प्रिय सखी।
कैसी हो ।हम ठीक ही है ।आज घर पर ही है देहली शोप पर नही गये।तबीयत ठीक नही है।कुछ नया उपन्यास लिख रहे है एक मंच पर बस उसी मे व्यस्त रहते है। फ़ालतू का सोचने का समय ही नही लगता।
अब अगस्त की पुस्तक लेखन प्रतियोगिता की किताब का प्रमोशन कर रहे है। परिणाम जानते हुए भी प्रमोशन कर रहे है । आख़िर जीत झूठ की ही होती है । लेकिन निरन्तर प्रयास करना हमारा काम है ।कल जो दैनिक प्रतियोगिता का विषय था उस पर हम लिखना चाहते थे पर देहली शोप पर बहुत व्यस्त हो गये थे लिख ही नही पाये।पर आज का विषय भी रोचक विषय है ।आज का विषय है :-रेल यात्रा
हमने बहुत सी रेल यात्रा की है मेरी पहली रेल यात्रा मुझे याद है ।मै महज पांच साल की थी मुझे उसके कुछ कुछ अंश याद है । बाकि सब जब मै बड़ी हुई तो मेरे मम्मी पापा ने बताया कि उस दिन क्या हुआ था।
बात तब की है जब मेरे चाचा जी की शादी हुई थी मेरे चाचाजी ने तब लव मैरिज की थी।मेरे चाचा जी मेरी बुआ जी के यहां लखनऊ मे रहते थे।वही चाची से मुलाकात हुई ओर धीरे धीरे बात शादी तक पहुंच गयी।अब तो लड़की वाले अपना सारा सामान उठा कर लड़के वालों के शहर आकर बेटी की शादी कर जाते है पहले ऐसा नही होता था ।चाहे लड़के वाले कितनी ही दूर हो वो बारात लेकर जाते थे ।सोई मेरे चाचा की शादी मे हमारा सारा कुनबा लखनऊ जा रहा था।मेरी पांच बुआ ,सारे फूफा जी,उनके बच्चे, ताऊजी,ताईजी,मेरे कजिन भाई बहन जिसमें से आधे घर ही रहे थे आधे साथ गये थे।टोटल पुरोहित समेत पचास बंदे हो गये थे
इसलिए दादाजी ने ट्रेन का पूरा डिब्बा बुक करवा दिया था । मुझे याद है। हमारा पुरोहित थोड़ा मजाकिया किस्म का बुढ़ा था।मेरे दादाजी और वो आमने सामने की सीट पर बैठे थे खिड़की के पास । मुझे हल्का हल्का याद है मेरे दादा जी ने मुझे अपने पास बुलाया क्यों कि ट्रेन कही आउटर पर खड़ी थी और एक हाथी हमारी ट्रेन के पास आ गया था । मुझे याद है मेरे दादा जी ने मुझे गोद मे उठाकर कहा,"ले मुंडो(हां मेरे दादाजी प्यार से हम पोतियों को मुंडो कहते थे) यो केला हाथी के मुह मे दे दे।"
सच मे मुझे बड़ा डर लग रहा था हांलांकि मै मेरे दादा जी की गोद मे थी फिर भी मैने डरते डरते केला हाथी के मुंह मे देना चाह लेकिन क्या इतेफाक बना तभी ट्रेन चल पड़ी।हमारे पुरोहित ने जहां से मै केला हाथी को खिला रही थी उस खिड़की मे बाहर हाथ निकाल कर हाथी को बुला रहा था ।वो मेरी तरफ देख रहा था की मै केला हाथी को खिलाऊ पर मैने डरके मारे केला उनके हाथ मे रख दिया इतने मे हाथी ने अपनी सूंड उनके हाथ पर इतनी जोर से मारी कि वो "दैया रे। मार डाला" ऐसे कहकर खिड़की से हाथ अंदर खीच लिया।
बेचारे पुरोहित जी को उल्टे हाथ से चाचा चाची के फेरे करवाने पड़े।
फिर पूरा डिब्बा बुक था सारे डिब्बे मे घरके ही सदस्य थे ।मेरी मम्मी रास्ते के लिए बहुत सा खाना साथ लेकर गये थे।खुब सबने मिलकर खाया। फूफाजी लोगों और पापाजी की जमकर ताशबाजी हुई।खूब मजा आ रहा था।रात को किसी स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो एक चोर डिब्बे में घुस आया उसने मेरी बडी बुआ जिनकी धौंस थी पूरे घर में उनकी सोने की चेन पर हाथ साफ करना चाहा तो पापाजी और ताऊजी, फूफाजी ने मिलकर खूब पिटाई की मेरी एक बुआ थोड़ी ज्यादा मोटी है वो तो उसे नीचे गिराकर उसके उपर ही बैठ गयी। हाहाहाहाहा।
सच मे बहुत मजा आया था मेरी पहली ट्रेन यात्रा मे।
पता नही क्यों मुझे तो जिंदगी भी एक ट्रेन की तरह लगती है ।नित नये मुसाफिर आते है डिब्बे मे ,जिन का सफर पूरा हो जाता है वो स्टेशन पर उतर जाता है और नये मुसाफिर चढ़ जाते है डिब्बे में
अब चलती हूं सखी अलविदा।