ज़ील अपने पिता से बहुत प्यार करती थी। आज स्कूल से आने के बाद वह निरंतर मम्मी से पूछ रही थी। मम्मी पापा कब आएंगे? मम्मी अपने काम में व्यस्त होने के कारण खींज़कर बोली तुम्हें तो पता ही है वे रोज शाम को आते हैं।
क्या बात है आज कुछ खास बात है क्या? मम्मी ने पूछा।
ज़ील ने नहीं बताया।
वह इसे रहस्य रखना चाहती थी बोली- नहीं, कुछ नहीं। बस ऐसे ही पूछ लिया।
ज़ील की मम्मी ज़ील की आदत जानती थी। वह समझ गई कि वह अपने पापा को कुछ बताना चाहती है। वह मुस्कुराते हुए अपने काम में लग गई।
ज़ील के पिता जब शाम को लौटे तो वह दौड़ कर पापा के पास जा गई और उसने उन्हें कागज दिखाया।
क्या है यह मेरी नन्ही परी? पापा ने कागज को देखते हुए पूछा। पापा हम स्कूल की तरफ से दोस्तों के साथ कारवां रिसोर्ट जा रहे हैं पिकनिक पर। ज़ील ने जल्दी से अपनी बात बताई।
कहां शिवराजपुर तो... (फिर बाबा ने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया)
पापा आपको इस कागज पर साइन करने हैं आपको मुझे पिकनिक पर भेजने में कोई आपत्ति तो नहीं है। ज़ील ने पूछा।
अच्छा तो ऐसा बोलो ना। लेकिन सोच लो, अगर आपत्ति हुई तो... (उसके पिता ने जेब से कलम निकालते हुए पूछा) क्यों? पापा जी ने सवाल किया।
बेटी मेरे यह साइन करने पर तुम मुझे वचन दो कि तुम वहां कोई शरारत नहीं करोगी।
ज़ील ने पिता के गले में हाथ डालते हुए कहा पापा मैं बिल्कुल शिकायत नहीं करूंगी। ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिससे आपको लज्जा हो।
पापा ने कहा हमें आपसे ऐसी ही उम्मीद है और उसके गाल को थपथपाया।
2014 फरवरी का वह दिन जब ज़ील पिकनिक पर गई। पूरे दिन का कार्यक्रम था। सुबह से ही सभी बच्चे उत्साहित थे। आज के दिन ज़ील कुछ जल्दी ही जग गई।
वह नियत समय पर स्कूल पहुंची। स्कूल से कुल 4 बसें जा रही थी। बस में बैठकर वे सभी पावागढ़ के पास जांबुआ गांव के निकट पहुंचे। जहां से कारवां रिसोर्ट पहुंचना था।
रिसोर्ट में बच्चों के मनोरंजन के लिए बहुत कुछ था। करीब 4:00 बजे उन लोगों को घर के लिए निकलना था। सही समय पर 3:00 बजे बच्चों को लेकर रवाना हो गए। लेकिन चौथी बस के बच्चे अभी नहीं आए थे।
जब उनके बच्चे आए तब वे आगे की बसें जा चुकी थी। सात पहुंचने की जल्दी में चौथी बस के ड्राइवर ने बस की गति बढ़ा दी। तेज गति से उछलती बस में, बच्चों को खूब आनंद आ रहा था। तभी सामने आ रहे एक वाहन से आगे निकलने के क्रम में ड्राइवर ने तेजी से अपने बस की गति बढ़ाई।
अचानक बस के तेज हो जाने पर बस ड्राइवर अपना नियंत्रण खो बैठा। उसने तुरंत अपने दोनों हाथों को अपने सिर के पीछे लगाया और अपना सिर अपने हाथों के बीच डाल दिया। बस सिर्फ एक ही तरफ के पहिए पर थी।
बस पलट गई और घसीटते हुए कुछ दूरी तक पहुंची। खिड़कियों के कांच टूटे और बिखर कर बच्चों के शरीर में घुस गए। कुछ ही क्षणों में उल्लास क्रंदन में बदल गया।
बस में बैठे बच्चों को बहुत चोंटे आई। सभी चीख-पुकार मचा रहे थे। कुछ पल तो किसी को समझ नहीं आया कि क्या किया जाए।
लेकिन ज़ील ने सतर्कता से कदम बढ़ाए। उसने जल्दी जल्दी दो तीन बच्चों को बस से बाहर निकाला और उनकी टीम बनाकर, अपना बचाओ अभियान शुरू कर दिया।
जिन बच्चों की हालत ज्यादा खराब थी। वे कोमा में ना चले जाए इसके लिए उसने उनके गालों को थपथपाना शुरू कर दिया। ऐसा ही उसने अन्य बच्चों को भी करने को कहा।
उसने वहीं राह में चल रहे एक व्यक्ति को रोककर 100 नंबर डायल कर पुलिस और 108 नंबर डायल कर एंबुलेंस को फोन करने का निर्देश दिया। लगभग 15 से 20 मिनट में ही पुलिस और एंबुलेंस की गाड़ी आ गई।
घायलों को नजदीक के हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया गया। समय पर की गई इस सहायता द्वारा बच्चों को कम हानि हुई। जिसका श्रेय ज़ील की सूझबूझ को जाता है।
परंतु जी़ल ने कहा कि मजबूत आत्मिक शक्ति के कारण ही यह संभव हो सका कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह संयम रख सकी और अपने साथियों की मदद से सभी की जान बचा सकी।
ज़ील के इस साहसिक कार्य के लिए उसे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार देकर, राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया।