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आस्था

11 फरवरी 2022

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सात महीने बाद कुंज छुट्टियों मे घर वापस आया था उसके आने से पूरे घर मे त्यौहार जैसा माहौल छाया हुआ था।  उसकी माँ कावेरीजी मुहल्ले मे अपने बेटे की तारीफ करते नही थकती थी और जायज भी था आखिर बेटा फौजी जो था हाँ , ये बात अलग है की जब कावेरीजी ने सुना की बेटा फौज मे जाना चाहता है तो उनका कलेजा धक से रह गया अपने इकलौते बेटे को सीमा पर भेजना उनके दिल को गवांरा न हो रहा था परंतु कुंज को फौज मे जाने से रोकने मे उनके आँसू भी समर्थ न हो सकें। दो साल से कुंज LOC पर तैनात था। उसकी कर्तव्यनिष्ठता और बहादुरी को देखकर उसका प्रमोशन भी हो चुका था।केवल कावेरी जी और उनके पति शुभराज को ही नही बल्कि पूरे मुहल्ले वाले को कुंज पर नाज था। कुंज स्वभाव से मिलनसार, शांत और मधुर था। बचपन से ही सभी उसे बहुत मानते थे।

  " माँ! माँ ! , बस हजार रुपये दे दो, ज्यादा नही मांगती। दोस्तों के साथ पार्टी करनी है। "  कृषा कावेरी जी से मिन्नते कर रही थी लेकिन कावेरी जी इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी।

  माँ,, मुझे भी कृषा दी के साथ जाना है,, प्लीज जाने दो न। हमारे सभी दोस्त जा रहे हैं। " कृधा भी अपने माँ को मानने मे लगी हुई थी लेकिन कावेरी जी टस से मस नहीं हुई।

  " माँ, पैसे दे दो न, दोस्त बोलते है कि कृषा का भाई आर्मी मे है लेकिन बहुत कंजूस है, बताओ तुम्हें सुनकर अच्छा लग रहा है क्या? "   दो घंटे से कावेरी जी से पैसे के लिए रिकझिक करती कृषा ने जब कुंज नाम का नाम लिया तो कावेरी जी को हार मानकर न चाहते हुए भी तिजोरी खोलनी ही पड़ी।अब बात उनके बेटे की इज्जत की थी तो उस पर हजार रुपये क्या पूरा जीवन न्यौछावर किया जा सकता था। कृधा और कृषा दोनों बहनें बहुत अच्छे से जानती थी कि माँ से अपनी बात मनवाने के लिए किस नाम शस्त्र का प्रयोग करना है। कुछ देर बाद ही साधना बुआ  कुंज के लिए रिश्ता लेकर पहुंचती है। इस बार  उनके पास मेकअप प्रोडक्ट के तालाब मे डुबकी लगाकर निकली तथा फोटो एडिटर एप्प का दुरपयोग करके अत्यंत सुंदर दिखने वाली अनेक कन्याओं की तस्वीर थी। जिसे बहुत ही उत्सुकता के साथ वो कावेरी जी को दिखा रही थी। साधना बुआ के जीवन का अब बस एक ही उद्देश्य था अपने लाड़ले भतीजे का घर बसाना तभी तो हर दूसरे महीने ऐसी ही  तस्वीरों के साथ हाजिर हो जाती हैं। लेकिन उन सभी महासुन्दरियो मे से अब तक कोई भी सुंदरी कावेरी जी के संस्कारी, सुशील, लक्ष्मी स्वरूप बहू के ढांचे मे फिट नही आ सकीं। लड़कियों का रिजेक्शन बुआ को अपना अपमान लगा वो बड़बड़ाती हुई अखबार से डूबे हुए अपने भाई शुभराज के सामने ही कुछ दूरी पर बैठ गई। परोक्ष मे ही सही भाभी के अत्याचार से पीड़ित ननद ने अपना सब दुःख - दर्द कह सुनाया । एक - आध घण्टे बोलने के बाद साधना बुआ जब शुभराज के ओर से कोई जबाब न पाई तो कारण जानने उनके पास पहुंची तो पाया कि उनके भाई केवल अखबार मे ही नही बल्कि कान में इयरफोन घुसाये पुराने गानों की दुनिया में सैर भी कर रहे है। और उनकी इतने देर की सारी मेहनत बेकार चली गई। बुआ मायूस होकर  रह गई।

कावेरी जी और शुभराज जब भी कुंज से शादी की बात करते तो वो कोई न कोई बहाना बनाकर टाल जाता था। ये देखकर कावेरी जी और शुभराज गदगद हो उठते कि उनका बेटा कितना संस्कारी है। उन्होंने अपने  कुंज के खातिर खुद ही किसी धनी - धनाढ्य घर की लड़की पसंद कर ली। दान - दहेज पर भी खूब चर्चा चली थी नगद और सामान के साथ ही लड़की वालों ने कावेरी जी का चार पहिये का सपना भी पुरा करने की बात मान ली थी   ।

