5 सितम्बर 2016
उग रहे बारूद खन्जर इन दिनों हो गए हैं खेत बन्जर इन दिनोंचौकसी करती हैं मेरी कश्तियाँहद में रहता है समुन्दर इन दिनोंआस्तीनों में छुपे रहते हैं सबलोग हैं कितने धुरन्धर इन दिनोंआदतें इन्सान की बदली हुईंशहर में रहते हैं बन्दर इन दिनोंआ गए पत्थर