shabd-logo

ग़ज़ल............. देवेन्द्र पाठक 'महरूम'

3 फरवरी 2018

100 बार देखा गया 100
रहता हूँ मैं झूठ के घर पर. कहता हूँ मैं कड़वा सच पर. बाहर सर्द सुबह हूँ लेकिन भीतर मैं हूँ तपती दुपहर. मेहनतकश के बल-बूते ही दुनिया का हर मंजर सुन्दर. देख कभी मेरी नज़रों से। अंधियारों के दिल में उतरकर. एक खुशी की चाह में 'महरूम' सहता हूँ मैं हर ग़म हँसकर.

देवेन्द्र पाठक की अन्य किताबें

किताब पढ़िए