पूरे घर मे हलचल थी सब दौड़ - भाग कर काम करते नजर आ रहे थे। चहल - पहल देख कर कुंज ने इसका कारण पूछा तो पता चला कि आज लड़की वाले कुंज को देखने आ रहे थे। कावेरी जी जब कुंज को इस रिश्ते के बारे मे बताया तो अचानक से मिलने वाली इस धमाकेदार खबर से घबरा गया ।  उसने मना करने की कोशिश की लेकिन कोई कुछ सुनने की मूड मे नही दिखा रहा था किसी ने उसकी बातों पर ध्यान नही दिया।

" अरे ऐसे कैसे कहीं भी शादी फिक्स कर दिये वो लोग वो भी बिना तुमसे पूछे.. और तुम चुपचाप मान लिए?? " उदय गुस्से से फट रहा था। कुंज , उदय और सत्यम बचपन से अभिन्न मित्र थे। इनकी दोस्ती केवल उनतक ही नहीं बल्कि परिवारिक मामलों तक गहरी हो गई थी। तीनों एक दूसरे के कांडो का प्रत्यक्ष गवाह होते थे लेकिन इनके सभी कांड इनतक ही सीमित रहता था।  क्या मजाल इन्होंने कभी एक दूसरे के खिलाफ मुँह खोला हो।

" और नही तो क्या,,,,पिछले छह महीने से हम भाभी के गाँव का चक्कर लगा रहे है ..तेरे सेटिंग के चक्कर मे मेरी वाली गुस्सा कर चली गई । तेरी शादी तो अब गीत भाभी से ही होगी। " सत्यम  उदय की बात पर हामी भरते ही कहा। कुंज सिर झुकाए बैठा था।

"  तो तु अपने मम्मी - पापा से कुछ नही कहेगा ?? ठीक है मेरे साथ चल। " उदय कुंज का हाथ पकड़कर उठाते हुए बोला।

" पर कहाँ?? " कुंज हैरानी से उसे देख रहा था।

" चलो, बताता हूँ... " इतना कहकर वो कुंज को लगभग खींचते हुए चल दिया। साथ में सत्यम भी चल पड़ा। 

उदय की बात सुनकर शुभराज सिर पकड़ लिए वहीं कावेरी जी धम्म से कुर्सी पर बैठ गई उनकी आँखे भर आई थी। कुंज अपराधबोध से कभी माँ - बाप को देखता तो कभी उदय को जो होंठ फैलाये कावेरीजी और शुभराज को देख रहा था।  वहीं सत्यम सबके चेहरे के अवलोकन में व्यस्त था। शुभराज को समाज मे अपने वचन  और प्रतिष्ठा की चिंता थी तो  कावेरी जी को दहेज मे मिलने वाली लक्ष्मीजी की। उन्हे पता था कि गीत के यहाँ से उनकी कोई भी उम्मीद पूरी नही होने वाली है। दोनों का हृदय इस रिश्तें को स्वीकार करने के लिए तैयार नही था । साधना बुआ उनके बीच  सशक्त मध्यस्थ की भूमिका निभाती हुई कावेरी जी और शुभराज को कुंज की बात मानने के लिए मनाने लगीं। अंततः माँ - बाप अपने बेटे के जिद के आगे हार मान लिए और उसकी खुशी के लिए उसकी पसंद की शादी के लिए तैयार हो गए। 

कुंज की  25 दिन की छुट्टी बची हुई थी तो 20 दिन बाद ही विवाह का मुहूर्त निकाल लिया गया। शुभराज और कावेरी जी सब भुलाकर दिल खोल कर बेटे के सेहरा सजा रहे थे। शादी की दो दिन पहले कुंज को उसके सीनियर का  फोन आता है जिसके बाद कुंज के साथ - साथ पुरा परिवार परेशान हो उठा। बॉर्डर पर माहौल बिगड़ने के कारण आपातकालीन स्थिति मे सभी सैनिकों की छुट्टियां खत्म कर उन्हें तत्काल सीमा पर बुलाया जा रहा था। कुंज को भी दो दिन बाद जाना अनिवार्य था। वैवहिक कार्यक्रम संपन्न होने के पश्चात् गीत बहू बन कर कुंज के घर आ गई। मुँह दिखाई के रश्म के बाद गीत कुंज के कमरे में पहुँची तो वो आर्मी की वर्दी मे तैयार हो चुका था। आहट पाकर कुंज पीछे मुड़ा तो दुल्हन के रूप मे सजी गीत बहुत प्यारी लग रही थी कुंज की नजर गीत पर ठहर सी गई। दोनों कुछ देर तक यूँ ही खामोश खड़े रहे। दोनों को समझ नही आ रहा था कि क्या कहे कैसे कहे। कहने सुनने को तो बहुत कुछ था लेकिन समय बहुत कम था।

  " मैं जल्दी ही लौटकर आऊंगा " । कुंज की धीमी सी आवाज गीत के कानों मे पड़ी । वो चाह कर भी कुछ बोल ना पाई बस आँसूं भरी आँखो से उसे देखती रही।

" मुझे माफ करना गीत, मैं तुम्हें इस तरह छोड़कर... " कुंज बात को पुरा करने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा था। उसे गीत के खातिर बहुत बुरा लग रहा था। वो अपना बैग उठाकर दरवाजे की और मुड़ गया।

