कविताजब भी मैंमैं चुप बैठकर जब भी खुद से बात करता हूँ,मैं हर उस पल उसके साथ टहलता और विचरता हूँ।साथ मेरे दूर तक जाती है वीरान तन्हाईयां,फिर भी मैं उसकी बाहों में गर्म राहत महसूस करता हूँ।होता है सफर मेरा अधूरा दूर छीतिज तक, मैं फिर भी हर सफर में उसके साथ रहता हूँ।होती नहीं वो पास मेरे किसी भी पड़ा