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संजय मर्डर मिस्ट्री

30 नवम्बर 2021

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नैष्ठिक बा़ह्मण परिवार में जन्मे इंस्पेक्टर राधेश्याम शर्मा को कस्बे में आये ज्यादा दिन नहीं हुए थे। पर उनके सदाचार ने कस्बा वासियों के दिल में अलग ही जगह बना दी थी।

पित्र पक्ष हिंदू धर्म के अनुयायियों का वह समय है जब हिंदू अपने मृत पितरों को भी तर्पण और अन्न से संतुष्ट करते हैं। आज पित्र पक्ष के पहले दिन राधेश्याम जी अपने सभी पितरों को याद किया। उन्हें तर्पण किया। जिनका नाम ज्ञात था, उनका नाम लेकर और जिनका नाम ज्ञात नहीं, उन्हें भी श्रद्धा से तर्पण किया। फिर अंत में जैसा बचपन से सीखा था, उसी तरह बोल दिया - "अन्य जाने अनजाने जो भी मुझसे जल की आशा रखते हैं, जल गृहण कर संतुष्ट हों।"

"मेरा खून हुआ था सात साल पहले। तुम मुझे न्याय दिला दो। मैं संतुष्ट हो जाऊंगा।"

राधेश्याम के कानों में आबाज सुनाई दी। इधर उधर देखा। कोई दिखाई नहीं दिया। फिर राधेश्याम भी घर को चल दिये। पर अब हर रोज तर्पण के समय ऐसी ही आबाज सुनाई देती। समझ गये कि कोई मृत आत्मा उससे न्याय की उम्मीद लगाये है। पर वह कौन है और किसने उनका खून किया है। राधेश्याम समझ नहीं पाये।

.......................

इंस्पेक्टर राधेश्याम अदालत से आये पत्र को पढ रहे थे। किसी संजय सक्सैना की रिपोर्ट मांगी थी। संजय सक्सैना नलकूप विभाग में बाबू थे। विगत सात वर्ष पूर्व गायब हो गये थे। उनका कोई पता नहीं चला। गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज हुई। उनकी पत्नी रति सक्सैना ने अदालत में प्रार्थना पत्र दिया कि उनके पति का सात वर्षों से कोई पता नहीं है। लिहाजा उन्हें मृत मानकर उनकी संपत्ति, उनका फंड आदि उन्हें प्रदान किया जाये। नलकूप विभाग में भी मृतकाश्रित स्थान पर उन्हें नौकरी दिलाई जाये। और अदालत ने संजय सक्सैना की स्थिति की तहकीकात करने का निर्देश इंस्पेक्टर राधेश्याम को दिया था। कानून की यही व्यवस्था है कि लाश न मिलने की स्थिति में व्यक्ति को गुमशुदा माना जाता है और सात साल बाद ही उसे मृत मानते हैं।

इंस्पेक्टर राधेश्याम शर्मा ने पुरानी फाइलें देखीं। संजय सक्सैना के गुम होने की सूचना उसकी पत्नी रति सक्सैना ने दी थी। कोई पचास के आसपास का आदमी था। अगर आज होता तो उसकी उम्र कोई सत्तावन साल होती। राधेश्याम ने जानकारी जुटानी शुरू की।

........................

इंस्पेक्टर राधेश्याम ने दरबाजा खटखटाया और एक चालीस साल की सुंदर स्त्री ने दरबाजा खोला।

"मुझे श्रीमती रति सक्सैना से मिलना है।"

"इंस्पेक्टर। मैं ही रति हूं।"

इंस्पेक्टर को यकीन ही नहीं हो रहा था। आज लगभग चालीस साल की औरत सात साल पहले तैतीस की होगी। फिर संजय की आयु पचास साल लिखी थी। पति पत्नी की आयु में इतना अंतर।

"आपके पति कैसे गायब हुए थे। "
" सात साल पहले एक रोज मेरे पति आफिस से आये ही नहीं। फिर पता किया तो उस रोज वह आफिस गये ही नहीं थे। उस दिन से आज तक उनका कोई पता नहीं चला।"

इंस्पेक्टर राधेश्याम शर्मा को कुरेदने की ज्यादा आदत थी। या यह कहो कि तरह तरह की बात करके सच्चाई पता करने की। कई बातें जो सात साल पहले जानने की थीं, इंस्पेक्टर ने उनमें ज्यादा रुझान दिखाया। मसलन - कोई झगङा तो नहीं हुआ। किसी से कोई अनमन तो नहीं थी। किसी से पैसे का लेनदेन। बगैरह।

इंस्पेक्टर ने अनुभव किया कि रति थोङी नर्बस लग रही है।

"मैडम। एक बात समझ में नहीं आयी। आपकी और आपके पति की उम्र में बहुत अंतर है। यह क्या बात है।"

