टीपू को अपने पूर्वजों के गांव से बड़ा ही लगाव था ।शहर आये उसे पांच साल हो चुके थे लेकिन फिर भी साल मे पांच सात बार वह अपने गांव हो ही आता था।गांव मे उन का पैतृक मकान था।चाचा चाची और उनके बच्चे उसमे रहते थे।बस गांव का मोह ही टीपू को खींच कर बार बार वहाँ ले जाता था। एक बार आफिस की दो तीन छुट्टी पड़ी तो उसने गांव जाने का मन बनाया।वैसे तो गांव शहर से ज्यादा दूर नही था हर बार वह मोटरसाइकिल पर ही गांव जाता था।अब की बार दो तीन छुट्टी होने पर टीपू ने पैदल ही गांव जाने की सोची।सोचा घुमंतू बनकर गांव जा कर चाचा चाची को सरपराईज दूंगा ।वह सुबह मुँह अन्धेरे ही निकल लिया गांव की ओर।साथ मे खाने पीने का सामान भी ले लिया।वह गुनगुनाते हुए जा रहा था।मौसम बडा सुहाना था।सावन की घटाएँ आसमान पर छाई हुई थी।ठंडी शीतल पवन चल रही थी।टीपू अपनी ही धुन मे अपने रास्ते बढ़ा जा रहा था।अचानक से उसने देखा गांव की ओर जाने वाली पगडंडी पर बहुत सारी धुंध फैल गयी है।टीपू ने सोचा अभी तो रास्ता साफ था ये अचानक धुंध कहाँ से आ गयी।वह थोड़ा ठिठका।लेकिन थोड़ी देर बाद फिर से गांव की ओर चल दिया।पर जैसे जैसे वो गांव की ओर जा रहा था उसे गांव बदला बदला सा लग रहा था ।रास्ते के दोनों तरफ सुन्दर फूलों के पेड़ पौधे लग गये है जहाँ पहले कूड़े का ढेर पडा रहता था।पगडंडी भी कच्ची की जगह पक्की हो गयी थी।वह थोड़ा आगे गया तो क्या देखता है गांव मे पक्की पाठशाला बन गयी है।पढ़ने के लिए ही तो उसे गांव से शहर आना पड़ा था बस फिर पिता जी शहर के ही होकर रह गये।उसका मन अभी भी गांव मे रहने का करता ।उसे बडा अजीब लग रहा था कि अभी महीना पहले तो वह गांव आया था जब तो कुछ भी नही था।ना पाठशाला, ना पक्की पगडंडी, ना पेड पौधे।ये अचानक से इतना बदलाव कहाँ से आ गया। लेकिन वह चलता रहा।उसे गांव मे भी काफी बदलाव नजर आया।नये मकान बन गये थे।एक बात टीपू को बड़ी अजीब लग रही थी गांव मे बहुत से अनजाने चेहरे दिखाई दे रहे थे।जिसे उसने पहले कभी नही देखा था।वे लोग भी उसे अजीब नजरों से देख रहे थे।वह जैसे तैसे अपने मकान के सामने पहुंचा और दरवाजा खटखटाया।काफी देर बाद उसमे से एक नौजवान बाहर निकला। टीपू ने आश्चर्य से उसे देखा और बोला,"आप कौन?"वो नौजवान सकपका कर बोला,"ये सवाल तो मुझे आप से पूछना चाहिए कि आप कौन हो और मेरे घर का दरवाज़ा क्यो खटखटा रहे हो।"टीपू को तो जैसे करंट लग रहा था।वो बोला,"भाई यह हमारा पैतृक घर है यहाँ पर मेरे चाचा और उनकी पत्नी व दो बच्चे चार जन रहते थे।मेरे चाचा जी रामप्रसाद ।अब चौंकने की बारी उस नौजवान की थी वह आश्चर्य मिश्रित शब्दो से बोला," लगता है आप बहुत सालो बाद आये है ।उनको तो गुजरे चालीस साल हो चुके है एक सड़क हादसे मे दोनो पति पत्नी का देहांत हो गया था और उनके बडे भाई आकर ये मकान हमारे पिताजी को बेच गये थे।राम प्रसाद के दोनो बच्चे तो अब शहर मे अच्छे पदों पर काम कर रहे है।अब टीपू का सिर भनभनाने लगा।वह जिस पांव आया था उसी पांव दौड लिया शहर की ओर सारे रास्ते सोचता रहा ये कैसे हो सकता है चाचा के बच्चे इतने बड़े कैसे हो गये।और फिर चाचा जी कहाँ गये अभी पिछले महीने तो मिलकर गया था ।सब ठीक था चाचा कितना दुलारे रहे थे।अचानक ये क्या हो गया।पिता जी ने मकान कब बेचा।इसी उधेड़बुन मे टीपू घर पहुँच गया।दौड कर पिता के पास गया और बोला,"पिता जी लगता है चाचा जी से किसी ने मकान हथिया लिया है।कोई और लोग ही मकान मे रह रहे है।कह रहे थे आपने मकान उन्हे बेच दिया है।"पिता जी गुस्से से बोले,"क्या बके जा रहा है,मैने कब मकान बेचा।"किसी अनहोनी के डर से टीपू और उसके पिता मोटरसाइकिल उठाकर गांव की तरफ दौडे।आधे घंटे मे जब टीपू पिता के पीछे बैठा मोटरसाइकिल से उस पगडंडी पर जा रहा था तो क्या देखता हे पगडंडी वैसी ही कच्ची है जैसे एक महीना पहले जब वह गांव आया था। ना कोई पाठशाला, ना पेड पौधें, ना पक्के मकान ।घर के आगे जाकर जब दरवाजा खटखटाया तो चाचा जी ने दरवाजा खोला।अब तो टीपू का बुरा हाल था।ये क्या कल जो मैने देखा वो क्या था।अब तो सब ठीक-ठाक है।पिता ने जलती नजरों से टीपू की और देखा।चाचा ने पूछा,"भाई साहब!अचानक कैसे आना हुआ।"तब पिताजी बोले,"क्या बताऊँ भाई रामे लगता है इस लडके ने सुबह-सुबह ही भंग चढ़ा ली है अनापशनाप बके जा रहा था।और सारी बात बताई ।अब चाचा चाची और उनके बच्चे सब टीपू पर हंस रहे थे।टीपू बेचारा नीची नजरें किये चुपचाप खडा था।दोनों पिता पुत्र शहर लौट आये।
इस घटना के दो साल बाद चाचा चाची किसी काम से दुसरे शहर जा रहे थे दुर्घटना मे दोनों की मौत हो गयी।टीपू का दिमाग सायं सायं कर रहा था।क्या वह वास्तव मे टाइम ट्रैवल करके बयालीस साल बाद भविष्य मे चला गया था उस दिन।इन सब बातों का जवाब भविष्य के गर्भ मे था।