रौद्र रस (चौपाई)
नर नारी चित बचन कठोरा, बिना मान कब गुंजन भौंरा
कड़ी धूप कब लाए भोरा, रौद्र रूप काहुँ चितचोरा।।-१
सकल समाज भिरे जग माँहीं, मर्यादा मन मानत नाहीं
यह विचार कित घाटे जाहीं, सबकर मंशा वाहे वाही।।-२
प्राणी विकल विकल जल जाना, बिना मेह की गरजत बाना
अगर रगर चौमुखी विधाना, भृगुटी तनी बैर पहचाना।।-३
पौरुष कबहुँ न करे बहाना, क्रोध छोछला बिगरे माना
घेरि घेरि कर बात बनाना, हाव भाव अरु रोष रिसाना।।-४
अंत समय चढ़ि मुर्छा धाए, बिना काम के प्राण गवाए
मत कर क्रोध न धोध सुहाए, सनक सवार बैठ पछताए।।-५
दे दे ताली जो ललकारे, समझो ता शर शनिचर भारे
दूर करो तिन बिना विचारे, सदा रहो प्रिय सुखी सुखारे।।-६
"गौतम' रौद्र रूप न भाए, बद नेकी अनुरूपहि छाए
धरम करम मंशा गुन गाए राग विराग समझ जब आए।।-७
महातम मिश्र 'गौतम'गोरखपुरी