कैसी हो ।पता है दो दिन मे हमारे साथ क्या कुछ नही घटा।अब तुम से मिल नही सकते थे । क्यों कि हमने डायरी पूर्ण मार्क कर दी थी।सोई इंतजार कर रहे थे कि कब तुम से मुलाकात हो और हम मन की बात तुम्हें बताएं।
हुआ यूं कि वैसे हर बार ही है रहा है पुस्तक लेखन प्रतियोगिता मे बिल्कुल आंखों के सामने धांधली चल रही थी पर कर कुछ नही सकती थी । लोग मजबूर करते है गलत राह पर चलने को
हमारा मन नही मानता लेकिन जब लोग ऐसी हरकतें करते है तो कही एक लेखक का मन टूट जाता है ।
मंच से एक बात कहनी थी या तो रीयल पाठक ही क़िताब पर आने चाहिए ऐसा हो नही तो लेखन से मन उठते देर नही लगेगी लेखकों के।या फिर पुस्तक लेखन के नियम मे बदलाव हो पाठक के स्थान पर निर्णायक दल ही फैसला ले कौन सी किताब सर्वोच्च है।
प्रस्तुत है श्री गणेश जी को याद करते हुए एक कहानी ।अब ये नही पता कितने लोग इस कहानी को जानते है
गणपति बप्पा मोरया। विघ्नहर्ता, प्रथम पूज्य श्री गणेश जी के विषय मे बहुत सी कथाएं हमने सुनी है।पर एक कथा ऐसी है जो शायद हमारी दादी नानी करवाचौथ और सभी प्रकार के व्रतों की मुखय कहानी के साथ एक से दो कहानी कहने के लिए सुनाती थी वो आप सब के सम्मुख प्रस्तुत है।
एक बार एक विनायक बाबा थे।वो चुटकी मे चावल और चम्मच मे दूध लेकर घुम रहे थे कोई मेरी खीर बना दो , कोई मेरी खीर बना दो।
सब कहने लगे ये तो कोई मतवाला है जो इतने से दूध और चावल की खीर बनाने को बोल रहा है ।पर उस गांव मे एक बुढ़ी मां थी जिसे आंखों से कम दिखाई देता था वो विनायक बाबा से बोली,"ला बेटा मै तेरे इस दूध की खीर बना दूं।"
यह कहकर वह अंदर गयी और कटोरी और प्लेट ले आई और बोली,"ला बेटा इसमे डाल दे ये दोनों चीजें।₹
विनायक बाबा हंसते हुए बोले,"बुढी माई ।अंदर से परात ला और कलश ला ।उसमे डालूंगा ये चीजें।"
बुढ़ी मां हैरानी से बोली,"मेरे पास तो ये बरतन नहीं है।"
तब विनायक बाबा बोले ,"अंदर जाकर तो देख।"
वो बुजुर्ग महिला अंदर गयी तो परात भी मिल गयी और कलश भी।उसने लाकर विनायक जी के आगे रख दिया।एक छींट दूध की कलश में डाली तो वह दूध से भर गया एक दाना चावल का परात मे डाला तो वह चावल से भर गयी।
अब खीर बनने लगी। विनायक बाबा बोले,"बुढी माई।इतने खीर बनती है मै स्नान करके आता हूं।"
बुढ़िया बोली ,"अच्छा बेटा।"
विनायक बाबा स्नान करने चले गये । उन्हें वहां देर लग गयी ।पीछे से खीर तैयार हो गयी । बुढ़िया को उसकी खुशबू से ही बड़ी जोर से भूख लगी थी उसने सोचा अगर मै थोडी खा लूंगी तो क्या पता चलेगा। बुढी माई से सब्र ही नही हो रहा था तो उसने एक कटोरे मे खीर ली और दरवाजे के पीछे बैठकर खा ली।
थोड़ी देर बाद जब विनायक बाबा आये तो बुढ़िया बोली,"जीमो महाराज।"
तब विनायक बाबा हंसते हुए बोले,"बुढ़ी मां मै तो उसी वक्त जीम लिया था जब तुम दरवाजे के पीछे बैठकर खा रही थी।"
बुढ़िया हैरान होकर विनायक बाबा को देखकर बोली,"बाबा मै अब इस खीर का क्या करूं?"
विनायक बाबा बोले,"अपने बेटे पोतों और कुनबे को खिला दे।"
बुढ़िया बोली ,"मेरा तो कोई नही है।"
विनायक बाबा बोले,"तू आवाज दे सब आ जाएंगे।"
बुढ़ी मां ने जब आवाज दी तो सभी बेटे बहू पोते बेटी सब आ गये।खीर फिर भी बच गयी।अब बुढ़िया बोली,"अब इस खीर का मै क्या करूं।"
विनायक बाबा बोले,"तुम जीते जी अपना काज कर लो और सारा गांव जिमा दो। और मै तुम से प्रसन्न हूं बोलो क्या वर मांगती हो।*
बुढ़िया चालाक थी बोली,"बाबा परसो आना इतने मै सोचकर रखूंगी।"
कहते है भगत के वश भगवान होते है विनायक बाबा बोले,"अच्छा बुढ़ी मां मै परसो आऊंगा तुम सोचकर रखना।"
बुढ़िया बहू के पास गयी और कहा ,"बहू मै क्या वर मांगू।"
बहू के बेटा नही था बोली,"मां जी पोता मांग लो ।"
बुढ़िया बेटे के पास पूछने गयी तो बेटे ने धन मांगनू को कहा।
बुढ़िया बेटी के पास गयीबेटी बोली,"मां तुम अपनी आंखें मांग लो । आंख बिना संसार नही।
बुढ़िया पूरे दो दिन सोचती रही तीन व्यक्ति तीन वर क्या मांगू ?"
जब विनायक बाबा आये तो पूछने लगे,"बुढी माई सोच लिया क्या वर चाहिए?"
बुढ़िया बोली,"हां बाबा सोच लिया।"
विनायक बाबा बोले,"बता क्या इच्छा है तेरी।"
बुढ़िया बोली,"सोने की कटोरी मे मेरा पोता दूध पीये और ये सब मै मेरी आंखों से देखूं।"
विनायक बाबा हंसते हुए बोले,"वाह! बुढ़ी मां तुमने तो एक वर मे तीनों वर मांग लिए।"
विनायक बाबा"तथास्तु " कह कर हंसते हुए चले गये।
जैसे विनायक बाबा बुढ़ी मां पे मेहरबान हुए वैसे सब पर हो।
ये कहानी सदियों से दादी नानी कहती आ रही है।