"अब आपसे क्या कहूं। मेरे पीहर के हालात ज्यादा सही नहीं थे। पिता जी बचपन में ही चल बसे। तो बिना लेन देन के नौकरी बाला लङका मिल रहा था। फिर मेरे पति ने भाई को दुकान खोलने के लिये पैसे भी दिये थे। इस तरह मेरी शादी बहुत बङे आदमी से कर दी। "

" तो आप अपनी वैवाहिक जीवन से खुश नहीं थीं। "

" ऐसी बात नहीं है। अब शादी के इतनी साल बाद ऐसी कोई बात नहीं है। अब तो दो बच्चे भी हैं। बङी लङकी चौदह साल की और छोटी बारह साल की है। "

इंस्पेक्टर राधेश्याम को इतना तो लग गया है कि कुछ दाल में काला है। कुछ बातें और पता करनीं होंगी।

....................

मुखबिरों से मिली सूचना के अनुसार रति संजय की दूसरी पत्नी थी। पहली पत्नी सुनीता और संजय ने बहुत लङाई होती थी। अंत में दोनों अलग हो गये। संजय बहुत स्मार्ट था और सरकारी नौकरी भी थी। रति के घरबाले एकदम गरीब थे। तो रति की माता ने उसकी शादी संजय से कर दी। वैसे रति के लिये उससे अच्छा लङका मिल भी नहीं सकता था। दोनों में प्रेम था या नहीं पर नफरत की खबर भी पता नहीं चली। दो बच्चे भी हुए। एक दिन अचानक संजय कहाॅ लापता हो गया। कोई सुराग नहीं मिला।

इंस्पेक्टर राधेश्याम ने पुरानी तहकीकात देखी। बस खानापूर्ति थी। कोई जांच अच्छे से नहीं की। आपराधिक मामला होने की पूरी संभावना थी। संजय ने पहली पत्नी को तलाक दिया। वह भी नफरत की आग में जल रही होगी। दूसरी पत्नी उम्र में बहुत छोटी है। शायद वह संजय से खुश न हो। विभाग में या बाहर भी रंजिश की संभावना थी। पर फाइल केवल गुमशुदा की तलाश से आगे नहीं बढी। अब न तो किसी की सात साल पुरानी काल डिटेल मिल सकती और तकनीकी तरीके भी बेकार ही थे। तो बेहतर यही था कि थोङी बहुत जांच करके रिपोर्ट बना दी जाये कि संजय सक्सैना सात साल से कहीं देखा और सुना नहीं गया।

........................

"मुझे सुनीता से मिलना है।"

"जी आइये। मैं ही सुनीता हूं।"

सुनीता ने इंस्पेक्टर राधेश्याम का स्वागत किया। कोई बाबन साल की महिला थी। उसे सुंदर नहीं तो बदसूरत तो नहीं कह सकते।

"नलकूप विभाग के बाबू संजय सक्सैना को जानती हैं।"

"मुझे उसका नाम भी नहीं सुनना। "
" आखिर इतनी नफरत की बजह। "
" अय्याश था एक नंबर का। छोटी लङकियों का दीबाना था। ऐसे से नफरत न करूं तो क्या करूं।"

"यह भी तो संभव है कि इसी नफरत की आग में संजय कहीं झुलस गया हो। उसकी गुमशुदगी का क्या राज है। "

" इंस्पेक्टर। संजय की गुमशुदगी से मेरा कोई मतलब नहीं है। वैसे भी मेने दूसरी शादी कर ली है। मेरा बेटा दस साल का है। "

सुनीता की बातों में संजय के लिये नफरत जरूर थी। पर संजय को नुकसान पहुंचाने का कोई कारण भी नहीं था। वह तो खुद शादी कर चुकी थी। रति भले ही संजय से बहुत छोटी सही पर उसके रिश्तों में खटास की कोई सूचना भी नहीं। पर इतना तो जरूर था कि कुछ तो छूट रहा है। अगर सात साल पहले जांच की जाती तो बात सामने आ सकती थी।

.....................

"मैडम रति सक्सैना। मैं आपको बताने आया हूं कि बरेली मानसिक आरोग्य केंद्र पर एक व्यक्ति पिछले साल सालों से है। उसकी शक्ल बहुत कुछ आपके पति संजय से मिल रही है। तो अभी इस बात की पूरी संभावना है कि आपके पति जीवित हैं।"

"नहीं सर। ऐसा नहीं हो सकता है। मेरे पति संभवतः जीवित नहीं हैं। "

" मैडम। आपको खुश होना चाहिये। आपके पति जीवित हो सकते हैं। पर जब तक वह मानसिक रोगी पूर्ण स्वस्थ न हो जाये तब तक उन्हें जीवित भी नहीं कह सकते। आज यही रिपोर्ट लिखकर अदालत भेज देता हूं। संदिग्ध मानसिक रोगी के स्वस्थ होने तक हमें रुकना होगा। "

....................

" इंस्पेक्टर ।आज तुझे कोई नहीं बचा सकता। "

तर्पण करके वापस आ रहे राधेश्याम को पांच लोगों ने ललकारा। राधेश्याम भी उनसे भिङ गया। पर पांच लोगों ने भला कैसे लङ सकता था। पर राधेश्याम को खुद के साथ कोई और महसुस हुआ। शायद वही जो राधेश्याम को हर सुबह खुद के खून की सूचना देता था। आखिर एक बदमाश पकङ में आ गया। चार भाग गये।

................

"इतनी हङबङी में कहाॅ जा रही हैं मैडम रति सक्सैना। जरूर अपनी मौसेरी बहन सुनीता के पास। चलो हम ले चलते हैं आपको वहाॅ। वह तो हमारी मेहमान हैं।"

पुलिस लाकअप में दोनो औरतें बैठीं थीं।

" देखो। आप खुद से चुपचाप बताओंगीं या लेडी कांस्टेबल से मेहनत कराओंगीं। पर हमारी मेहनत का परिणाम इन पांचों की हालत देख कर समझ लो। इन्हें मुझे मारने के लिये भेजा था।"

"सर माफ कर दो। गरीबी ने दिमाग खराब कर दिया था। बचपन से ही देखते आ रहे थे। किसी धनी को पटाओ और फिर श करो। पहले मेने संजय को पटाया। शादी भी कर ली। पर दूसरे आदमियों से भी लगी रही। पुरानी आदत थी। एक दिन संजय को पता चल गया। फिर बङा झगङा हुआ। सारा प्लान बिगङ गया। मेरा तो तलाक हो गया। फिर दूसरे को फसा लिया। पर रति मेरी मौसेरी बहन थी। संजय को इस बारे में पता भी नहीं था। तो फिर रति ने संजय को फंसाया और रति ने संजय से शादी कर ली। " सुनीता ने बताया।

" सर। संजय की उम्र ज्यादा थी तो मैं शादी से कतरा रही थी। तो फिर सोचा कि पैसे की कौन सी कमी है। और आदमी की कमी तो बाहर भी पूरी हो जायेगी। पर मेरे अरमान मिट्टी में मिल गये। सुनीता से धोखा खाया संजय बहुत सतर्क रहता था। फिर सोचा कि अगर इसे टपका दिया जाये तो काम बन जायेगा। लाश मिलने पर तो जांच होती। तो उसे मारकर लाश गायब करने का प्लान बनाया। " रति ने बताया।

" सर। संजय को मारने के लिये मेने आदमी भेजे थे। पर जब आपने संजय के जिंदा होने की खबर रति को दी तो उसने मुझे बताया। फिर आपको ही खत्म करके फिर से संजय को खत्म करने का प्लान बना लिया। पर ये बेबकूफ पकङ गये और हमारी पोल खुल गयी। "

" बिलकुल गलत समझा आपने ।आपकी पोल तो आपकी काल डिटेल ने ही खोल दी थी। संजय की दोनों पत्नियों में बातचीत कुछ समझ नहीं आया। इतना लगा कि दोनों मिले तो हो। और बरेली में संजय जैसा कोई मानसिक रोगी नहीं है। यह तो हमारा प्लान था तुम्हारा सच बाहर लाने का। अब बताओ कि संजय का शरीर कहाॅ ठिकाने लगाया है। "

" सर। इस विषय में हमें बिलकुल नहीं मालूम। क्योंकि जिन लोगों से काम कराया था वह तो एक साल पहले ही पुलिस मुठभेड में मारे गये। "

इंस्पेक्टर के निर्देश पर पांचों बदमाशों की और लेडी पुलिस ने दोनों औरतों की काफी खातिर की। पर संजय की बोडी कहाॅ ठिकाने लगी है, कभी पता नहीं चला।

................

पित्र पक्ष की अमावस्या को इंस्पेक्टर राधेश्याम तर्पण कर रहे थे। आज उन्होंने सुना कि अब मैं तुमसे खुश हूं। तुमने मेरे कातिलों को पकङ लिया।

"महोदय। इतना और बता दें कि आपका मृत शरीर कहाॅ ठिकाने लगाया था।"

पर इंस्पेक्टर राधेश्याम को फिर कोई आबाज नहीं आयी। मर्डर का पूरा केस हल करके भी मृतक का शरीर या किसी भी अंग का कोई पता नहीं था। क्योंकि योजना बनाने बाले तो पुलिस की गिरफ्त में थे और योजना को पूरा करने बाले पहले ही भगवान को प्यारे हो गये थे।


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