" जल्दी आना...मैं इंतेजार करूँगी आपका..... " गीत की मिठी सी आवाज जैसे ही उसके कानों मे पड़ी वो पीछे मुड़ा और  गीत को अपने गले से लगा लिया उसकी आँखे भर आई । वो तेजी से अपना समान उठाकर कमरें से बाहर आ गया।गीत के आँखो से आँसू बहने लगे लेकिन उसने जल्दी से उसे पोछ लिया वो नही चाहती थी वो कुंज और उसके कर्तव्य के बीच में आये। बाहर सभी घर वालो और दोस्तों से मिलकर जब जाने लगा तो एक नजर अपने कमरे की तरफ डाली जहाँ गीत खड़ी थी उसकी आँखे नम थी लेकिन जैसे ही कुंज से नजरें मिली वो हल्का सा मुस्कुरा थी। उसे देख कुंज को बहुत सुकून सा महसूस हुआ लेकिन वो तुरन्त अपनी नजरें वहाँ से हटा लिए कि कहीं गीत के आँसू और उसकी मुस्कुराहट दोनों ही उसे इस पल मे कमजोर ना कर दे।

कुंज को गए एक सप्ताह हो गया था । पहुंचने के बाद ना  उसका फोन आया था ना कोई खबर। समाचार वाले पूरे दिन दोनों देशों के बीच बढ़ती विवादों और सीमा पर बिगड़ते माहौल की खबर दिखाया करते थे। सभी के मन मे एक अजीब सा डर पल रहा था जो उन्हें भीतर ही भीतर खाये जा रहा था। कावेरी जी बेटे की फिक्र मे घुली जा रही थी साथ ही बीच - बीच में उन्हें बहू के शुभ - अशुभ कदम का डर सता जाता था। ।उनके इस डर का परिणाम गीत को भुगतना भी पड़ता था। हालाँकि वो कभी अपनी बेटी और बहू में दो आँख नही करती थी कावेरी जी गीत को संभालती भी थी, जब गीत का मन घबराता तो वो उसे प्यार से बहुत देर तक समझाती थी। लेकिन बेटे की चिंता की आग जो उनके मन मे जल रही थी उसकी आँच बहू को भी जला दिया करती थी । गीत अंदर ही अंदर घुटती जाती थी । कुंज की फिक्र के साथ साथ नई - नवेली दुल्हन की भाग्य / दुर्भाग्य को सुनाते पड़ोसी और रिश्तेदारों की बाते उसे अंदर ही अंदर तोड़ने लगी थी।   गीत के माँ - बाप उसे अपने साथ ले जाने आये थे कि इससे गीत को थोड़ा अच्छा लगेगा। अपने परिवार मे वो कुंज की यादों से थोड़ा बाहर निकलेगी। वहाँ तो उन्हीं बातों और यादो मे लिपटी रहती है। कावेरी जी और शुभराज  ने भी अपनी सहमति दे दी लेकिन गीत ने जाने से मना कर दिया। कुंज ने लौट कर आने का भरोसा दिलाया था यही भरोसा कुंज के इंतेजार का आधार बन गए थे।  कृषा और कृधा गीत के साथ दोस्तों जैसा व्यवहार करती थी। वो कभी गीत को अकेलापन महसूस नही होने देती थी और करती भी कैसे? जाते वक्त उनके भाई ने दोनों से प्रॉमिस जो करवाया था गीत का ध्यान रखने के लिए।

सुबह सुबह दरवाजे पर खट -खट की आवाज सुनकर गीत ने दरवाजा खोला तो वो स्तब्ध सी खड़ी ही रह गई। पीछे से शुभराज की आवाज सुनकर  सचेत हुई तो वो अपनी बड़ी - बड़ी आँखे फैला - फैला कर देखने लगी और खुद के ही गालों को थपथपाकर भ्रम और हकीकत के बीच मे अंतर कर रही थी। उसके इस हरकत पर दरवाजे पर खड़ा कुंज मुस्कुरा उठा। कुंज को मुस्कुराता देखकर गीत की आँखे बरबस ही छलक पड़ी वो झट से कुंज के गले लग पड़ी। तभी वहाँ शुभराज आ पहुंचे तो गीत जल्दी से कुंज से दूर जा खड़ी हो होती है  कुंज भी शरमाते हुए मुस्कुरा देता है। वो शुभराज का पैर छूता है शुभराज बेटे को गले से लगा लेते हैं। कावेरी जी रो रोकर उसकी नजर उतारने लगती है। उनके घर मे कुंज के आने से फिर से खुशियाँ छा गई थी। कुंज से मिलने पास - पड़ोसी तथा आस - पास के रिश्तेदारों की भीड़ लग गई । गीत कृधा और कृषा के साथ किचन के कामों मे लगी थी। उसका बार - बार मन होता कि जरा कुंज को देख ले। लेकिन फिर सोचती कि "  इतने लोगों के बीच में मैं कैसे जा सकती हूँ। सभी कुंज के साथ हंस बोल रहे हैं लेकिन मेरे लिए तो उसके एक झलक पर भी सामाजिक मर्यादाओं की पाबन्दी लगी है " । गीत कुढ़ते हुए काम मे लगी रही।लेकिन दूर से ही कुंज की आवाज और हंसी सुनकर उसके दिल को बहुत ही सुकून महसूस हो रहा था। यही आवाज सुनने को वो तीन महीने से तरस रही थी। 

