 नवम्बर 2016
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नई नोट के चक्कड मा भूले है सीमा कै झगडा ।चार हजार पावै के खातिर किहिन दिना भै वै रगडा ॥आपन आपन करै बकैती हमका कौनौ चिंता नाय ।हमका कौनौ फिकिर नाय ना सेठ भिडावै थे टंकडा ॥फर्जी बढिगा दाम नोन कै आँटा चाउर नाय घरे ।अपुना फाँके मस्त हो घूमै ।माई दउरै घरे घरे ॥पँचसउवा अव नोट हजारा नरेगा मजदूरी मा ।बैठ दल

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घर मा फूट भदेली बा

14 नवम्बर 2016
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आज काल्ह कुछ लउंडन मा भा अइसन लछ्छन देख पडै ।कि घर मा भूजी भाँग नही औ बूसट पै ना रेफ पडै ॥बूसट पै ना रेफ पडै वै पल पल गरदा झारा थे ।अव घर मा फूट भदेली बा होटल मा नखरा मारा थे ॥दंसई मा दस बार फेल भये ,गिटपिट गिटपिट बोलाथे ।अव बाप कै लुंगी फटी अहै नाइक कै जूता पहिना थे ॥बाप गिरे गडहा मा उनका आँखी नाय

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देशी बचपन ( गाँव का बचपन)

14 नवम्बर 2016
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अइसन बचपन हम जानी ।तू का जाना शहरी बाबू ॥डेयरी कै हम दूध पियन ना ।भंइस कभौ भै बेकाबू ॥बचपन मा चड्ढी कै नारा ।पहिर हिलावत गली गली ॥टैर पै डण्डा हम मारी ।ऊ हमै नचावत गली गली ॥अव गाँव के रामू काका जब।लै आवैं मलाई गली गली ॥मउनी मा महुआ लइ दउरी ।सबसे आँख चोराय चली ॥गाँव किनारे जवन ताल ।ऊ स्विमिंग पूल हम

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होइ गय मोर धरोहर गायब

14 नवम्बर 2016
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चम्पा और चमेली गायब ।फुलवन से ऊ खुश्बू गायब ॥छोट छोट चीनी के आगे ।बडी बडी गुड भेली गायब ॥सरिया मह से धेनू गायब ।माठा मह से नैनू गायब ॥बडी बडी राइसमिल चलिगै ।काँडी जांत पहरुवा गायबखेतन से भय बरही गायब ।ताले से भय नरई गायब ॥घरे घरे अब नलका गडिगा ।धन्न कुँवा पनिहारिन गायब ॥रैन ना बोलै झींगुर गायब ।जँग

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नान्ह के दुल्हिन लियाय दा ।

14 नवम्बर 2016
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हे! मोरी यशोदा मइया , नान्ह के दुल्हिन लियाय दा ।यशोदा मइया ,नान्ह के दुल्हिन लियाय दा २२ गज भर कै होये महतारी ओकर छतिया ।मीठी मीठी करै, हमसे बतिया ॥झूमि के नाचै २ बजाई जब बँसुरियायशोदा मइया ...........राधा ललिता विशाखा चिढावैं ।कहिया जाब्या कान्हा दुल्हिनिया लावै ॥अरे! छोट के मडहिया मा २ भँवरी फे

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कुदरत का खेल निराला है ।

14 नवम्बर 2016
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कुदरत का खेल निराला है, कुदरत का खेल निराला है ।कोइ गोरा है कोई काला है, कुदरत का खेल निराला है ॥कोइ बाहर लडने वाला है, पर घर मे डरने वाला है ।कोइ बाहर डरने वाला है, पर घर मे लडने वाला है ॥कोई झील का पानी पीता है, कोई नमक चाट कर जीता है ।कोई फ्रिज का पानी पीता है, कोई बोतल व्हिसकी पीता है ॥कोई ब

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आज की लाचारी (नोट समस्या)

15 नवम्बर 2016
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काव करै जनता बेचारी ।रुपयवा मिलै ना उधारी॥सबही का सौ सौ कै रुपयय तौ चाही ।लियै का हजारा कराथे मनाही ॥कइसे का होये किसानी, रुपयवा मिलै ना उधारी पाँच सौ हजारा कै छूट गयल माया ।दुर्गति जिनगिया भय नयी नोट छाया ॥पँचसउवा लियै ना भिखारी रुपयवा मिलै मा उधारी ॥गेंहूँ अव सरसौ कै मूडे बोवाई ।कइसे का खेतवा मा

