बड़ा कौन ?
एक शर्मा जी थे जो एक कपड़े की बहुत बड़ी फैक्ट्री के मालिक थे। कुछ दिनों बाद शर्मा जी को प्रभु से लौ लग गयी। उनके जीवन में ऐसा कुछ घटा कि उन्होंने अपनी फैक्ट्री और सारा कारोबार बंद कर दिया और सन्त बन गए।अब लोग उन्हें संत के नाम से जानने लगे। अब शर्मा जी सिर्फ प्रभु भक्ति करते और शाम को बैठते और अपने अनुयायियों को प्रवचन देते !
एक दिन शर्मा जी ने अपने अनुयायियों को अपने व्यवसायी से संत बनने की घटना सुनाई..
शर्मा जी ने कहा - कि एक दिन जब मैं अपनी फैक्ट्री में बैठा था उसी समय एक कुत्ता घायल अवस्था में वहां आया। वो किसी गाड़ी से कुचल गया था, जिस से उसके तीन पैर टूट गए थे और वो सिर्फ एक पैर से घिसटते हुवे फैक्ट्री तक आया।मुझे बहुत तरस आया और मैंने सोचा कि उस कुत्ते को किसी जानवरों के अस्पताल ले जाऊं। मगर फिर अस्पताल के लिए तैयार होते समय मेरे दिमाग़ में एक बात आई और मैं रुक गया। मैंने सोचा कि अगर प्रभु हर किसी को खाना देता है तो मुझे अब देखना है कि इस कुत्ते को अब कैसे खाना मिलेगा। रात तक दूर बैठे उसे मैं देखता रहा और फिर अचानक मैंने देखा कि एक दूसरा कुत्ता फैक्टरी के दरवाज़े से नीचे घुसा और उसके मुह में रोटी का एक टुकड़ा था। उस कुत्ते ने वो रोटी उस कुत्ते को दी और घायल कुत्ते ने किसी तरह उसे खाया फिर ये रोज़ का काम हो गया। वो कुत्ता वहां आता और उसे रोटी देता या कोई और खाने की चीज़ और वो घायल कुत्ता ऐसे खा-खा के चलने के क़ाबिल बन गया। मुझे ये देखकर अपने प्रभु पर अब ऐसा भरोसा हो गया कि मैंने अपनी फैक्ट्री बंद की। व्यापार पर ताला लगाया और प्रभु की राह में निकल पड़ा और संत बनने के बाद भी मेरे पास पैसे उसी तरह किसी न किसी बहाने आते रहे जैसे पहले आते थे। ठीक वैसे जैसे उस कुत्ते को दूसरा कुत्ता रोटी खिलाता था रोज़....
शर्मा जी की ये कहानी सुनकर उनका एक अनुयायी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। शर्मा जी ने जब वजह पूछी तो उसने कहा कि - आपने ये तो देख लिया शर्मा जी कि प्रभु ने उस कुत्ते का पेट भरा मगर आप ये न समझ सके कि उन दो कुत्तों में से बड़ा कुत्ता कौन है? जो खाना खा रहा है वो बड़ा है या जो कुत्ता उसे ला कर खिला रहा है वो बड़ा है? आप खाना खाने वाले घायल कुत्ते बन गए और अपना कारोबार बंद कर दिया.. जबकि पहले आप खाना खिलाने वाले कुत्ते थे क्यूंकि आपकी फैक्ट्री से हज़ारों लोगों को खाना मिलता था। आप खुद बताईये कि पहले जो काम आप कर रहे थे वो प्रभु की नज़र में बड़ा था या अब जो कर रहे हैं वो?
शर्मा जी की आँखें खुल गयी.. *और उन्होंने दुसरे ही दिन अपना कारोबार फैक्टरी फिर से शुरू कर दी और संत शर्मा जी फिर से व्यवसायी शर्मा जी बन गए।
सारांश
*अपना कर्म करना न छोड़े, कर्मयोगी बने रहना चाहिए।..!*