बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक निर्धन व्यक्ति रहता था। वह इतना निर्धन था कि मुश्किल से अपने परिवार के लिए एक वक्त का खाना जुटा पाता था।
लेकिन उसने कभी अपनी निर्धनता की शिकायत किसी से नहीं की। उसके पास जो कुछ था वह हमेशा उसी से संतुष्ट रहता था।
वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। इसलिए वह पूजा करने के लिए हमेशा मंदिर जाता था। मंदिर जाने के बाद ही वह अपने कार्य पर जाता।
एक दिन भगवान को इस दरिद्र भक्त पर दया आ गई। इसलिए वह जब भगवान के दर्शन के लिए मंदिर में गया तो वहां भगवान ने सोने के सिक्कों से भरा हुआ एक थैला रख दिया। वह भक्त मंदिर आया और आंखें बंद कर मंदिर के चारों ओर भगवान का ध्यान करते हुए परिक्रमा करने लगा।
आंखें बंद होने के कारण वह सोने के सिक्कों से भरा थैला नहीं देख पाया और यूं ही चला गया। यह देखकर भगवान ने सोचा- समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता।