(२)
शहजादा और वनपरी को देवलोक पहुंचने में अधिक समय नहीं लगा। देवलोक पहुंचकर वे सीधा इंद्र के दरबार में पहुंचे।
इंद्रदेव अपने सभी साथियों सहित वही प्रतीक्षा कर रहे थे। शहजादे और वनपरी के पहुंचने पर इंद्रदेव ने उठकर उनका स्वागत किया।
इंद्रदेव रात की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने शहजादे को एक बार ऊपर से नीचे तक देखा और बोले ब्रह्मास्त्र एक महत्वपूर्ण अस्त्र है। इसे देने के लिए मुझे पहले तुम्हारी परीक्षा लेनी होगी।
देवराज आप महान हैं आप जो भी करेंगे मुझे स्वीकार्य होगा। मैं मानवों को मुक्त कराने के लिए कठिन से कठिन परीक्षा देने को तैयार हूं। शहजादे ने विनम्रता से कहा।
इंद्रदेव ने कहा यह जो सामने तुम्हें आग का दरिया दिखाई दे रहा है। उसी के पास पानी का दरिया भी है। आग और पानी के जरिए दूसरी तरफ जाकर दैत्याकार पक्षी मिलेगा। वह मायावी है। अगर तुम उसका सर कलम करके लाओ तो मैं तुम्हें ब्रह्मास्त्र दे सकता हूं।
शहजादे ने कहा देवराज उस पक्षी का वध करने के लिए मुझे आपका धनुष चाहिए।
इंद्रदेव ने कुछ सोचते हुए अपना धनुष बाण शहजादे को दे दिया और कहा तुम जिस परीक्षा में जा रहे हो उसमें तुम्हारे प्राण भी जा सकते हैं।
शहजादे ने कहा मुझे मरने से डर नहीं लगता। लेकिन मुझे खुशी होगी, यदि मैं यह परीक्षा उत्तीर्ण करूं और इंसानों की सहायता कर सकूं।
शहजादे ने अपने हाथ में तलवार और कंधे पर धनुष टांग लिया। आग और पानी पर बराबर बराबर संतुलन रखते हुए बढ़ने लगा। आग के दहकते अंगारे उसे बेचैन कर रहे थे। लेकिन उसने भगवान को याद किया और आंखें बंद कर एक पैर आग के दरिया में रख दिया। आग के दरिया में पैर रखते ही शहजादे को लगा उसके पूरे शरीर में आग लग गई है।
उसका शरीर गर्म लोहे की तरह तपने लगा। अंगारे की तरह लाल हो गया। किंतु उसने तुरंत दूसरा पैर पानी के दरिया में रखा। उसकी सारी गर्मी शांत हो गई।
आग के दरिया को पार करते ही उसके कानों में एक भयानक अट्टहास गुंजा। सावधान शहजादा उसने नजर घुमाई देखा। एक भयानक पक्षी अट्टहास कर रहा है।
शहजादे को उस पक्षी के बारे में पहले से ही पता था। लेकिन उसने गलती कर दी। उसने अपनी तलवार निकाली और पक्षी पर वार करने लगा। पक्षी तलवार की चोट से क्रोधित हो गया और शहजादे को अपनी चोंच में पकड़कर उछलने लगा।
तुरंत शहजादे को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने अपने कंधे पर लटका हुआ धनुष बाण निकाला और एक ही वार से पक्षी के सिर पर तीर मारा। तीर के प्रभाव से वह पक्षी मृत्यु को प्राप्त हो गया।
पक्षी का वध कर शहजादा ज्यों ही मुड़ा उसने देखा उसके पीछे इंद्रदेव खड़े थे। अब ना वहां आग का दरिया था ना वह पक्षी।
इंद्रदेव ने कहा तुम दोनों परीक्षाओं में सफल हुए हो। आज की रात तुम इस लोक में विश्राम करो। कल प्रातः होते ही ब्रह्मास्त्र को अपने साथ लेकर पृथ्वीलोक लौट जाना।
इतना कहकर देवराज कुछ पल के लिए रुके और फिर निकट खड़ी देवलोक की सर्वाधिक सुंदर नृत्यांगना मेनका से कहा मेनका तुम शहजादे को अपने साथ ले जाओ। संपूर्ण देव लोक का भ्रमण करवाओ और इनके विश्राम की व्यवस्था करो।
जो आज्ञा देवराज मेनका ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी आवाज इतनी मधुर थी ऐसा लग रहा था मानो सितार झंकृत हो रहे हैं। इसके बाद मेनका शहजादे की तरफ़ पलटी और बोली शहजादे चलिए मैं आपको इंद्रलोक का भ्रमण करवाती हूं।
शहजादे ने कहा बहन मेनका मेरा स्वर्ग धरती पर है। मुझे नदी के तिलिस्म में फंसे अनगिनत वृक्ष मानवों को नदी के तिलिस्म से बचाना है मुक्त करवाना है उन्हें। मैं तुमसे और देवराज इंद्र से पृथ्वी पर लौटने की आज्ञा चाहता हूं।
मेनका ने कहा तुम धन्य हो, एक नेक इंसान हो।
देवराज ने शहजादे को ब्रह्मास्त्र देने के लिए देवदूत को बुलाया। देवदूत वही पास खड़ा था। इंद्रदेव के कहने पर उसने शहजादे को ब्रह्मास्त्र दे दिया।
इंद्र ने शहजादे की भूरी भूरी प्रशंसा की और मानव के कल्याण के लिए उसके उठाए गए इस कदम के लिए उसे आभार प्रकट किया।