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भोग एवं गृहस्त

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"योग, भोग एवं गृहस्त" योगी योग करता है ज्ञान अर्जित करता है। देश, दुनिया, समाज और मानव को अपना अर्जन अर्पित करता है। भोगी भोग करता है ज्ञान विसर्जित करता है। देश, दुनिया, समाज और मानव को अपना वर्जन अर्पित करता है। गृहस्त गृहस्ती करता है और योग भोग दोनों को सामान धारा म

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