सर्दियों के दिनों में ठंड से बचने के लिए हर कोई प्रयास करता है । ठंड से बचाव के लिए लोग गर्म कपड़े और गर्म खाने का अधिक उपयोग करते है, लेकिन ठंड नही मिटती । लेकिन क्या आपने कभी ऐसी बूटी देखी है, जो आपको सर्दी में भी गर्मी का अहसास कराती हो । और साथ ही कई प्रकार के रोगों को भी दूर करती है । उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पायी जाने वाली एक ऐसी बूटी है, जिसे छूने से लोग घबराते हैं । इस बूटी को बिच्छू घास कहते हैं । इससे स्थानीये भाषा में कंडाली के नाम से जाना जाता है । इस बूटी को गलती से भी छू लिया जाए तो उस जगह खुजली व झनझनाहट शुरू हो जाती है, लेकिन इस बूटी में अनेक गुण भी हैं । इस बूटी से जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ भी तैयार किए जाते है । यह बूटी औषधीय गुणों से भरपूर होती है ।
इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है. बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं । पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही उसमें खुजली व झनझनाहट शुरू हो जाती है । जो कंबल से रगड़ने से दूर हो जाती है । इसका असर बिच्छु के डंक जैसा होता है । इसीलिए इसे बिच्छु घास कहा जाता है ।
औषधीय गुणों से भरपूर इस पौधे का विशेष महत्व है । बिच्छू घास का प्रयोग पित्त दोष, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया के इलाज में तो होता ही है, इसके बीजों को पेट साफ करने वाली दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है । माना जाता है कि बिच्छू घास में काफी आयरन होता है । इसमें विटामिन ए, सी आयरन, पोटैशियम, मैग्निज तथा कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । इसको प्राकृतिक मल्टी विटामिन नाम से भी जाना जाता है ।
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जंगलों में उगने वाली बिच्छू घास से उत्तराखंड में जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ व बैग तैयार किए जा रहे हैं। चमोली व उत्तरकाशी जिले में कई समूह बिच्छू घास के तने से रेशा निकाल कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं ।
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