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बदन दिखाऊ प्रेम आज का

15 नवम्बर 2016
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बेलेन्टाइन डे यानि प्रेम दिवस ।यानि बची खुची सभ्यता का विलोप करना ।मै मानता हूँ कि प्रेम एक अमूल्य रत्न है जिससे भगवान भी नही बच सके ।लेकिन प्रेम ,प्रेम से किया जाता है परदे मे प्रेमालाप।आज का प्रेमालाप तो कुछ और ही प्रमाण दे रहा है ।जिसे हवसालाप कहने मे कोई सँकोच नही ।आज का बेलेन्टाइन डे अगर यू ह

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माँ का आँचल

16 नवम्बर 2016
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चन्द लाइनें मेरे उन भाईयों कि लिये जो परदेश मे रह रहे है ॥,,ऐ माँ तेरे आँचल की ओ याद बहुत आती है ।जँहा पे खेला बचपन वो छाँव बहुत भाती है ॥ताल तलैया आम की बगिया ,जँहा पे खेला बचपन है ।वो हिन्दुस्तान की माटी हमको याद बहुत आती है ॥,,,,सुबह सुबह वो दूध भात माँ जब तू हमे खिलाती थी ।मेरे तन को रगड रग

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बदल गयी दुनिया ( अवधी लोकगीत)

25 नवम्बर 2016
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ल्या भैय्या लोगौ एकठी अउर तैयार बा 😄 हे ! मँगरू चाचा गजब होइगै दुनिया ।हे! मँगरू चाचा गजब होइगै दुनिया ॥नेता बनाया जेका दूनौ परानी ।धोया चरन जेकै लोटा भरि पानी ॥वई तोहरे घरवा मा कराथे लुटनियाहे! मँगरू चाचा .........खायं जउने थरिया करै वहि मा छेदवा ।कुर्सी के खातिर नेता बेंचे ईमनवा॥हाय हसन हाय हसन क

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एक मतला

25 नवम्बर 2016
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प्रधानमँत्री पहिला देखेन खेला अइसन पारी ।ठकुरन का गोडवारी भेजिस सूदन का मुडवारी ॥सूदन का मुडवारी भेजि के ऐसा गजब ढहाया ।सेठ लगे लाइन मा सोचैं अबकी हमरी बारी ॥

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हे धनिया हमका पियाय दिया वाटर ( लोकगीत)

27 नवम्बर 2016
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लीजिये मित्रों आपकी सेवा मे एक और अवधी रचना पेश कर रहा हूँ ॥हे! धनिया हमका पियाय दिया वाटर ।२ अब हम ना पीबै ठेंका परकै क्वाटर ॥हे! धनिया हमका पियाय दिया वाटर ।क्वाटर के पीछे हो गइल घरा नाश हो ।मुन्ना औ मुन्नी कै रोकेंन विकाश हो ॥बात बिना बात तुहैं मार दिहन झापर हे! गोरिया हमका...........क्वाटर के

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इहै हउवै भइया मोरे भारत कै बस्ती ( गाँव दर्शन)

5 दिसम्बर 2016
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जँहवा देखाय पाँच सालन मा हस्ती ।उहै हउवै भइया मोरे भारत कै बस्ती ॥ढनगै दुवारे पै टाठी अव लोटा ।अौ लोटा के बगलै ऊ बाँसे कै सोंटा ॥छनही मा लडि बइठै अपुनै मा कुश्ती ।दिन भै कमाय करै संझा के मस्ती ॥इहै हउवै भइया मोरे भारत कै बस्ती ॥फटेहाल कुर्ता फटा बा पजामा ।फटेहाल सुइटर फटा है दुशाला ॥बहेला दुवारे पण्

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जनता के आँसू

16 दिसम्बर 2016
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भुल गया हूँ लाइन मोदी आकर मुझे बता दो तुम ।धरती पर है अन्न छीटना आकर अन्न दिला दो तुम ॥कहते खुद को संहसाह यह कैसी साहंसाही है ।बीमार हो गया हूँ लाइन मे आकर दवा दिला दो तुम ।भूख से बच्चे बिलख रहे है खुद भी भूखा प्यासा हूँ ।विजय माल्या ,अनिल, अडानी, के जैसे ना पासा हूँबस आकर लाइन तुम गिन लो इतने का अ

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वृक्ष हमें जीवन देंगे

25 दिसम्बर 2016
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कह गये "अनिल साकेत पुरी भइ ।इक दिन ऐसा आयेगा ॥फोटो मे हरियाली होगी। बाग नजर नही आयेगा ॥कट गये अँग सब बृक्षन के ।अब छाँव कही ना मिलते है ।घर बन गये कँकर पत्थर से ।अब गाँव कँही ना मिलते हैं। इक दिन ऐसा आ जाएगा हम सांस भी न ले पाएंगे। तरसेंगे ठंडी हवा को भीजो वृक्ष सभी कट जाएंगे।। कुछ सोचो जो तुम कर रह

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