दिन छिपते ही शहर से गांव की तरफ जाने बाली सङक वीरान हो जाती। फिर कोई उस तरफ कदम भी नहीं रखता। गांव बालों का अंधविश्वास था कि कच्ची ईटों से बनी सङक शापित है। रुक्मणी और राधिका दोनों माॅ बेटी रात के बक्त बदला लेने निकलती हैं। रात को जो भी सङक पर मिलता है, मारा जाता है। वैसे इस बात में सच्चाई भी थी। शहर से गांव आने के लिये देर हुए लोगों की लाश अगली सुबह मिलतीं। किसी की गर्दन कटी हुई तो किसी का गला घोंटा गया। और तो और कुछ तो बीच रास्ते में पङते पीपल के पेङ पर फांसी पर भी लटके मिले। भला अच्छा भला आदमी क्यों फांसी लगायेगा। कोई तो बात थी। और कई बार गांव बाले चुपचाप उस पीपल के नीचे जल देकर रुक्मिणी और राधिका से माफी मांग लेते। गांव बालों की नामर्दगी कभी रुक्मिणी और राधिका का काल बनी। आज भी उसी नामर्दगी का दंड भुगत रहे।
रुक्मिणी किसी और गांव की थी। कोई पंद्रह साल पहले इस गांव में आयी। मजूरी की आस में। पांच साल की बेटी राधिका को साथ लेकर। गांव में उसे जगह भी मिल गयी। काम भी मिला। एक छप्पर को घर कहें तो रुक्मिणी का घर भी था। उसी छप्पर के नीचे सारे मौसम गुजार देती। लङकी भी बङी होती गयी। अब छप्पर के नीचे थोङा मुश्किल थी। खुद तो किसी तरह अंधेरे में कुछ धोती की आङ लेकर कपङे बदल लेती पर जवानी की दहलीज पर खङी लङकी कैसे करती।
मुखिया को दया आ गयी। बाहरी कोठरी खाली थी। जिसकी छत बरसात में टपकती थी। पर रुक्मिणी ने इसके लिये भी मुखिया को आशीर्वाद दिया।
पता नहीं क्या हुआ कि रुक्मणी एक रोज मुखिया की कोठरी छोङ भागी। पर मुखिया ने राधिका को पकङ लिया। जो नहीं होना चाहिये वह हो गया। गांव में किसी की हिम्मत मुखिया को रोकने की न थी। मुखिया की कोठरी ने माॅ बेटी का जीवन उजाङ दिया। गांव में किसी से उन्हें मदद नहीं मिली। कहते हैं कि वे दोनों कहीं मर गयीं और चुङैल बन गांव बालों से बदला ले रहीं थी।एक बार मुखिया अपने दोनों बेटों के साथ पास के गांव से आ रहा था। सुबह तीनों की लाशें उसी सङक पर मिलीं। फिर तो यह रोज की बात हो गयी। जब तक कि लोगों ने उस सङक पर रात में जाना ही बंद न कर दिया।
दीनू कुम्हार का लङका संजू थोड़ा बहुत पढ लिख गया। फौज में नौकरी लग गयी। बहुत दिनों बाद गांव आ रहा था। देर हो गयी। पर कुछ गांव की बात पुरानी हो गयी और कुछ फौज के साहसी संस्कार। संजू रात के बक्त उस शापित सङक पर चल रहा था।
दूर पीपल के पेड़ के नीचे एक अधेड़ सी औरत और उसकी जवान लङकी देखते ही संजू ठिठक गया। गांव बालों की बातें याद आ गयीं। सचमुच एक के हाथ में लंबी धारदार हसिया और लङकी के हाथ में लंबी सी रस्सी। दोनों देखने में कोई चुङैल जैसी लग रहीं थीं। डर के मारे संजू के पैर कांपने लगे।
"अरे रुक। जाता कहाॅ है।"
"रुक्मिणी चाची। मैं तो निरपराध हूं ।मैं तो खुद कितने सालों से फौज में रहा हूं। मुझे तो जाने दो।"
"कोई नहीं बचेगा। हमारी चीखें किसी ने नहीं सुनीं थीं। अब सब मरेंगे।" लङकी की आवाज माॅ से भी ज्यादा भारी थी। पर संजू भी फौज में नौकरी करके आया था। दोनों औरतों को उसे पकङने में पसीना आ गया। फिर भी वह दोनों तरफ से फस गया। आखिर वह या तो माॅ की हसिया का शिकार होता या लङकी के फंदे से मरता, उससे पहले ही अपनी जेब में रखा छोटा सा चाकू लङकी के पैर पर मार दिया। लङकी चीखती हुई अलग हो गयी। माॅ लङकी को लेकर कहीं छिप गयी। कहाॅ इतना देख पाना संजू के वश में न था। वैसे भी भूत और चुङेलों से जान बच जाये, यही बहुत है। रात के एक बजे जब संजू ने अपने घर का दरबाजा खटखटाया तो किसी ने मारे डर के दरबाजा खोला ही नहीं। बाहर ही फर्श पर लेट गया। अब रात गुजरने में समय ही कितना था।
दूसरे दिन सुबह दीनू के घर में उत्सव मना। एक तो लङका छुट्टी पर आया और रात में चुङेलों से बच निकला। सचमुच माता रानी की कृपा है।
पंडित शांतादीन ने पूछा - "अरे भाई संजू। कौन सा मंत्र पढते हों।"
"पंडित जी। मुझे मंत्र कहाॅ आते हैं। मैं तो ठहरा फौजी।"
पर दाल में कुछ काला है। सुना है कि फोज में भी सरकार पंडितों को रखती है। पंडित लोगों को पूजा कराते हैं। युद्ध के समय जीत की प्रार्थना करते हैं। जरूर ऐसे ही किसी पंडित से दोस्ती हो गयी है। उसी से कुछ मंत्र बगैरह जान लिया है।
" पर पंडित जी। मुझे लगता है कि बात कुछ और है। ऐसे मंत्रों की जानकारी हर किसी को नहीं दी जाती। कहते हैं कि मंत्र बता देने पर मंत्र देने बाला खुद संकट में आ जाता है। ये मंत्र दिये नहीं जाते बल्कि सिद्ध किये जाते हैं।"
गांव में जितने मुंह उतनी बातें हो रहीं थीं। इन सबसे अलग संजू कुछ और ही सोच रहा था।
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थाने में किसी की हिम्मत उस सङक पर जाकर तहकीकात करने की न थी। अरे चुङैलों की कौन तहकीकात करता है। ईश्वर की मेहरबानी ही समझो कि आज जिंदा हो। इस तरह की बातें कहकर संजू को लौटा दिया गया। संजू वापस जा ही रहा था कि इंस्पेक्टर आते दिखाई दिये। कुछ कुछ पहचाने लग रहे थे। अरे यह तो सूबेदार सुल्तान सिंह हैं। पिछली साल ही तो फौज से रिटायर्ड हुए थे। लगता है कि भूतपूर्व सैनिक कोटा में पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर बन गये हैं। सुल्तान सिंह भी संजू को पहचान गये।
"वेल डन मिस्टर संजू। वैसे भी यह भूत बूत कुछ नहीं होता। चलो मैं चलता हूं।"
संजू और सुल्तान सिंह उस जगह पहुंचे। काफी छानवीन की।
पर कुछ हाथ नहीं आया। आखिरकार गांव बालों की थ्योरी ही इंस्पेक्टर सुत्लान सिंह और संजू दोनों को माननी पङी।
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रात के दस बज रहे थे। एक लङका और एक लङकी उसी सङक पर मोटर साइकिल से जा रहे थे। शायद इससे पहले भी इस सङक पर आये हों पर लगते तो अपरिचित थे।
" सुदरिया। ज्यादा बकबक मत करना। बाबूजी को मनाना इतना आसान नाहे। ये अंग्रेजी अपने शहर में रख लेना। गांव में तो बहुओं पर बङे प्रतिबंध होते हैं।"
"सुनो जी। औरतों पर ही रोक क्यों है।"
"अब इसका क्या उत्तर दूं। दस साल हो गये गांव छोंङे। तुझसे व्याह अपनी मर्जी से किया और सब नाराज हो गये। अब जाकर बाबूजी का गुस्सा शांत हुआ है। देख। अब रहना तो तुझे शहर में ही है। थोङे दिन गांव में किसी तरह बिना विवाद निकाल लेना। समझदार लङकियों की तरह समझदारी दिखाना। "
" रुक जाओ। बङे दिनों बाद शिकार हाथ आया है। " वही चुङैलें फिर सामने थीं।
" क क कोन हो तुम लोग। "
" हम रुक्मिणी और राधिका की आत्मा हैं। किसी को नहीं छोङेंगें। "
" पर हमने तुम्हारा क्या बिगाङा है। "
" इस गांव में सभी नामर्द हैं। कोई औरत को नहीं बचाता। औरतों की बेइज्जती होता देखता है। कोई नहीं बचेगा।" लङकी ज्यादा ही गुस्से में थी।
मोटर साइकिल पर बैठी लङकी रोने लगी।
" अंटी। मैं तो इस गांव की नहीं हूं। इनसे परेशानी है तो इन्हें देखो। मुझे छोंङ दो।"
" क्या बोल रही है। अपने आदमी को चुङैलों को सोंप रही है। "अब लङका भी गर्म हो गया।
" अब तुम जानो और तुम्हारा काम जाने। वैसे भी तुम तो ऐसे गांव के रहने वाले हों जहाॅ सभी नामर्द हैं। तुमसे शादी करने से अच्छा तो मैं कुवांरी मर जाती। "
" अरे। बापू सही कह रहे थे। जिस लङकी के लिये उन्हें छोंङ रहा है, वह कभी भी धोखा देगी।"
दोनों चुङेलों को उनकी बातों से कोई मतलब न था। बस उनका काम तमाम करना था। पर तभी दोनों चुङेलों पर उस लङकी का ताकतवर हाथ पङा। दोनों एक ही वार से गिर गयीं। उठने की कोशिश करतीं उससे पहले लङकी उनकी पीठ पर बैठी थी।
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पुलिस लाक अप में रुक्मिणी और राधिका दोनों बैठे थे। इतने खून करने पर भी इंस्पेक्टर सुल्तान सिंह उनसे नरमी से पेश आ रहे थे।
"हमने तुम्हारी पूरी कहानी पता कर ली है। तुम्हारे साथ जो ज्यादती हुई, उसका हमें दुख है। पर तुमने कानून का सहारा लेने के बजाय खुद अपराध का रास्ता चुना। उस रोज संजू के साथ मेने सङक पर सूखा खून देखा था। तो भूत प्रेत की बात तो गलत ही थी। पर तुम्हें पकङने के लिये हमने यह जाल बुना। लङका और लङकी दोनों हमारी खुफिया टीम का हिस्सा थे। "
" आपने अपनी बात कह दी साहब। पर क्या यह समाज का कसूर नहीं है कि उसके सामने अपराध होता रहे। कोई आवाज तक न उठाये। हमने अपराध किया है और सजा भी भुगतेंगें। पर गांव बालों का भी अपराध अक्षम्य है। उन्हें आप कौन सी सजा दिलायेंगे। "
रुक्मिणी की बात का इंस्पेक्टर सुल्तान सिंह पर कोई जबाब नहीं था। बरहाल उन्होंने दोनों की खूब कानूनी मदद की। अदालत से भी प्रार्थना की कि इनसे विशेष स्थित में अपराध बन गया है। ये कोई पेशेवर मुजरिम नहीं है। फिर भी दोनों को दस साल की जेल तो हुई। गांव बालों को उनकी नामर्दगी की क्या सजा मिलेगी, इस प्रश्न पर जज और इंस्पेक्टर दोनों चुप थे। हालांकि रुक्मिणी और राधिका का प्रश्न भी जायज तो है।