*********

3 साल बाद -

   पन्द्रह दिन से पूरे शहर मे हाहाकार मची हुई थी। गाड़ी - बसों और दुकानों से उठती लपटों में सारा शहर जल रहा था। लोग  डर के मारे अपने अपने घरों मे छुपे हुए थे। बाहर निकलने का सीधा मतलब था मौत के मुँह मे जाना।अब तक 56 लोगों की मौत हो चुकी थी करीब डेढ़ - दो सौ लोग घायल हुए थे।सांप्रदायिक हिंसा और दंगे की खबर हर पल समाचार मे दिखाये जा रहे थे। खबर ये भी मिल रही थी कि उन दंगो के पीछे कुछ असामाजिक तत्वों का हाथ है जो जनता को आपस मे भिड़ा कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते थे। पूरे शहर मे कर्फ्यू लगा हुआ था। पुलिस फोर्स की तैनाती की बावजूद हर दिन जगह - जगह लोगों की हत्या हो रही थी।  सुबह - सुबह पता चला कि कर्फ्यू के बावजूद सड़को पर कुछ लोगों द्वारा सारे नियम तोड़ कर प्रदर्शन किये जा रहे थे।पुलिस ने उन्हे रोकने की कोशिश की जिससे नाराज हो भीड़  द्वारा पुलिस वालों पर  हमला किये गए थे जिससे दो पुलिस वाले गंभीर रूप से घायल थे। पुलिस ने करवाई करते हुए 15 लोगों को जेल मे डाल दिया था। जिसे और दंगाई और भी भड़क गए और हर जगह तोड़ - फोड़ शुरू कर दिये थें। शाम हो चुका था माहौल बहुत  बिगड़ा हुआ था  बाहर निकलने पर सख्त मनाही था। गीत को आज दोपहर से लेबर पेन शुरू हो गया था वो दर्द से तड़प रही थी । कावेरी जी और शुभराज को समझ मे नही आ रहा था कि इस हालात मे वो क्या करें, कैसे गीत को अस्पताल ले जाएं।फोन की घंटी बज रही थी शुभराज ने देखा की कुंज का फोन आ रहा था।

  "  कुंज! कैसे हो बेटा?? फोन उठाकर शुभराज ने पूछा।

" ठीक हूँ पापा। मैं कल ही सुंदरनगर आ रहा हूँ तो जल्दी ही आप सब से मिलूँगा। "

" तुम क्यों आ रहे हो यहाँ?? तुम्हें तो अभी छुट्टी नही मिलने वाली थी। "

" सुंदरनगर मे जो दंगे हो रहे है उस रोकने के लिए अब वहाँ आर्मी तैनात की जा रही है । मेरी भी ड्यूटी लगी है। घर पर सभी ठीक तो है न पापा?? "

कुंज के पूछने पर शुभराज ने गीत  और शहर के हालत के बारे मे सब बता दिया। जिसे सुनकर कुंज भी परेशान हो उठा ।

  ‌" आप चिंता न करें,, मैं कुछ करता हूँ। तब तक आप लोग गीत का ध्यान रखिये। "  इतना कहकर कुंज फोन कट कर दिया। गीत का दर्द बढ़ता ही जा रहा था। कृधा और कावेरी जी उसके हाथ - पैर मे तेल मालिश कर रही थी। थोड़ी ही देर मे वहाँ एंबुलेंस आती है जिसमें उदय और सत्यम अपने साथ दो पुलिस वालो को लेकर पहुँचते हैं। उन्हें वहाँ कुंज ने भेजा था।सभी गीत को सुरक्षित अस्पताल लेकर जाते है। सुबह सुबह ही कुंज सुंदरनगर पहुँच गया था लेकिन ड्यूटी के कारण वो घर वालों से नही मिल सका था। अस्पताल में उदय और सत्यम पूरी जिम्मेदारी के साथ सभी का ख्याल रख रहे थे। अगली सुबह नर्स ने बच्चे की जन्म की खुशखबरी सुनाई जिसे सुनकर सभी बहुत खुश हो गए।  कावेरी जी और शुभराज ने पोते को देखने की इच्छा जताई लेकिन नर्स ने मना कर दिया क्योंकि बच्चा अभी कमजोर था साथ ही उस निमोनिया की शिकायत थी इसीलिए  उसे ICU मे रख गया था। अभी तक गीत को भी होश नही आया था। उदय और शुभराज बार - बार कुंज को फोन कर रहे थे लेकिन उसका फोन नही लगा रहा था। उदय ने सत्यम के साथ शुभराज और कृधा को घर भेज दिया और खुद कावेरी जी और साधना बुआ के साथ वहीं रुक गया। डॉक्टर गीत को होश में लाने की कोशिश मे लगे थे। 

