सङकों पर भीख मांगते बच्चों को सभी देखते हैं। कुछ आंखें बंद कर चुपचाप निकल जाते हैं। पर ज्यादातर कुछ न कुछ दे देते हैं। कोई भी यह जानने की कोशिश नहीं करता कि ये कौन बच्चे हैं। पुलिस और प्रशासन भी अक्सर मौन रहता है। पर रमाकांत कुछ अलग तरह के पुलिस अधीक्षक बनकर आये।
बस स्टाफ के सामने भीख मांग रही लङकी को देख गाङी रुकबा दी। लङकी आशा में उनके पास आ गयी।
" कुछ दे दो.. ।बाबू... ।"लङकी रटा रटाया बोल रही थी।
" कौन हो तुम। तुम्हारे माॅ बाप कहाॅ हैं। इस तरह भीख क्यों मांग रही हो।" रमाकांत पूछ रहे थे। और लङकी चुपचाप खङी थी।
" तुम्हारा रोज का ड्रामा है। चल भाग चुपचाप... । यह बङे साहब हैं। अभी जेल में बंद कर देंगें। "आगे ड्राइवर के बगल में पुलिस कान्सेबल दोलतराम बैठा था, उसने लङकी को फटकार दिया। लङकी डर के मारे भाग गयी।
दोलतराम थोङी लंबी कद काठी का हष्ट-पुष्ट जबान था। वैसे कई थानों में रह चुका था। पर जब से उसकी पोस्टिंग एस पी साहब की सुरक्षा में हुई, उसे ज्यादा भा गयी। वैसे उसकी एक बार बदली एक चौकी में भी हो गयी थी। पर उसने अधिकारियों की सिफारिश से फिर से पुरानी जगह तैनाती पा ली। एस पी साहब के साथ रहने का थोड़ा रौब ज्यादा था।
" तुम मेरे बीच में कैसे बोले। मैं लङकी से बात कर रहा था। और तुमने उसे भगा दिया। "
" सोरी सर.. ।आप यहाॅ नये आये हों। सब अपराधियों की औलाद हैं। बङे चोरी चगारी करते हैं। बच्चे भीख मांगते हैं। कई बार पकङा है इन सालों को। हरामी... ।बच्चे भी भीख मंगवाने और चोरी कराने के लिये पैदा करते हैं। "
" तुम्हें तो सीनियर अधिकारी के सामने बात करने की तमीज भी नहीं है। यह कोई थाना नहीं है कि जिसे मन आये गाली बक दो। अभी चाहूं तो तुम्हारी नौकरी के लेने देने पङ जायेंगें। "
दोलतराम को अधिकारियों का भाव पढना अच्छी तरह आता था। आज तक कितने अधिकारियों का कृपा पात्र रहा। पर शायद पहली बार गलती कर बैठा। अभी तक जिन पुराने अधिकारियों के साथ रहा था, वैसा ही रमाकांत को समझ लिया। पर खुशामद का अस्त्र प्रयोग कर उसने एस पी साहब को मना लिया। वैसे भी एस पी रमाकांत का उद्देश्य केवल उसे हङकाना था।
पर रमाकांत के मन में दोलतराम की बात घर कर गयी। आखिर इन बच्चों के भीख मांगने के पीछे का क्या राज है। पता तो करना होगा।
दूसरे दिन सुबह सुबह ही उन्होंने इंस्पेक्टर राधा को तलब कर लिया।
" जय हिंद सर... ।" इंस्पेक्टर राधा ने साहब को सैल्यूट किया। और उनके निर्देश पर सामने कुर्सी पर बैठ गयीं।
" मैडम... ।यह सब क्या है।"
एस पी साहब ने इंस्पेक्टर राधा को मैडम तो जरूर बोला पर आबाज में नाराजगी जाहिर थी।
" बतायें सर... ।क्या गङबङ है। "
" तुमने बच्चों को सङकों पर भीख मांगते नहीं देखा। भला ये भीख क्यों मांगते हैं। विद्यालय में पढने नहीं जाते। उनके माॅ बाप को बुलाकर और समझाकर विद्यालय भिजबाओ। ताकि देश का भविष्य सुरक्षित रहे।"
