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इंद्रदेव और शहजादा

7 फरवरी 2022

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                                    (१)

देवराज इंद्र की आज्ञा पाते ही उसके देवदूत जो उन्होंने बुलाए थे उसने उसे प्रणाम किया और वायु वेग से शहजादा हामिद और वनपरी की सहायता के लिए चल पड़ा।
                           शहजादा बड़ी तेजी से गिरता जा रहा था। वह ब्रह्मांड में अपना संतुलन कायम नहीं रख पा रहा था। जिस कारण जितना सीधा होता उतना ही उलट जाता। शहजादे को लगा उसका अंतिम समय निकट आ गया है। शहजादे ने ईश्वर को याद किया और आंखें बंद कर ली।
  शहजादे के शरीर को अचानक धक्का लगा और वह अपने स्थान पर स्थिर हो गया।
                      शहजादे को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह ब्रह्मांड में ऐसे खड़ा था मानो जमीन पर खड़ा हो। शहजादे ने अपनी आंखें खोली। तभी उसकी दृष्टि वनकन्या पर पड़ी। वह एक देवदूत के साथ उड़ती हुई उसी ओर आ रही थी। देवदूत के हाथ में उसकी तलवार थी।
                                       शहजादे ने जो भी देखा उसे उस पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसे लगा कोई देवी शक्ति उसकी सहायता कर रही है।
                       कुछ ही पलों में एक कन्या और देवदूत उसके निकट आ गए। देवदूत ने कहा हमारे साथ इंद्रलोक चलिए। इतना कहकर अपने साथ लाए तलवार को भी शहजादे को दे दिया।
         शहजादे ने देवदूत की तरफ देखते हुए कहा आप कौन हैं?
     देवदूत ने कहा मैं इंद्रलोक का निवासी देवदूत हूं और इंद्र देव के आदेश पर तुम्हारी सहायता के लिए आया हूं। लेकिन...।
     शहजादे ने कहा आप अपनी बात अधूरी छोड़ कर किस चिंता में डूब गए?
             देवदूत ने कहा तुम्हें जिस ब्रह्मास्त्र की तलाश है वह मेरे पास ही है। किंतु मैं इसे इंद्र की आज्ञा के बिना तुम्हें नहीं दे सकता। इंद्रदेव तुम्हारी परीक्षा लिए बिना तुम्हें ब्रह्मस्त्र देने की अनुमति नहीं देंगे।
                                     देवदूत इंद्रदेव मेरी क्या परीक्षा लेंगे? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा। शहजादे ने कहा।
                                                          देवदूत ने कहा शहजादे तुम्हें तीन परीक्षाएं देनी होंगी। पहली तुम्हें आग पानी का दरिया पार करना होगा। दूसरी तुम्हें मायावी विशाल पक्षी का वध करना होगा जो की दैत्याकार है। तीसरी परीक्षा इंद्रलोक में रहने वाली मेनका लेगी।
                                                           शहजादे ने कहा देवदूत यह तो बड़ी कठिन परीक्षाएं हैं। इन परीक्षाओं में तो केवल देवता ही सफल हो सकते हैं।
                                          देवदूत ने कहा तुम घबराओ नहीं इन परीक्षाओं से गुजरने के लिए तुम्हें कुछ ना कुछ उपाय तो करना ही होगा।
                         देवदूत ने इंद्र से ना डरते हुए शहजादे को तीनों परीक्षाओं में से गुजरने का रास्ता बता दिया। उन्होंने कहा कि पानी और आग दोनों पर बराबर बराबर अपना संतुलन बनाना। एक पांव आग पर दूसरा पानी के ऊपर रखना। तुम बड़ी ही सरलता से वह दरिया पार कर जाओगे।
                         दूसरी परीक्षा के लिए तुम इंद्रधनुष लेकर उस मायावी के मस्तक पर तीर चलाना उसके प्राण उसी मस्तक में है।
     तीसरी परीक्षा में तुम मेनका को बहन कह कर संबोधित करना। उसकी आंखों को मत देखना। जिससे तुम तृतीय परीक्षा भी उत्तीर्ण कर जाओगे।
                         शहजादे ने कहा आपने इंद्र के क्रोध की परवाह न करते हुए मेरी सहायता कि मैं आपका यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा।
                          शहजादे को इंद्रलोक ले जाने के लिए वनपरी ने एक कालीन पेश किया। शहजादा और वनपरी कालीन में सवार हो गए और उनका कालीन इंद्रलोक की ओर उड़ चला।
               देवदूत उन्हें इस आगे-आगे उनका मार्ग दिखा रहा था।
                       

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