आर्मी फोर्स लग चुकी थी जनता का आक्रोश देख आज डीआईजी साहब मामले को शांत कराने के लिए उपस्थित हुए थे। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कुंज के ऊपर थी। कुंज के साथ दो और आर्मी मैन तैनात थे। भीड़ मे मौजूद उग्रवादियों ने भीड़ में कुछ लोगों को भड़काने के लिए पिटने लगे। देखते देखते पूरी भीड़ आपस मे ही एक दूसरे को मारने पिटने लगे। कौन किसे मार रहा है, क्यों मार है कुछ खबर नही थी बस लोग खुद भी पिट रहे थे और दूसरों को भी पीट रहे थें ।इसका अवसर उठाकर कुछ लोग डीआईजी पर भी पथराव करने लगे। कुंज डीआईजी को बचाने के लिए खुद सामने आकर पत्थर को सहने लगा।इससे उसे बहुत चोट आई थी।उन्हें वहाँ से सुरक्षित निकालने के बाद उग्र जनता को संभालने लगा। शांत तो वो लोग हुए जो मात्र अपना विरोध जताने गए थे जो शांति चाहते थे लेकिन जिनका उद्देश्य ही अशांति फैलाना हो वो कैसे शांत हो सकते थे। वो जान बूझकर लोगों को प्रशासन के खिलाफ भड़का रहे थे। इसी बीच मौका देखकर कुछ उग्रवादी पुलिस व आर्मी पर भी हमला कर दिये। एक उग्रवादी पीछे से कुंज के सिर पर वार करता है उसका सिर चकरा जाता है । कुंज जैसे ही पीछे मुड़ता है वो उग्रवादी जेब मे से छिपाया चाकू निकाल कर कुंज के पेट मे दे मारता है। कुंज वही गिर पड़ता है । इस घटना मे कुंज के साथ तीन और जवान की मौत हो जाती है। 

कावेरी जी रह - रह कर घबरा उठती थी। उदय लगातार कुंज को फोन कर रहा था लेकिन उसका फोन बन्द आ रहा था।

घर आते ही शुभराज टीवी खोलकर समाचार देखने लगे।  सत्यम कुछ देर के लिए अपने घर चल गया। कृधा अस्पताल ले जाने वाले सामानों को जुटाने लगी। तभी उसे हाल से कुछ गिरने की आवाज सुनाई दी। कृधा वहाँ पहुंची तो शुभराज अपने हाथों से सीने को दबाये हुए जमीन पर गिरे पड़े हुए थे उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर जड़ी हुई थी। कृधा भागकर उनके पास पहुंचती है।

" पापा! पापा.. क्या हुआ? कृधा घबराकर रोने लगी लेकिन शुभराज कुछ नही बोल सकें। उन्हें टीवी को घूरता देख कृधा की नजर जब टीवी पर पड़ी तो वहाँ कुंज के साथ अन्य सिपाहियों की शहीद होने की खबर दिखाई जा रही थी। कुंज के बारे मे सुनकर कृधा के हाथ - पैर सुन्न हो गए। वो शुभराज के गले से लगकर फूट- फुट कर रोने लगी। थोड़ी ही देर मे मुहल्ले वाले इकट्ठे हो गए। 

दोपहर हो चुकी थी गीत को होश आ चुका था। वो बार - बार कुंज के बारें मे पूछती लेकिन कावेरी जी को कुंज के बारें मे पता नही था।  कुंज का न आना और बच्चे का ICU मे होना दोनों ही बातें गीत की घबराहट  को बढा रही थी साधना बुआ उसे समझाये रही थी।कावेरी जी शुभराज और कृधा का इंतेजार कर रही थी दोनों फोन भी नही उठा रहे थे । दो घंटे बीत गए थे उदय दवा लेकर अभी तक नही लौटा था। गीत के मायके से कुछ लोग आ चुके थे।  थोड़ी ही देर बाद उदय  गीत का डिस्चार्ज पेपर लेकर आता है। उसके आते ही कावेरी जी कृधा और शुभराज के हॉस्पिटल ना आने का कारण पूछती है। उदय शुभराज की तबियत ठीक न होने की बात कहकर उन्हें घर चलने को कहता है।

" लेकिन अभी कैसे जा सकते है,,बच्चा ICU मे है गीत भी अभी ठीक नही है ऐसे मे घर कैसे चले जाए?? " कावेरी जी हैरानी से पूछती है।

" चाची! यहाँ रहना ठीक नही है, चारों ओर बस मार- पीट हो रही है इसलिए जल्दी से चलिए आप सभी । बच्चे के साथ गीत भाभी के मायके वाले है। " उदय कावेरी जी को समझा रहा था।

" और कुंज कहाँ है उदय? अभी तक नही आया ना ही फोन किया ,, वो ठीक तो है न?? " कावेरी जी परेशान होकर पूछती है।

" फोन बन्द है उसका ,,, वो..वो ठीक होगा ।आप भाभी को तैयार कीजिये। "

" तुम्हें क्या हुआ है?? तुम्हारी आँखे इतनी लाल - लाल और सूजी हुई क्यों लग रही हैं? " साधना बुआ उसे देखती हुई बोली।

" वो.. वो रात में सो नही पाया न इसलिए...। वो नजरें चुराते हुए इतना कहकर तेजी से चला जाता है।