इंस्पेक्टर राधा थोङी देर तक तो चुप रहीं। पर जब एस पी साहब चुप नहीं हुए तो उन्हें बोलना पङा ।
" सर...। भीख माॅगना और चोरी करना इन लोगों का पेशा है। अभी भीख मांग रहे हैं, चार पांच साल बाद चोरी करते पकङे जायेंगें। हमारे शहर में कितने ही बाल अपराधी ये ही लोग हैं। पक्के अपराधी लोग हैं। पर अब बच्चों का भी प्रयोग करने लगे हैं। अगर पकङे गये तो बच्चों को ज्यादा सजा भी नहीं होती। वैसे इनमें से कइयों के माता पिता भी जेल में बंद हैं। "
इंस्पेक्टर राधा शहर की स्थिति से परिचित थी। नाले के पार झुग्गियों में रहने वाले परिवार ज्यादा ही बदनाम थे। पुलिस के रिकोर्ड भी इस बात की पुष्टि कर रहे थे।
रमाकांत एक महिला अधिकारी के तेवर देख सकते में आ गये। वैसे महिलाएं तो हमेशा ममता की मूरत कही जाती हैं। तो एक महिला अधिकारी का बयान ज्यादा मायने रखता है। पर सही बात यह थी कि एस पी साहब अभी भी कुछ अलग सोच रहे थे।
" तो भी मैडम.. ।एक बार कोशिश तो कर सकते हैं। संभवतः गरीबी और पुराने संस्कार की बजह से ये लोग अपराध की दुनिया में आ गये हैं। पर यदि इनका साथ दिया जाये तो तस्वीर बदल सकती है। देखो.. ।हमारा काम तो कानून की हिफाजत करना है। यदि भटके हुए लोग समझ जायें, बच्चों को भी शिक्षा का प्रकाश मिल जाये, तो इसमें परेशानी क्या है। "
" ओके सर... ।" इंस्पेक्टर राधा ज्यादा बात बढाना नहीं चाहती थी। सोचा कुछ दिनों में साहब खुद ही माथा पीटकर बोलेंगे -" चूहों के जाये, और क्या कर सकते हैं, सिबाय बिल खोदने के..। "
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इंस्पेक्टर राधा ने नाला पार के कई आदमी और औरतों को थाने में बुला लिया।
" देखो... ।खुद मेहनत की खाओ। और बच्चों को स्कूल भेजा करो। स्कूल में कोई पैसा नहीं लगता है। और जब चोरी करते पकङे जाते हो तो कितनी पिटाई होती है, याद है या भूल गये।" राधा ने चारों तरफ आंख घुमाई। मुनिया को देखकर बोली।
" अच्छा मुनिया...। छूट गयी जेल से।"
" मैडम जी। अभी तो जमानत हुई है। मुकदमे पर जाना होता है। "
" तेरी तो नयी नयी बात है। तुझे तो याद होगा कि कितनी मार पङी थी। "
मुनिया की आंखों से आंसू आ गये। अभी भी कभी कभी दर्द हो जाता था। पर क्या वह चोरी करना छोङ सकती है। क्या उसके बच्चे भीख मांगना बंद कर सकते हैं। मुनिया मन में सारे हिसाब लगा रही थी।खुद तो अच्छा जीवन जीना चाह रही थी। बच्चों को भी पढाना चाह रही थी। पर शायद यह उसके भाग्य में न था। दूसरे आदमी और औरत भी मजबूरी में सर झुकाये बैठे थे। पर अभी तो पुलिस का दबाव है। कुछ दिन तो टालना होगा। नाले पार के लोगों की गरीबी और संस्कार के अलावा भी अपराध की बजह कोई मजबूरी भी हो सकती है, भला ऐसा कौन सोच सकता है।
एस पी साहब की गाङी थाने से घर जा रही थी।
" दोलतराम। अब तो बहुत दिन आराम की नौकरी कर ली। किसी दूर चौकी पर जाना चाहते हो।"
दोलतराम ऊंघ रहा था। अचानक उचक गया।
" हुजूर...। कुछ गलती हुई हो तो माफ करना। अब तो गाली भी नहीं देता।"
" और देना भी मत। कोई काम का आदमी है तुम्हारी नजर में। अच्छा सा खबरी। पर खबर केवल मुझे दे। "
" ठीक है हुजूर..। एक लङका है। अच्छा स्वांग भी कर लेता है। आप जैसा चाहोगे, वही होगा।"
" पर किसी और को पता चला तो उसी दिन सौ किलोमीटर दूर चौकी का आदेश पकङ लेना। और ड्राइवर महोदय.. ।आप भी ध्यान रखना। गाङी की बात बाहर जानी नहीं चाहिये। "
" क्या कहा सर आपने। अभी तक मेने कुछ सुना ही नहीं। मेने अपनी नौकरी में इतने एस पी साहबों की गाङी तभी तो चला ली है कि जब तक मेरा नाम लेकर नहीं बोलते, मैं कुछ सुनता ही नहीं। "
" बहुत खूब ।यह खूबी बरकरार रहनी चाहिये। "
इतने में एस पी साहब का बंगला आ गया। भागकर अर्दली ने गाङी का दरबाजा खोला। एस पी रमाकांत भीतर चले गये।
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मुनिया चुल्हे पर खाना बना रही थी। आदमी रामू और बेटी सलोनी खाना खा रहे थे। सब चुपचाप थे। बैसे भी गरीबों के बच्चे अक्सर चुप रहते हैं। रोटी बेलते समय कभी कभी मुनिया कराहने लगती।
" मुनिया...। ज्यादा दर्द हो रहा है। तेल लगा लेती।"
" अब कितना तेल लगाऊं। पिछली बार जब पकङी गयी तो पूछताछ के दौरान मैडम जी ने अंगुलियों में लकङी फसाकर अंगुली चटका दी थीं।" मुनिया चुप हो गयी। रामू भी सब जानता था। मुनिया पर तब भी औरत होने की बजह से नरमी बरती गयी थी। पर एक बार जब वह पकङा तो... ।रामू याद करके भी सिहर उठा। हालांकि मेहनत मजदूरी से अपना पेट तो भर सकते थे। पर चिंता कुछ अलग थी।
" अब कुछ सोचा। बङे मालिक को क्या जबाब देना है।"
मुनिया की बात सुन रामू झुंझला उठा।
" अब रोटी तो चैन से खाने दे। मालिक हैं या राक्षस। चोरी करो। जेब काटो। बच्चों से भीख मगाओ। बच्चों से छोटी मोटी चोरी भी कराओ। पकङे जाओ तो जानवरों की तरह पुलिस की मार खाओ। पर उसके आदमी सारा कुछ छीन लेते हैं। न करो तो कब हम भगवान को प्यारे हो जायें, कह नहीं सकते। "
" मैं बोलती हूं कि कहीं भाग चलते हैं। बहुत दूर.. ।वहीं रह लेगें। भगवान रोजी रोटी का इंतजाम तो करेंगे ही। "
" चल बेबकूफ... ।इतने बङे लोगों से तो शायद भगवान भी डरते हैं। हर बार हमारी जमानत करबा देते हैं। मैं तो जेल से बाहर आना भी नहीं चाह रहा था। पर मजबूरी है। कौन समझ सकता है। शायद भगवान भी नहीं। "
भगवान सचमुच हैं या नहीं, इसमें संदेह है। आज तक नाला पार के गरीबों की मजबूरी किसी ने नहीं सुनी थी। पर आज कोई उनकी मजबूरी सुन रहा था। और बहुत जल्द इंस्पेक्टर राधा के मोवाइल पर एस पी रमाकांत का फोन बज रहा था।
" जय हिंद सर.. ।इतनी रात को। "
" मैडम की नींद में दखल तो नहीं दिया मेने।"
"सर। जिस दिन पुलिस की वर्दी पहनी थी, उस दिन से रात और दिन भूल गयी हूं। सोने के लिये बहुत समय है। पर इमर्जेंसी तो एकदम होती है। कोई इमर्जेंसी सर..।"
. "अरे नहीं. ।आप आराम करें। पर एक बात सोचो कि नाला पार जो परिवार रहते हैं, चोरी चगारी के बाद भी कभी बनते नहीं दिखते। "
