सुर्खाब की देखें सूरत ,
लोग दशहरी के दीवाने ।
सफेदा का रस अलबेला ,
चौसा चखे तोही मन माने ।
तोतापरी से शेक बनाए ,
हापुस देख के मन ना माने ।
देशी के दस बने अचार ,
फजली आते मन भरमाने ।
लंगड़ा भी तो होता अद्भुत,
स्वाद सुगंध में कोई ना सानी ।
पर मेरे मन भाता सर्वाधिक ,
लगे जो दूरी से ही महकाने ।
रस ऐसा कि रहता आतुर ,
उंगलियों से छन बह जाने ।
मीठा इतना शहद सरीखा ,
श्वाद गजब है हम ये जाने ।
गुलाब जामुन भी किस्म आम की,
किसको राजा बोलो हम मानें ।
(C) @दीपक कुमार श्रीवास्तव ‘नील पदम’