बहुत समय पहले की बात है, एक कुम्हार था। वह बहुत ही सुंदर सुंदर बर्तन बनाया करता था। उसके बर्तनों का व्यवसाय बहुत अच्छा चल रहा था। लेकिन कभी-कभी लोग बर्तनों के आसानी से टूटने की शिकायत करते थे।
एक दिन उसने देवी मां से प्रार्थना की कि हे देवी मां कृपा करके मेरे बर्तनों को न टूटने वाला बना दीजिए। मैं नहीं चाहता कि ग्राहक बर्तनों के टूट जाने के कारण परेशान हो। मैं ग्राहकों की शिकायतें सुनते सुनते परेशान हो चुका हूं।
देवी मां प्रकट हुई और उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा पुत्र जैसी तुम्हारी इच्छा। इतना कहकर देवी मां अंतर्ध्यान हो गई। अब कुम्हार के सभी बर्तन न टूटने वाले हो गए। अब कोई भी ग्राहक उसके पास शिकायत लेकर नहीं आता था। लेकिन ग्राहकों ने अब कुमार के बर्तन खरीदने कम कर दिए थे, क्योंकि उनके पुराने बर्तन टूटते ही नहीं थे। वह कुम्हार 1 दिन फिर देवी मां से प्रार्थना करने लगा हे देवी मां जैसे मेरे बर्तन पहले टूटते थे वैसे ही बना दीजिए। अब मैं कभी प्रकृति के विरुद्ध नहीं जाऊंगा।
देवी ने उसकी इच्छा पूर्ण की और कहा कि हमें कभी भी प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आचरण नहीं करना चाहिए। अब एक बार फिर कुम्हार का व्यवसाय खूब फलने फूलने लगा।