आफिस का अंतिम दिन था, छोड़ना था शहर बस यही सोचता हूँ, कि कैसा होगा सफ़र... उम्मीदे थी बहुत सारी, निकलना था दूरसुबह से ही जाने क्यो, छाया था सुरूरबैठे-२ हो गयी देखो सुबह से सहर कैसा होगा सफ़र......शाम कल की थी, तब से थे तैयारसाथ सब ले लिया, जिस पर था अधिकारचल दिए अकेले ही पर नयी थी डगर