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सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था

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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशितग़ज़ल  (बचपन यार अच्छा था)जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीबचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता थाबारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़रीभोले भाले चेहरे में सयानापन समाता थामिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों

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