गीत को भी इस तरह जल्दीबाजी मे घर जाना, उदय का चुपचाप रहना बहुत अजीब लग रहा था। उसने तो अपने  बच्चे को अभी तक एक नजर देखा भी नही था। ऊपर से कुंज का कोई खबर नही मिलना,सारी बातों से दिल में भय उत्पन्न हो रहा था । गीत के भैया - भाभी अस्पताल में बच्चे के पास रुक गए।

" उदय भइया!  कुंज ठीक है न?? " गाड़ी मे बैठी गीत अचानक से पूछ बैठी उसे रह रह कर कुंज की फिक्र सताये जा रही थी। उदय बस उसके तरफ एक नजर देखकर गाड़ी से बाहर देखने लगता है  उसकी आँखे भर आईं वो क्या जबाब दे कुछ समझ नही आया।

    भीड़ के बीचों - बीच तिरंगे मे लिपटा कुंज भूमिशयन कर रहा था। कृधा और शुभराज पास मे ही अचेत सा बैठे थें।कावेरी जी की चीख से लोगों के कलेजे फट रहे थें। वहाँ उपस्थित बच्चे से बूढ़े सभी की आँखों मे आँसू भरे थे सिवाय गीत के। वो तो बस एकटक कुँज को देखे जा रही थी । वो इस स्थिति को समझने की हालत मे ही नही थी। आँसुओ की इतनी क्षमता  नही थी कि वो उसके दर्द को खुद में बहा सके । वो तो  उसके भीतर ही कहीं जम गए थे। कोई ऐसा शब्द नही था जो  उस पल में उसके मनोस्थिति को व्यक्त कर सके। वो जड़वत होकर अपने सुखी और खाली - खाली आँखो से कुंज को देखती रही थी।

  " क्या बिगाड़ा था मेरे बच्चे ने उनका,,, क्यों मार डाला उन दुश्मनों ने मेरे बेटे को??" कावेरी जी की आवाज पर गीत का ध्यान गया तो वो उसकी आँखे और सर्द हो गई।

" दुश्मन नही वो तो अपने थे,, हमारे अपने ,, दुश्मनों से तो लड़ सकते है लेकिन अपनों से कैसे लड़ते? जिनकी हिफाजत के लिए आर्मी अपने जान  तक दे देते है उनके त्याग, मेहनत और वफादारी का ये सिला दिया है अपने ही लोगों द्वारा। " कहकर गीत वहाँ से उठकर चली गई। उसकी बातों से सभी स्तब्ध रह गए।

सुहाग के निशान मिट दिये गए कुंज को अंतिम विदाई दे दी गई लेकिन उसके आँखों में आँसू के एक बूंद भी न उतरे। कुंज के जाने के  गम के साथ ही साथ सभी गीत के इस हालत को देखकर चिंतित हो रहे थे।उसे खुद का ही ख्याल नही था ऐसे मे बच्चे को कैसे संभालेगी ये सोच कर कृषा बच्चे को अपने पास रखी हुई थी। एक महीने होने को आये थे लेकिन गीत की हालत वही थी। वो अब बिल्कुल चुपचाप सी रहती थी किसी से बात ही नही करती थी। खुद को अपने कमरे तक सिमट कर रखती थी। उस दिन साधना बुआ की एक रिस्तेदार आई थी उसके साथ एक नवजात शिशु था। औरत बहुत ही हंसमुख और बातूनी सी थी। थोड़ी ही देर मे वो सभी परिवार वालों से घुल मिल गई थी म वो गीत से बातें करने का प्रयास कर रही थी लेकिन गीत को कोई रुचि नही थी उससे बात करने में। औरत के बातों पर गीत बस हां - ना मे सिर हिला दिया करती थी।

  " दीदी! जरा पकड़ो तो इसे,, मैं वॉशरूम से आती हूँ। " वो औरत इतना कहकर बच्चे को गीत के गोद मे रख दिया। गीत को बच्चे को संभालने में कोई दिलचस्पी नही थी। उसका स्वभाव उदासीन हो गया था। गीत ने अगल - बगल देखा लेकिन वहाँ कोई और नही दिखा तो मजबूरी मे चुपचाप पकड़ ली। बच्चा बार - बार अपने नन्हें नन्हें हाथ - पैर को पटक रहा था। वो कभी मुलायम मुलायम हाथों से गीत के चेहरे को पकड़ने को कोशिश करता तो कभी कानों के बाली की खींचता। अपने पैरों से बार बार गीत के पेट पर मार रहा था। गीत परेशान होकर उसे थोड़ा कसकर सीधा खडा करते हुए पकड़ ली और गुस्सा कर उसे देखने लगी। बच्चा अपने सहज स्थिति मे परिवर्तन देख रोने लगा। बच्चे को रोता देख गीत कावेरी जी और कृधा को आवाज देकर बुलाने लगी । किसी ने उसकी आवाज नही सुनी। बच्चा चिल्ला चिल्ला कर रोये जा रहा था। परेशान होकर अब उसे खुद ही चुप कराने लगी। गीत बच्चे को गौर से देख रही थी। उसके छोटे छोटे से अंगों को बड़े ध्यान से निहारने लगी। बच्चे के आँसू अब उसके मन को बिचलित करने लगा था। वो उसे सीने से लगाकर चुप करा रही थी। ऐसा करते कब उसके आँखो से आँसू छलकने लगा उसे खुद ही पता नही चला।मातृत्व स्नेह की धारा में वो सराबोर हो उठी।वो बच्चे के चेहरे को चूम कर जोर जोर से रोने लगी। अब तक दिल मे छुपे दर्द का बर्फ पिघलने लगा। आँसुओ की धारा पूरे चेहरे को भिगो दिया। सीने से चिपका बच्चा कसमसा कर फिर रोने लगा। कावेरी जी और साधना बुआ दरवाजे पर खड़े रोते हुए इस  दृश्य को देख रहे थे। बगल वाले कमरे बैठे शुभराज गीत के रोने की सुने तो उनकी भी सिसकियां बंध गई। बच्चे के साथ आई औरत वॉशरूम से बाहर आई और बच्चे को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो गीत बच्चे को लिए ही मुँह फेर कर खड़ी हो गई। बच्चे को देना अब उसके लिए मुश्किल हो रहा था वो बच्चे को अपने से दूर नही करना चाहती थी। कावेरी जी उसके पास आई  गीत को  गले से लगा लिया।

