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खेल

30 नवम्बर 2021

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        जब कान्सटेबल प्यारेलाल की पुत्रवधू और स्त्री ने नाले के रहस्य के महत्वपूर्ण मिशन में पुलिस विभाग की मदद की, उसी समय से एस पी साहिबा भाग्य श्री और इंस्पेक्टर राधा इन औरतों की समझदारी के कायल हो गये। स्मरण दिलाना चाहता हूं कि आगरा शहर में नाले में कई कन्या भ्रूण की गुत्थी सुलझाने में पुलिस विभाग नाकाम ही हो गया था। पर प्यारेलाल की स्त्री और गर्भवती पुत्रवधू ने महकमे की मदद की और अपराध का पर्दाफाश हुआ। मीडिया के सामने भी एस पी साहिबा ने इन महिलाओं की बहुत तारीफ की।कन्या भ्रूण की हत्या में शामिल पूरे गिरोह को उम्रकैद की सजा हुई। पूरे प्रकरण में प्यारेलाल की पत्नी और पुत्रवधू की ठीक ठाक भूमिका थी।

       प्यारेलाल की पुत्रबधू  रूपवती वास्तव में रूप की खान थी। सुदरता के मामले में रूपवती सचमुच अपने नाम को सार्थक करती थी। प्यारेलाल का बेटा मनोहर नोयडा की एक कंपनी में इंजीनियर था। वहीं मनोहर की मुलाकात रूपवती से हुई। दोनों में प्रेम हुआ। प्यारेलाल और उनकी पत्नी इस विषय में काफी सुलझे थे। अपने रिश्तेदारों के विरोध के बावजूद उन्होंने रूपवती को अपनी पुत्रवधू बनाया। रूपवती ने भी अपने व्यवहार से उनके निर्णय को सही साबित किया। मनोहर और रूपवती दोनों साथ साथ नौकरी करते। अच्छा जीवन गुजर रहा था। तभी उनके जीवन में एक और मेहमान के आने का संकेत मिला। प्यारेलाल तो दादा बनने की खुशी में पागल थे। पर दूसरी दिक्कत आ गयी। ऐसी स्थिति में रूपवती की देखभाल कौन करता। सो रूपवती नौकरी छोड़कर अपने ससुराल चली आयी। वैसे भी प्यारेलाल की अपने व्यवहार से इतनी तो धाक थी ही कि सही समय आने पर बहू की फिर से नौकरी लगवा दें। इसी दौरान रूपवती ने इतनी होशियारी का परिचय दिया कि पुलिस विभाग के लिये अबूझ बन रहा केस भी हल हो गया। प्यारेलाल को भी तरक्की मिली। अब वह सब इंस्पेक्टर थे। बहू पर सभी का स्नेह और बढ गया। समय आने पर रूपवती ने सुंदर लङकी को जन्म दिया। पूरे महकमे की दावत हुई। खुद एस पी साहिबा भाग्य श्री उस दावत में पधारीं।

.........................................................

ग्वालियर रोड पर एक खेत में एक लङकी का शव मिला। शव की हालत बहुत खराब थी। पता नहीं मारने बाले की उससे ऐसी क्या नफरत थी कि उसे इतना तङपा कर मारा। पोस्टमार्टम में पुष्टि हुई कि लङकी को कई दिनों तक अमानवीय यातनाएं दी थीं। न तो लङकी का सुराग था और न अपराधी का पता।

सबसे पहला सबाल कि लङकी कौन थी। अखबारों में लङकी का फोटो निकाला गया।

     दूसरे ही दिन उस लङकी का पता चल गया। संजय पैलेस पर स्थित एक प्रतिष्ठित माल आदर्श में वह लङकी सैल्स गर्ल थी। उसके सहयोगियों ने ही उसे पहचाना था।

