मन की बात
यह लफ्ज पिछले तीन साल से टीआरपी ले रहा है, मित्रों मैं यह करूंगा, यह कर रहा हूं, खालिस राजीव गांधी की याद दिला रहा है, हम कर रहे है, देखते है, देखता रहूंगा, बस फर्क शब्दों में आ गया, पत्थरबाज कश्मीर में पत्थरबाजी से नहीं चूक रहे, सेना जब कुछ करती है तो जवाब मांगा जाता है, 20 साल पहले जो हो रहा था वही हो रहा है, बस कान उलटकर पकड़ा गया है और मित्रों शब्द की चासनी लग गयी है, सुकुमा में 25 जवान शहीद हो गए देश में किसी के पेट पर बल नहीं पड़ा कारण कमाया देखने वालों के घर से किसी के जिश्म पर कफन का कपड़ा नहीं पड़ा, नक्सली हो या आतंकवादी, जो खून निकालेगा उसके लहू से होली खेलनी चाहिए, केवल हम कर रहे हैं पर नहीं, बकवास बंद हो केवल एक्शन हो, यहां पर तालिबानी नीति अपनानी, तुम 25 मारोगे हम 2500 मारेंगे, नक्सलियों के नरमुंड दिल्ली के लाल किले पर टांग कर मित्रों को बताना चाहिए यह है मेरा लाल सलाम, वादा है सारी समस्या खुद खत्म हो जाएगी नहीं तो रोज कफन सजेंगे और सलामी देकर मन की बात होती रहेगी😡😡😡😡😡😡😡😡