  " माँ! मेरा बच्चा,,, मेरा बच्चा कहाँ है?? मुझे मेरा बच्चा चाहिए....। " गीत की हिचकियाँ बंध गई थी।

" तुम्हारा बच्चा तो तुम्हारे ही पास है.. तुम्हारे कलेजे से लगा हुआ है। " कावेरी जी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। गीत हैरानी से कभी बच्चे को देखती कभी कावेरी जी को। साधना बुआ मुस्कुराते हुए गीत के पास आई और बोली कि - " हमें नही पता था कि बच्चे को देखकर तुम कैसा व्यवहार करोगी? तुम्हारी हालत सही नही थी। तुम्हारे मन को टटोलने के लिए हमने बच्चे को ऐसे तुम्हारे पास लाया। लेकिन बच्चे ने माँ के दर्द को कम कर ही दिया। "

बच्चा गीत के गोद मे आराम से सो रहा था। सारे जहाँ से बेखबर हो गीत उसके मासूमियत मे खोती जा रही थी। उसके चेहरे मे वो कुंज को ढूंढ रही थी। उसकी बातें उसकी यादें गीत की आँखो को नम कर रही थी। 

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" बेटा! तुम्हारे माँ - बाप सही कह रहे है। हम भी यही चाहते है तुम हमेशा खुश रहो। " शुभराज आंगन मे बैठे हुए थे वहीं पास मे गीत खड़ी थी। पिछले दो महीने से ही शुभराज और गीत के माँ बाप गीत की दूसरी शादी के लिए प्रयास कर रहे थे। लेकिन गीत इस बात के लिए बिल्कुल तैयार नही थी।

" मैं खुश हूँ यहाँ,,,अगर मेरे जीवन में कोई और आयेगा तो ये कुंज के प्यार और उसके समर्पण का अपमान होगा..  मेरे जीवन मंदिर में कुंज मेरे भगवान थे मैं किसी भी कीमत पर अपने भगवान का अपमान नही कर सकती,, उनका स्थान किसी और को नही दे सकती हूँ..। " कहते कहते गीत के गला रुंध गया।

  " मंदिर में खंडित प्रतिमा की पूजा नही होती उसके जगह नई प्रतिमा प्रतिस्थापित की जाती है।खंडित मूर्ति धीरे धीरे उपेक्षित हो ही जाती है। " शुभराज दिल को पत्थर करते हुए बोले। उनकी बात उन्हीं के हृदय को चुभ रही थी।

" प्रतिमा के बदलने से आस्था नही बदलती है,,, कुंज मात्र प्रतिमा नही बल्कि वो तो मेरी आस्था हैं। आस्था कभी बदलती नही है। " कहते कहते गीत रो पड़ी।

" समझती हूँ तुम्हारी बात को लेकिन अकेले जिंदगी गुजारना बहुत मुश्किल है,,, ये अकेलापन तुम्हें अंदर ही अंदर तोड़ डालेगा ..और अभिक,, उसे भी तो एक पिता की जरूरत होगी न,, बिन बाप के बच्चे की जिंदगी उस गहरे अंधकार से भर जाती है जिसमे उसका अस्तित्व ही विलीन हो जाती है । उसका भविष्य गुमनाम भटकता है।,,, अभिक के बारें मे सोचो जरा ,,,, । " कावेरीजी अपने आँसुओं को छुपाते उसके सिर पर हाथ फिराते हुए बोली। वो ही जानती थी कि इस बात को कहने के लिए कितना हिम्मत जुटाना पड़ा था किस दर्द से गुजरना पैदा था । वो जानती थी गीत के जाते ही उनके कुंज का इकलौता वंश अभिक भी उनसे दूर हो जायेगा जो उनके लिए असहाय था लेकिन फिर भी वो गीत  और अपने पोते की भविष्य के खातिर ये भी सहने को तैयार हो गई।