" अब सर.. । पाप की कमाई.. ।दुनिया भर के ऐब तो जन्म देती है। फिर इतने मुकदमे चल रहे हैं। अच्छे अच्छे बर्बाद हो जाते हैं। " इंस्पेक्टर राधा अभी न तो सही बात समझ पायीं और न एस पी साहब ने उन्हें सही बताया।
" इसका मतलब, ये हेबिचुअल क्रिमिनल हैं। फिर तो इनके सुधार की कोई उम्मीद भी नहीं है। "
" अब सर लाइन पर आ गये। " राधा ने मन ही मन कहा। प्रत्यक्ष में बोली -" बिलकुल सर.. ।इन पर समय खराब करने का मतलब है कि घूरे पर लट्ठ मारना।" राधा अब थोड़ा हस भी दी।
" चलो फिर ठीक है। बस एक बार इनपर जो मुकदमे चल रहे हैं, उनकी फाइल लेकर कल आफिस आ जाना। और थोड़ा पुलिस दल भी साथ ले आना। कहीं चलना पङ सकता है।"
" सर भी कुछ साइक्लो टाइप हैं। पर मुझे क्या। अभी तो रात पङी है। कल देखूंगी। " राधा गहरी नींद में सो गयी।
दूसरे दिन सुबह ही एस पी साहब ने काम रिमांइंड करा दिया। नाले के पार बालों के सारे मुकदमों की डिटेल जुटाने में भी समय लगा। आखिर एस पी साहब यह भी जानना चाह रहे थे कि उनका मुकदमा कौन कौन बकील लङ रहे हैं। डिटेल देखकर खुद राधा चकित हो गयी। एस पी साहब उसका इंतजार कर रहे थे।
" कुछ तो खास होगा, सभी मुकदमों में मैडम।"
" सर... ।यह मेने सोचा नहीं था।"
" तो अब इधर मत रुको। जल्द काम कर लग जाओ। मेरा पूरा साथ है। अगर कोई बङी से बङी दीवार आ जाये, तो उससे भी टकरा जाना । जितनी फोर्स चाहिये, लो और इस मामले को सुलझाओ।"
" यस सर.... ।"
बकील संतोषी लाल की गिरफ्तारी के बाद से आगे के पृष्ठ खुलने लगे। फिर कई बदमाश पुलिस की कैद में थे। अंत में पुलिस ने सबसे बङा काम शुरू किया। इस बार पूरी फोर्स के साथ खुद एस पी रमाकांत भी साथ थे।
जगतीश्वर स्वामी विख्यात संत थे। देश और विदेशों में उनके अनेकों भक्त थे। पर पुलिस को देख उनके आश्रम से गोलियां चलने लगीं। पुलिस ने भी मोर्चा सम्हाला। अभी तक चोर और जेबकतरों को पीटकर बहादुरी दिखाने बाले पुलिस ने आज सचमुच बहादुरी दिखाई। हालांकि कुछ पुलिस बाले जिनमें एस पी साहब भी थे, घायल हुए। पर स्वामी जी और उनके गुंडे गिरफ्तार हो गये।
धर्म का नकाब पहने स्वामी जगतीश्वर वास्तव में एक गुंडा था। कई मजबूरों से अपराध कराकर अपनी जेब भर रहा था। खास बात यह भी थी कि नाला पार के कई निवासी वास्तव में बचपन में ही अगवा कर लिये थे। आपस में उन्होंने विवाह कर अपने परिवार भले बना लिये हों पर स्वामी जी के आतंक के साये में मजबूर थे। अपने बच्चों को भी भीख मंगवाने और चोरी कराने के लिये भी मजबूर थे।
एस पी रमाकांत की सूझबूझ से वास्तविक अपराधी पकङ में आये। अब नाला पार कोई झुग्गी नहीं है। वहाॅ रहने वाले सरकारी योजनाओं के आवास में रह रहे हैं। भीख मांगने बाले बच्चे अब स्कूल पढने जाते हैं। एस पी रमाकांत के प्रयासों से वे सब मुकदमों से भी बरी हो गये हैं। रामू और मुनिया ने भी एक चाय की दुकान खोल ली है। जिसे वे दोनों बारी बारी से देखते हैं।