नीलिमा के घर आ जाने पर भी, धीरेन्द्र उसके सामने बड़ी मिट्ठी और प्यारी बातें करता है,किन्तु अब बेटे के रोने का बहाना कर और रात्रि में नीद ख़राब न हो इसीलिए अपनी बेटियों के साथ ,सोने लगा। ये तो सिर्फ़ नीलिमा की'' आँखों में धूल झोंकना'' था। नीलिमा ने धीरेन्द्र का कहा मान ,चम्पा के लिए एक चारपाई अपने पास ही बिछवा ली , ताकि वो आवश्यकता पड़ने पर ,पास ही रहे। जब नीलिमा सो जाती ,तब चम्पा धीरे से दबे क़दमों से कमरे से बाहर आ जाती और धीरेन्द्र तो पहले से ही, वहाँ उपस्थित होता। वहाँ कोई बिस्तर नहीं था ,किन्तु सोफ़ा ही उनके नाजायज़ प्रेम का एकमात्र गवाह है।दोनों प्रेम में ,इस कदर डूब जाते ,न ही चम्पा को इस बात का इल्म रहता कि कल वो अपने माता -पिता से कैसे नजरें मिलाएगी ?और आगे इस रिश्ते का भविष्य क्या होगा ? धीरेन्द्र भी अपनी हवस में भूल गया कि इन सबका नीलिमा और उसकी बेटियों पर क्या असर होगा ?
चम्पा के जिस्म की आग भी बढ़ती जा रही थी ,ऊपर से धीरेन्द्र से जब चाहे इच्छा होती ,पैसे भी मांग लेती।
आजकल चम्पा बहुत खुश रहती है ,देखा नहीं ,उसके चेहरे की चमक भी बढ़ती जा रही है ,नीलिमा धीरेन्द्र से बोली।
हाँ ,अब घर में तुम्हारे संग जो रहती है ,मनमर्जी का खाती है ,कहकर धीरेन्द्र कमरे से बाहर आ गया। सामने से चम्पा आ रही थी। आज तो शायद ,साज -सज्जा करवाकर आई है क्योंकि अब तो पैसा भी बहुत मिल रहा है। उस पैसे को अपने ऊपर खर्चा कर रही थी। देखते ही धीरेन्द्र ने उसे ''बहुत अच्छी लग रही हो ''कहकर अपनी बांहों में कसकर में भींच लिया। उसने इतनी जोर से उसे अपनी बाजुओं में दबा लिया वो कसमसाकर रह गयी। उसने धीरेन्द्र की तरफ मुँह किया ,तभी धीरेन्द्र अपने अधरों से उसके अधरों को चूसने लगा। अभी दिन का समय था ,कभी भी नीलिमा आवाज लगा सकती थी , दोनों इसी तरह ही लिपटे -लिपटे स्नानागार में घुस गए। चम्पा अब उससे छूटना चाह रही थी किन्तु धीरेन्द्र पर तो जैसे उसका भूत सा सवार हो गया था ,उसने फुहारा चला दिया ,पानी उनके तन को भिगो रहा था किन्तु उनके तन की गर्मी उस पानी को गर्म कर दे रही थी। चम्पा के तन से गिरती बूंदों को धीरेन्द्र चूम रहा था उसकी गर्दन के बहते जल को पी रहा था।
उसके कोमल अंगों से खेलते हुए ,वो आगे बढ़ रहा था। एकदूजे के सांसों की गर्मी , दोनों को मदहोश किये जा रही थी। जब तक दोनों शांत नहीं हो गए ,उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की। अब चम्पा बोली -मैं तो सुबह ही नहा चुकी थी ,तुमने मुझे दुबारा भिगो दिया। अब वो धीरेन्द्र को आप की जगह तुम कहने लगी थी। धीरेन्द्र संतुष्ट होकर ,बाहर आते हुए बोला -गर्मी खूब है ,दुबारा नहा ली तो क्या हो गया।
धीरेन्द्र के चेहरे पर चमक थी , जब वो अपने कमरे में गया।
आज कैसे ?दुबारा नहा लिए ,आज अपनी बेटियों के बाथरूम में ही नहा लिए।
हाँ ,गर्मी बहुत हो रही है ,सोचा नहा लूँ ,बाद में ध्यान आया, मेरे तो कपड़े ही इधर हैं।
ये...... चम्पा ! भी न, जाने किधर गयी ? ये लड़की भी न ,अब लापरवाह होती जा रही है ,कितनी देर से आवाज लगा रही हूँ ? न जाने कहाँ चली गयी ?