      इंस्पेक्टर राधा ने तहकीकात शुरू की। उस लङकी का नाम सलोनी था। उसके व्यवहार की बहुत तारीफ सुनी। किसी से कोई लङाई झगड़ा भी नहीं था। कहीं सुदूर बिहार की रहने बाली थी। माल में कई लङकियां काम करती थीं। माल के मालिक सुबोध और मालकिन नंदनी ने एक गैस्ट हाउस बना रखा था। बाहर की लङकियां उसी गैस्ट हाउस में रहतीं थीं। सलोनी भी उनमें से एक थी।

     पिछले सात दिन से सलोनी गायब थी। माल के मालिक सुबोध ने हरी पर्वत थाने में उसकी गुमशुदगी भी दर्ज करायी थी।सलोनी के घर का पता लेकर उसके घर बालों को बुलाया।

     बूढे माता पिता के आंसू थम ही नहीं रहे थे। इंस्पेक्टर राधा उन्हें समझा भी रहीं थीं और मामले से जुङी जानकारी भी जुटा रहीं थीं।

     "काका। आपकी आखरी बार लङकी से कब बात हुई थी।'"
     "कोई सात दिन पहले। तब से उसका फोन ही बंद आ रहा है। खुद आने की सोच रहे थे कि आपकी खबर आ गयी।"

   "आपकी लङकी यहाॅ क्यों और कैसे काम करने आयी थी।'"
'"साहब। हम गरीब लोग हैं। दो वक्त की रोटी मिल जाये तो कहीं भी काम करने चले जाते हैं। अखबार में नौकरी की खबर निकली थी। तो लङकी आ गयी। मालिक और मालकिन की तारीफ करती थी। रहने को भी जगह दे रखी थी। "
   '" आपको किसी पर शक। "
'" नहीं मैडम जी।"
" देखिये। बुरा मत मानना। आपकी लङकी का किसी से कुछ प्रेम बगैरह तो नहीं था। कभी कुछ बताया। "
" क्या बोल रहीं हैं मैडम जी। हमें तो ऐसा कभी नहीं बोला। "
'" आप तो सलोनी की माॅ हैं। आपसे कुछ ऐसा तो नहीं बताया। "इस बार राधा ने सलोनी की माॅ को पूछा।
" नहीं मैडम जी।हमें तो इस बारे में कुछ ना पता।'"

हर तरह से छानवीन की जा रही थी। काल डिटेल, सीसीटीवी कैमरे की रिकोर्डिंग, सभी से पूछताछ जारी थी।

" प्यारेलाल जी। आपको अजीब नहीं लग रहा। बिहार से लङकियां काम करने क्यों आयीं हैं।" राधा ने प्यारेलाल से राय ली।
'" मैडम जी। इसमें कुछ भी आश्चर्य की बात नहीं है। बिहार से सस्ते काम करने बाले आ जाते हैं। आपने हाई वे का काम देखा है। सारे मजदूर बिहार से आये हैं। थोङा रुकने की व्यवस्था मिल जाये तो वह बहुत कम दाम पर काम करने को राजी हो जाते हैं।" प्यारेलाल ने समझदारी दिखाई।
" ' तो भी माल के मालिक से बात तो करनी ही चाहिये। "

   सुवोध के घर को घर कहना उसकी तौहीन करना है
आखिर इतने संपन्न और प्रतिष्ठित लोगों के महल होते हैं। इंस्पेक्टर राधा का सुवोध और उनकी पत्नी नंदनी ने गर्मजोशी से स्वागत किया।

   " मैं आपसे कुछ पूछने आयी हूं।"
'" अवश्य मैडम। पुलिस की मदद करके तो हमें खुशी ही होगी।'"
सुवोध और नंदनी ने सम्मिलित रूप से उत्तर दिया।
"आप बिहार से काम करने बाली लङकियां क्यों मंगाते हैं।"
" देखो मैडम। बिहार से सस्ते में लङकियां आ जाती हैं। उनके रहने, खाने की व्यवस्था करके भी बहुत फायदा रहता है। वैसे हमारी तरफ से लङकियों को कोई तकलीफ नहीं होती है। आप खुद तहकीकात कर सकती हैं।"

इंस्पेक्टर राधा ने हर तरह से जानकारी जुटायी। पर कोई नतीजा नहीं मिला। फिर से दूसरी लङकियों से बात की। सभी लङकियां खुद काम करने आयीं थीं। किसी को कोई तकलीफ न थी। सलोनी के प्रेम प्रसंग की थ्योरी भी बेकार लगने लगी।

....................................

इंस्पेक्टर राधा कार्यालय में घुसीं तो नजारा अलग ही था। प्यारेलाल पुराने केसों की फाइलें पलट और ढूंढ रहे थे।

"क्या देख रहे हों प्यारेलाल जी।'"
"मैडम। बस थोङी देर रुकिये ।एक छोटी सी बात हाथ लगी है। अभी बताता हूं।'"

फिर लगभग आधे घंटे बाद प्यारेलाल चार फाइलें लेकर मैडम के पास पहुंचे।
"'प्यारेलाल जी। किसकी फाइलें हैं ये सब।"
"मैडम। ये गुमशुदगी की फाइलें हैं। पर हमारे केस का रुख बदल रहीं हैं।"

इंस्पेक्टर राधा ने तुरंत फाइलें पढीं और गहरी शांति छा गयी।

........................................

एस पी साहिबा भाग्य श्री के दफ्तर में इंस्पेक्टर राधा और सब इंस्पेक्टर प्यारेलाल दोनों मौजूद थे। आज प्यारेलाल गुस्से में तो थे। अपने अधिकारियों से ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे। पर आज अनाप सनाप बक रहे थे। पर आश्चर्य की बात एस पी साहिबा भाग्य श्री और इंस्पेक्टर राधा दोनों के सिर नीचे थे।

"मैडम। अब आगे ऐसी बात मत बोलना। रूपवती मेरी बहू नहीं बल्कि मेरी बेटी है। उसके पिता ने उसे मुझे सौंपा है। उसके साथ कुछ हो गया तो मैं अपने बेटे को क्या मुंह दिखाऊंगा।"

अक्सर बातें बढ जाती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ और प्यारेलाल जी दोनों मैडमों पर चढ गये, इसकी चर्चा पुलिस बालों के साथ उनके घरों तक पहुंच गयी।

............................................

सुवह सुवह प्यारेलाल अपनी नातिन को खिला रहे थे। सचमुच कहावत 'मूल से ज्यादा प्यारा तो व्याज होता है' गलत नहीं है।

"बेटी रूपवती। चाय बनी या नहीं।"
"अभी ला रही हूं पापा जी। एक जरूरी काम कर रही हूं।"

प्यारेलाल नातिन को खिलाने में व्यस्त हो गये।
कुछ पैसे जोङकर ऊपर छत पर दो कमरे बनाने का इरादा प्यारेलाल जी ने किया था। कल ही ईटें मंगायीं थीं। रूपवती ईटों को लेकर आती और आंगन में एक के ऊपर एक रखती जाती। प्यारेलाल चौंक गये। यह क्या जरूरी काम है। पर बोले कुछ नहीं। एक के ऊपर एक छह ईटें रखकर रूपवती ने दांयें हाथ की चूडिय़ां उतारीं।

"बाबूजी। कालेज में मैं कराटे सीखती थी। आज मन हुआ कि देखूं कितना याद है।"
रूपवती के भरपूर वार के साथ ही छहों ईटें दो टुकङों में टूट गयीं। अब रुपवती अपने पितृतुल्य ससुर के पास जमीन पर बैठी है। उनमें जो बातें हुईं, उन्हें मैं अभी छिपा रहा हूं। इतना जरूर बताता चलता हूं कि काफी नानुकुर के बाद आखिर प्यारेलाल ने रूपवती के सिर पर हाथ रख दिया। इस समय दोनों पिता और बेटी लग रहे थे।

...................

सलोनी के मर्डर का केस ठंडे बस्ते में चला गया। पर फाइल अभी भी बंद न थी। आदर्श माल भी खुल चुका था। सब कुछ पहले जैसे ही चल रहा था। एक नयी सेल्सगर्ल अंजली काम पर आने लगी। बहुत सुंदर और कमेरी लङकी थी। माल की आमदनी बढने लगी। अंजली भी विहार के किसी गांव से आयी थी। इस बार पुलिस के दवाव के कारण अंजली का पुलिस वेरिफिकेशन भी हुआ। पुलिस अंजली के गांव तक उसकी पृष्ठभूमि पता करके आयी थी। वह भी उसी गैस्ट हाउस में रहती थी।

     काम, व्यवहार और सुंदरता के कारण अंजली मालकिन नंदनी को बहुत पसंद थी। अक्सर मालकिन अपनी कार मे उसे गैस्ट हाउस तक छोङ देतीं।

.................

"अंजली ।आज स्टाक चैक करना है। थोङा देर हो जायेगी। कोई बात नहीं। मैं तुम्हें गैस्ट हाउस में छोङ दूंगी।"
"जी मैडम।" अंजली ने अपनी मालकिन नंदनी को जबाब दिया। वैसे भी अंजली इतनी मेहनती और व्यवहार कुशल थी कि कभी भी अपनी मालकिन को मना नहीं करती थी। फिर मैडम खुद गैस्ट हाउस तक छोङ देंगीं तो परेशानी क्या है।

अंधेरा छाने लगा। बाजार बंद होने लगा। अंजली स्टाक चैक करती रही और अंत में मालकिन के साथ गैस्ट हाउस चल दी।

"अंजली। रेस्टोरेंट में खाना खाकर फिर चलेंगे।"
"मैडम। आप खाना खाइये। मैं चली जाती हूं।"
"अरे ऐसे क्यों भाई। हम तो तुम्हें अपने घर का मानते हैं। नहीं। आज देर हो गयी है तो तुम्हें खाना खिलाकर फिर गैस्ट हाउस चलेंगे।ड्राइवर। ग्वालियर रोड पर जो रेस्टोरेंट है, उस तरफ गाङी मोङ लो। *

थोङी देर में अंजली कुछ नींद में थी और जब उसे होश आया तो वह अनजान जगह पर थी। सामने कुर्सियों पर बैठे सुबोध, नंदनी, और दो अनजान लोग हस रहे थे। ड्राइवर बाहर खङा था।

"भाई सुबोध। मान गये तुम्हें। हर बार हमें खुश कर देते हो। तभी तो तुम्हें इतना फायदा कराते हैं। इतने टैंडर दिलाये हैं।"
अपरचितों में से एक ने कहा।

"नेता जी। हम तो आपके अहसान मंद हैं। आपके लिये कुछ भी कर सकते हैं। पिछली बार थोड़ी गङबङ हो गयी। लाल किले के नाले पर पुलिस की गश्त थी। तो लङकी की लाश खेतों में फैंकनी पङी। बर्ना नाले में मिली लाशों की कभी शिनाख्त नहीं हो पायीं। पुलिस का इस बार बङा खतरा था। पर आपके हुक्म की तौहीन हम कैसे कर सकते हैं। आप तो हमारे माई बाप हों। "सुबोध ने भी हंसते हुए जबाब दिया। सभी के चेहरों पर पशुता दिखाई दे रही थी।

" मैडम। यह क्या है। ये कौन हैं। " अंजली की आबाज में घबराहट थी।
" डोन्ट वरी डीयर। ये नेता जी हैं।हमें फायदा दिलाते हैं। हम भी इनकी इच्छा पुरी करते हैं। "अब तो नंदनी भी कुछ अलग नजर आ रही थी।

"क्या करेंगें ये मेरे साथ। मेरी इज्जत..."
"क्या बात करती हो बेबी।हम न तो बच्चे हैं और न बच्चों के शौक रखते हैं। हमें तो जबान लङकियों की चीखें सुनना पसंद है। यही खेल खेलते हैं। लङकियों को तङपाते हैं। खेल तब तक चलता है जब तक उनकी सांसें चलतीं हैं।" अंजली की बात पूरी होने से पहले ही नेता जी बोल दिये।

