कछुआ कुश्ती सीखना चाहता था। उसे सीखने के लिए वह सीधा खरगोश के पास पहुंचा। वह खरगोश से बोला- प्रिय मित्र! तुम कुश्ती के उस्ताद हो। तुम्हें कोई नहीं हरा सकता। इसीलिए मेरी इच्छा है कि मैं तुमसे कुश्ती सीखो।
खरगोश कछुए को कुश्ती सिखाने के लिए तैयार हो गया। कुछ दिनों में कछुआ कुश्ती की कला में निपुण हो चला। एक दिन एक हिरण ने कछुए को छेड़ना शुरू किया। वह कछुए का निरंतर अपमान कर रहा था। तो कछुए ने अपना आपा खो दिया। जल्दी ही उन दोनों में लड़ाई होने लगी। पहलवान कछुए ने हिरण को हरा दिया। हिरण को कुछ चोटें भी आई। इस घटना के बारे में अन्य दूसरे जानवर जानकर कछुए से डरने लगे।
अब कछुए को अपनी शक्ति पर घमंड होने लगा। अब वह अपनी शक्ति के बल पर निर्दोष जानवरों को छेड़ने लगा। उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। वह यह भूल ही गया कि शिक्षा हमेशा नम्रता सिखाती है। खरगोश उसका शिक्षक था। जब उसे इस बात की खबर लगी तो उसे बहुत बुरा लगा। उसने तय किया कि वह कछुए को इसका सबक अवश्य सिखाएगी। उसने कछुए से कुश्ती लड़ने का आग्रह किया और उसे हरा दिया। हारने से कछुए का घमंड चूर चूर हो गया और वह सुधर गया।