अपनी उम्र मुझे मालूम है मालूम है कि जीवन की संध्या और रात के मध्य कम दूरी है लेकिन मेरी इच्छा की उम्र आज भी वही है अर्जुनकर्ण और सारथि श्री कृष्ण बनने की क्षमता आज भी पूर्ववत है हनुमान की तरह मैं भी सूरज को एक बार निगलना चाहती हूँ खाइयों को समंदर की तरह लाँघना चाहती हूँ माथे पर उभरे स्वेद कणों की अल