" मेरे जीने के लिए कुंज की यादें और अभिक की जिम्मेदारी ही बहुत है मुझे किसी की जरूरत नही है माँ..... आप सभी तो है न मेरे साथ। जिन्होंने कुंज को पाला है उसे संस्कार दिये थे, उसके भविष्य को सँवारा था वो ही अभिक को भी संभालेंगे.. संभालेंगे न पापा?? " गीत शुभराज के पैरों के पास बैठ कर आँसू भरे आँखो से उनकी तरफ देखने लगी। शुभराज की आँखे भर आई थी।

" पर गीत बेटा..." शुभराज ने कुछ कहना चाहा लेकिन गीत बीच में ही उनकी बात काट देती है।

" जानती हूँ  ! क्या कहना है आपको,,,पापा! आप लोग मेरे साथ कुछ गलत नही कर रहे हैं। ये शादी न करने का फैसला मेरा है मैं इसी मे खुश हूँ। आप लोग खुद को दोष मत दीजिये मेरे नसीब मे जो था वो हुआ। मैं चाहती हूँ अभिक भी अपने पिता के जैसे ही एक बहादुर सिपाही बने। वो भी आर्मी मे जाकर अपने देश की सेवा करे। इसके लिए अभिक को किसी और की नही बल्कि आपकी जरूरत है आपके संस्कारों की जरूरत है आपके प्यार की जरूरत है "। गीत की आवाज धीमी मगर तथ्स्थ थी। तभी गोद में अभिक को लेकर कृधा आती है। शुभराज अभिक को अपने गोद मे लेते है और फिर मुस्कुरा उठते है उन्होंने कावेरी जी की ओर देखते हुए कहा - " ये हमारे कुंज के देशभक्ति, कर्तव्य निष्ठता और उसके वीरत्व का अंश है,, ये गीत के प्रेम, त्याग, समर्पण से पोषित है इसका अस्तित्व कभी अंधकार में मिट नही सकता है इसका भविष्य कभी गुमनाम नही हो सकता है कावेरी,,,, ये तो हमारे अवसाद के घोर अंधकार को मिटाने वाला सूर्य है,,,, कावेरी !! हम करेंगे अपने पोते की परवरिश,,,,, हम फिर से अपनी जिम्मेदारी को निभायेंगे,, हम फिर से एक नया शुरुआत करेंगे कुंज के अंश और यादों के साथ "। शुभराज की आवाज में निश्चयता थी विश्वास था।  अभिक  शुभराज के कन्धे पर बैठा हँस रहा था। ये देख कावेरी जी और कृधा भी मुस्कुरा उठी।

गीत के होठों पर हल्की सी मुस्कान छाई थी उसने अपनी आँखे बंद कर ली। " आपके माँ - बाप की खुशी उनके पोते में है और अभिक की खुशियाँ इस परिवार में है, मैं इनसे इनकी खुशियाँ नहीं छीन सकती हूँ और  आप तो जानते हैं न कुंज मेरे दिल में आपके अलावा किसी के लिए कोई जगह नही है फिर क्यों किसी को अपनी जिंदगी में शामिल करूँ। ये गीत तो सिर्फ और सिर्फ कुंज के प्रेमधुन से भरी है भला अब इसमें किसी अन्य धुन की क्या जरूरत है। " गीत बन्द आँखे और मुस्कुराते होंठ कुंज को महसूस कर रहे थे मानो वो गीत को मुस्कुराते देख खुश हो रहा हो।


ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

लाजवाब कथानक, मूर्तता की शिल्पकार हैं आप , आपका लेखन उम्मीदें जगाता है 👌👏👏💐

19 सितम्बर 2022

Sweta Tripathi

Sweta Tripathi

वाह, क्या व्यक्त किया है भावनाओ को! बहुत खुब 👍👍

27 फरवरी 2022

Pragya pandey

Pragya pandey

28 फरवरी 2022

Thank you 🙏🙏😊

कविता रावत

कविता रावत

ख़ुशी और पीड़ा की गहन अनुभूति को बड़े ही सरल शब्दों में व्यक्त किया है आपने

14 फरवरी 2022

Pragya pandey

Pragya pandey

19 फरवरी 2022

Thank you ma'am 🙏

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

बहुत अच्छी कहानी👌👌👌

14 फरवरी 2022

Pragya pandey

Pragya pandey

14 फरवरी 2022

Dhanybad aapka🙏🙏

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत बढ़िया लिखा है

13 फरवरी 2022

Pragya pandey

Pragya pandey

14 फरवरी 2022

Dhanybad aapka 🙏🙏

12 फरवरी 2022

Pragya pandey

Pragya pandey

12 फरवरी 2022

Dhanybad apka 🙏😊

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behad shandar likha आपने 👌👌👌

12 फरवरी 2022

Pragya pandey

Pragya pandey

12 फरवरी 2022

Thank 😊❤

1
रचनाएँ
प्रेम के अनंत रंग
5.0
प्रेम के विभिन्न रंग होते है। हर किसी के जीवन में प्रेम किसी न किसी रूप मे शामिल अवश्य होता है। संयोग रस में खुशियों की बारिश करते है तो वियोग रस से दिल के दर्द को आखों से बरसाते हैं। इन्हीं रंगों को अलग अलग कहानियों के मध्यम से दर्शाया गया है।

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