तुम जरा बाहर जाकर देखना ,आपका ये लाडला शैतान रोये जा रहा है ,अब मेरे दूध से इसका पेट नहीं भरता इसीलिए चम्पा से दूध की बोतल लाने के लिए कह रही थी ,कहते हुए ,वो अपने बिस्तर से उठी।
उसे उठते देखकर ,धीरेन्द्र बोला -तुम अभी लेटी रहो ,मैं कह देता हूँ और अपने कमरे से बाहर खड़े होकर उसने चम्पा को आवाज लगाकर दूध की बोतल मंगवाई।
चम्पा के मन में ,अब धीरेन्द्र के प्रति वो' साहब वाला 'सम्मानित भाव नहीं रहा ,अब तो वो अपने को नीलिमा की जगह ही समझने लगी थी ।धीरेन्द्र और चम्पा जब भी समय मिलता अपने तन की प्यास बुझा लेते।
एक दिन तो उसकी बेटी ने ही ,उसे देख लिया और बोली -हाआआआआआ........
उसे देखकर धीरेन्द्र हड़बड़ा गया ,उसने अपनी बच्ची को बहलाया उसे चॉकलेट दिलवाई ,जब तक वो भूल नहीं गयी। तब तक उसके साथ ही रहा।यह सब देखकर नीलिमा को लगा ,अब दोनों बच्चियों के साथ रहते हैं ,इसीलिए इनसे लगाव हो गया है,अब इन्हें भी समय देने लगे हैं,किन्तु वो ये नहीं जानती थी ,कि इनकी आड़ में वो अपना पाप छुपा रहा है। एक माह हो जाने पर नीलिमा बोली -अब इसकी [चम्पा ]छुट्टी कर दो!
धीरेन्द्र हड़बड़ा गया और बोला -क्यों क्या हुआ ?मन ही मन सोच रहा था कहीं इसे हम पर शक तो नहीं हो गया।
अब रात्रि को तो मैं संभाल ही लूँगी ,दिन में ही जैसे पहले काम करने आती थी, ऐसे ही आ जाया करेगी। बहुत दिन हो गए ,अब तो आपको अपनी पत्नी के पास होना चाहिए। अब आप अपनी पत्नी और अपने बेटे के पास सोइये कहते हुए उसने थोड़ा शरमाकर नजरें झुका लीं।
उसकी बात से धीरेन्द्र में कोई उत्साह नहीं जागा ,बहुत दिनों से नीलिमा से ही तो दूर था किन्तु नीलिमा के बिना भी उसकी रातें रंगीन होती थीं। चम्पा को भी ,नीलिमा की बात सुनकर बुरा लगा ,उसे लग रहा था ,जैसे किसी ने उसका अधिकार छीन लिया हो। उसे नीलिमा का इस तरह बोलना ,उसका उठना भी नहीं भाया। उसका बस चलता तो नीलिमा को वापस बिस्तर पर लिटा दे। जब नीलिमा के सामने धीरेन्द्र ने चम्पा से यही बात कही ,तब चम्पा नीलिमा को घूर रही थी उसके पश्चात ,एक गहरी नजर धीरेन्द्र पर डाली और चुपचाप कमरे से बाहर आ गयी।
धीरेन्द्र उसे समझाने बाहर आया ,परेशान होने की आवश्यकता नहीं ,मैं चुपचाप पैसे देता रहूंगा। हम दोनों दिन में भी मिल सकते हैं। उसके मनाने पर चम्पा मान गयी।
नीलिमा के टांके तो अब कट चुके थे किन्तु डॉक्टर ने अभी भी कुछ परहेज़ बताये थे।
धीरेन्द्र के दोस्त ,उससे बेटा होने की ख़ुशी में ,दावत मांग रहे थे ,जब नीलिमा सवा महीने की हो गयी ,तब उसने सोचा -बेटे के नामकरण के बहाने दोस्तों की दावत भी हो जाएगी। यही सोचकर उसने बहुत से लोगों को बुलाया। वो अपने बच्चे के' नामकरण 'पर बहुत बड़ा आयोजन करता है। जिसमें बहुत सारे रिश्तेदार और दोस्त भी आये।
यार...... तू जो भी करता है ,बढ़िया करता है ,तूने अच्छा आयोजन किया। अपनी प्रशंसा सुनकर धीरेन्द्र भी ''ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था''।
एक दिन अचानक नीलिमा धीरेन्द्र से बोली - मैं मायके जा रही हूँ। धीरेन्द्र मन ही मन खुश तो था किन्तु परेशान भी हो उठा ,इसे कहीं कुछ पता तो नहीं चल गया। इतने वर्ष हो गए ,आज तक तो इसने कभी जाने के लिए नहीं कहा ,आज कैसे ???
क्या ऐसे ही कुछ प्रशन आप लोगों के मन में उठ रहे हैं? आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ते रहिये- ऐसी भी ज़िंदगी