जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ फिर एक बार अपनी सोच दे रही हूँ ...अमृता का तोहफा तो यूँ भी तुमने खुद ही अपने सिरहाने रख लिया है जिल्द तुम्हारे अद्भुत रंगों का वर्तमान की हर करवट हौज़ ख़ास सी बातों में वही कमरा वही छत वही कबूतर वही दाने !.... परे इस सत्य के मैं तुम्हारे ही अंदर की बंद घड़ी की व्यथा तुम्हें