शब्दों की झोपड़ी में तुम्हें देखा था !!!...इतनी बारीकी से तुमने उसे बनाया था कि मुसलाधार बारिश हतप्रभ ...- कोई सुराख नहीं थी निकलने की कमरे में टपकने की !दरवाज़े नहीं थे -पर मजाल थी किसी की कि अन्दर आ जाए एहसासों की हवाएँ भी इजाज़त लिया करती थीं !न तुम सीता थी न उर्मिला न यशोदा न राधा न ध्रुवस्वामिनी