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संघर्ष और मन की उथल-पुथल

hindi articles, stories and books related to Sangharsh aur man ki uthal-puthal


वो दिन मन की उलझनों का दिन उमंगे जो सुप्त पड़ी थी मानो इसी की राह थी अब ना था बांध का रुकना असंभव -सा था सीमाओं का बंधना क्षण ही में टूटने का भय और कुछ पा जाने का लय मन को अनुनादित सा करता विचारो का जखीरा उठता उठता आंधी -सा हवा का झोका प

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