रौद्र रस (चौपाई)नर नारी चित बचन कठोरा, बिना मान कब गुंजन भौंराकड़ी धूप कब लाए भोरा, रौद्र रूप काहुँ चितचोरा।।-१सकल समाज भिरे जग माँहीं, मर्यादा मन मानत नाहींयह विचार कित घाटे जाहीं, सबकर मंशा वाहे वाही।।-२प्राणी विकल विकल जल जाना, बिना मेह की गरजत बानाअगर रगर चौमुखी विधाना, भृगुटी तनी बैर पहचाना।।