प्रिय सखी।
कैसी हो । मै अच्छी हूं । बारिश बहुत हो रही है तीन दिनों से ।बस सारा दिन ऐसे ही बीत जाता है कुछ समय उपन्यास लिखने मे तो कुछ और व्यस्तताएं है ।बस दिन पता ही नही चलता ।हमारी मां कहती है ये श्राद्ध के दिन जले बले और बोझिल से होते है ।अब आज का विषय बहुत अच्छा सा लगा तो मैं हाज़िर हूं तुम्हारे सामने।
आज का विषय:- मेरी पहली पढी पुस्तक
सखी अब क्या बताऊं पढ़ना तो मेरी जिंदगी है ।मै शायद साढ़े तीन साल की थी बस पापा मेरा दाखिला कराने वाले थे मुझ से बड़ी मेरी बहन एक साल से स्कूल जा रही थी ।कसम से मुझे उसकी किताबें पानी की तरह रटी थी ।जब मेरा एडमिशन हुआ तो टीचर ने मेरा टेस्ट लिया तो मेरे पापा से वो बोली,"आप की बिटिया तो पहली क्लास मे बैठने लायक है आप इसे एलकेजी मे क्यों करा रहे है ।
हहहा हमे अपनी किताब याद हो ना हो अपनी बहन की सलेबस पूरा याद होता था।वैसे कहानियां पढ़ने का शौक मुझे बचपन से ही था और इतना शौक था कि अगर मुझे सारा दिन एक अच्छी सी कहानियों की किताब देकर बैठा दिया जाए तो शायद मै पूरा दिन खाना भी नहीं खाऊं।
अब ये तो याद नहीं कि मैने सबसे पहली कहानी कौन सी पढ़ी पर हां ये बता सकती हूं कि पहला उपन्यास कौन सा था ।
बात ये थी कि हमारे घर मे उपन्यास पढ़ने पर रोक थी । क्यों कि पापा मम्मी को ये लगता था कि उपन्यास पढ़ने से बच्चे बिगड़ जाते है ।शायद उन्होंने लोगों को बाजारू उपन्यास है पढ़ते देखा होगा ।बात तब की है जब मै कालेज मे गयी । वहां कालेज की लाइब्रेरी मे एक दिन मै मेरी सहेली के साथ गयी थी उसे कोई किताब वापस करनी थी ।मै ऐसे ही उपन्यासों के केटालोग देख रही थी वहां मेरी नजर धर्मवीर भारती के उपन्यास पर पड़ी ।अब नाम तो याद नही है शायद "अनजान चोर या अजनबी चोर "ऐसा सा कोई नाम था मैने वै बुक इशू करा ली और जैसे की बताया हमारे घर मे उपन्यास पढ़ने पर पाबंदी थी तो
मै सेलेब्स की बुक मे रखकर पढ़ती थी ।एक दिन पापा ने देख लिया उन्होंने वो किताब मुझ से लेकर स्वयं पढ़ी ।उस दिन के बाद से मेरे पापा का उपन्यास के प्रति धारणा ही बदल गयी । मुझे याद है मेरे पापा फिर बाद मे बार बार यही कहते थे" बेटा
वैसी और किताब हो तो लाना ।" वो एक जासूसी उपन्यास था ।सच मे मजा आ गया था पढ़ कर।वैसे बचपन मे बच्चे गर्मी की छुट्टी मे तही कहते कि हमे यहां घुमना है वहां घुमना हे या ये दिला दो ।पर मेरी अलग ही च्वाइस होती थी मै पापा को बोलती थी "पापा आप मेरे लिए एक महीना पाकेट बुक्स बांध दो ।मतलब एक किताबों की दुकान से हर रोज दो पाकेट बुक्स किराये पर ले आते थे और उसे पढकर शाम को लौटा आते थे।
उसके बाद तो बहुत से नावल पढ़े जैसे मुंशी प्रेमचंद जी का "निर्मला" और एक ओर उपन्यास था "बंतो"
फिर तो बस हम रुके ही नही बहुत ही साहित्य पढ़ा ।बस महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार ही हमे लिखने की प्रेरणा दे गया और अब आप सब लोगों के सामने हमारी रचनाएं है ही ।
तभी तो हम कहते है
"विचारों का ऐसा तूफान आता है जब तक उसे कागज़ पर ना उतार दूं तो आत्मा को चैन ही नही मिलता।"
अब चलते है सखी ।देहली है । बहुत तेज बारिश हो रही है ।अब अलविदा।