हैलो सखी।
कैसी हो ।कल रात तो जम कर मेघा बरसे ।बस देहली शोप पर आते समय थोड़ा रास्ते मे दिक्कत होती है जगह जगह जल भराव हो जाता है बाकी जो मौसम मे उमस थी उससे काफी निजात मिली।
शोप पर आकर बैठे और मोबाइल खोला तो आज का दैनिक प्रतियोगिता का विषय दिखा ।जो हमारा पसंदीदा विषय है
"नारी शक्ति "
पर उसका दुर्पयोग । हां बहुत सी जगहों पर इसका गलत इस्तेमाल होते भी देखा गया है । बहुत सी महिलाएं , महिला सशक्तिकरण के लिए जो कानून बने है उनका गलत इस्तेमाल करती भी देखी गयी है।जैसे सुनसान जगह पर, ट्रेनों मे बहुत सी महिलाएं भोले भाले पुरुषों को ठगने के चक्कर मे इन कानूनों का हवाला देकर पैसे ऐंठ लेती है।
आज़ादी की एक सीमा होती है नारी शक्ति जिंदाबाद ,महिलाओं को बराबरी का अधिकार दो इस तरह के असंख्य नारे आए दिन हम कहीं ना कहीं सुन लेते हैं या देख ही लेते हैं |सती प्रथा ,जौहर प्रथा और देवदासी जैसी कुप्रथाओं के बाद मुगल काल में महिलाओं में पर्दा प्रथा शुरू हुई जो कि आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जारी है पर अब देश की आजादी के 71 वर्ष बीत चुके हैं और आए दिन महिलाओं को हर मोर्चे पर बराबरी का दर्जा देने की मांग उठ रही है , हम सब महिलाओं और पुरुषों के बीच अन्याय पूर्ण भेदभाव की खिलाफत करते हैं पर एक बात कहना चाहेंगे कि गुड़ को अगर हम चीनी बनाएंगे तो चीनी में मिठास तो वही रहेगी पर गुड़ के तत्व चीनी में नहीं मिलेंगे मतलब साफ है हम महिला सुरक्षा और उनके सम्मान और चुनिंदा क्षेत्रों में उनकी बराबरी के पक्षधर तो हमें होना चाहिए हैं और उनके सामाजिक सम्मान की रक्षा के लिए हम संघर्ष भी करना चाहते हैं परंतु यह भी ध्यान देना चाहिए इन सुधारों के नाम पर महिलाओं की आजादी का दुरूपयोग ना हो अगर हम बात करें दहेज प्रथा कानून की 498 ए जिसे शादीशुदा महिलाओं की सुरक्षा हेतु बनाया गया है इसकी साल 2015 में एक रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी जिसमें 498ए के तहत कुल दर्ज 1लाख 12078 मामलों में 7458 मुकदमें फर्जी और ससुराल पक्ष को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से दर्ज कराए गए थे |आज देश के सभी राज्यों में महिलाओं की सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा अलग-अलग योजनाएं संचालित है देश में कुल महिला साक्षरता 67 फीसदी है और 27 फ़ीसदी महिलाएं देश में कामकाजी हैं जिनमें ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की संख्या ज्यादा है पर असल में जिन महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, यौन दुराचार ,छेड़छाड़ जैसी घटनाएं होती हैं वह तो ग्रामीण परिवेश कि गरीब घरों की होती हैं उन्हें न्याय ज्यादातर मामलों में मिल ही नहीं पाता है महिला अधिकारों के लिए बने कानून की जानकारी और पहुंच न होने के अभाव में वह आज भी जुल्म सह रही हैं पर वहीं महिला अधिकारों के कानून का दुरुपयोग करने में महिलाओं का एक वर्ग जो कि शहरी क्षेत्र की शिक्षित वर्ग से आने वाली महिलाओं का है जो कि महिला आजादी और महिला अधिकारों के कानूनों का दुरुपयोग कर रही हैं और कहीं ना कहीं समाज और सरकार भी सिर्फ आंख मूँदे एक ही दिशा में कदम बढ़ा रही है मतलब सिर्फ महिलाओं की बराबरी और उनकी सुरक्षा की हमेशा दुहाई तो दी जा रही है पर सरकारें इस बात का ध्यान नहीं दे पा रही हैं इनकी आड़ में बने कानूनों का दुरुपयोग ना हो |
बस सखी तुम और मै कभी इन अधिकारों का गलत इस्तेमाल ना करे यही भगवान से प्रार्थना है।
अब चलती हूं अलविदा।