" और यह भी सुनो। हम यह खेल बहुत समय से खेल रहे हैं। कभी पकङे ही नहीं जाते। जब यह खेल हम खेलते हैं तब अपना मोवाइल पहले ही बंद कर आते हैं। तुम्हारा मोवाइल तो कब का फैंक दिया है। इस जगह की लोकेशन कभी भी पुलिस को नहीं मिलती।" सुबोध भी पैशाचिक हसी हस रहा था।

फिर उस अनजान जगह पर चीखें गूंजने लगीं। पर ये चीखें चार मर्दों और एक औरत की थी। सुबोध और नंदनी तो अंजली के इस रूप को समझ ही नहीं पाये। एक दक्ष कराटा किंग के हथेलियों में इतनी जान थी कि पांचों की एक आध हड्डी जरूर टूटी। जब पांचों जमीदोस्त हो गये तो अंजली ने अपने कपङों में छुपा दूसरा मोबाइल निकाला और फोन मिलाने लगी।

.........................

"मैडम। रूपवती के पहले मोवाइल की लोकेशन और जी०पी०आर०एस लोकेशन तो अलग थी। पर दूसरे मोवाइल की दोनों लोकेशन इसी तरफ की है। हमें जल्दी करनी है। कहीं मेरी बेटी को कुछ हो न जाये।" प्यारेलाल एक सांस में बोल गया। एस पी साहिबा के नैतृत्व में पूरा पुलिस दल ग्वालियर रोड स्थित एक फार्म हाउस के पास खङा था। तभी प्यारेलाल के मोवाइल की घंटी बजी। फोन पर बात करते करते प्यारेलाल के चैहरे पर रौनक लौट आयी।

" मैडम। रूपवती ठीक है। सब इसी फार्म हाउस में हैं।"

फार्म हाउस में घुसकर पुलिस ने सभी को पकङ लिया। सत्तारूढ़ दल के मशहूर नेता को भी देख उन सबकी आंखें फटी रह गयीं। प्यारेलाल ने बेटी बेटी कहते हुए अंजली, अरे नहीं रूपवती को गले लगा लिया।

"आप भी पापा। बेकार में डर जाते हो। देखो अकेले ही सभी को धूल चटा दी। "
"क्या करूं। पिता हूं। चिंता तो हो ही जाती है।"
"पर आपके दिमाग की तारीफ करती हूं, प्यारेलाल जी। पहले भी नाले का रहस्य आपके दिमाग से खुला। और इस बार भी गुमशुदा की फाइलों से आपने ही बताया कि इसने पहले भी आदर्श माल में काम करने बाली और गैस्ट हाउस में रहने बालीं चार लङकियां गायब हो चुकीं हैं। बरहाल दर्द देने का खेल खेलने बालों को यह तो पता चलना चाहिये कि हम भी उनके साथ खेल खेल रहे थे। और इस खेल में हमारा साथ दे रही थीं हमारे प्यारेलाल की पुत्रबधू अरे नहीं बेटी रूपबती। अब दर्द का खेल हम लाकअप में खेलेंगे। " एस पी साहिबा की आबाज इस कामयाबी के बाद कुछ ज्यादा ही मुखर हो गयी।

" प्यारेलाल जी। क्या आप भी लाकअप बाला खेल देखेंगे। "इंस्पेक्टर राधा की हसी रुक ही नहीं रही थी।
" मैडम जी। अब पुलिस की नौकरी में वह खेल कई बार देखा है और खेला भी है। पर अभी तो मांफी चाहूंगा। वो क्या है हमारी नातिन अपनी मम्मी को बहुत याद कर रही है। और मेरी बेटी भी अपनी बेटी से मिलने को तङप रही है। पर इतना ध्यान रखना कि मेरी बेटी ने पहले ही इन्हें इतना दर्द दे दिया है। थोङा हिसाब से करना। आखिर कल इन्हें अदालत में भी पेश करना है। "

सब हसने लगे। 



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