एक दिन महेश अपने घर के बाहर एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठा हुआ था। अचानक उसे कुछ दूरी पर कोई चमकती हुई वस्तु दिखाई दी। उसने ध्यानपूर्वक देखा तो वह एक घर था। वह बोला- अरे वाह! यह तो सोने का घर है! महेश बहुत जल्दी-जल्दी उस घर को देखने के लिए दौड़ा।
वह बहुत तेजी से दौड़ रहा था ताकि जल्दी से उस घर तक पहुंच सके। लेकिन जब वह घर के पास पहुंचा तो उसने देखा कि वह एक पुराना घर है। उस पर जब सूर्य की किरणें पड़ रही थी तो वह स्वर्णिम लग रहा था। जब वह फिर पहाड़ी पर पहुंचा तो उसने देखा उसका घर भी उसी तरह चमक रहा था, जैसे उसे पुराना वाला घर चमकता हुआ दिखा था।
उसके घर की छत पर पड़े कुछ कांच के टुकड़े सूर्य की रोशनी पड़ने के कारण चमक रहे थे और जिस कारण वह भी सोने का दिखाई दे रहा था। महेश को हंसी आ गई। उसने सोचा- मैं कितना मूर्ख हूं। वह वापस अपने घर की तरफ लौट आया। वह समझ गया कि प्रत्येक चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती।