रहता हूँ मैं झूठ के घर पर. कहता हूँ मैं कड़वा सच पर. बाहर सर्द सुबह हूँ लेकिन भीतर मैं हूँ तपती दुपहर. मेहनतकश के बल-बूते ही दुनिया का हर मंजर सुन्दर. देख कभी मेरी नज़रों से। अंधियारों के दिल में उतरकर. एक खुशी की चाह में 'महरूम' सहता हूँ मैं हर ग़म हँसकर.