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जादूई घड़ी की चोरी

30 नवम्बर 2021

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नगर के बीचोंबीच घंटाघर पर लगी घङी कभी की खराब हो चुकी थी। कभी अंग्रेज़ी शासन में जनता की समस्या के लिये लगायी गयी घङियां अब शो पीस बन गयीं थीं। हाॅ जगह का नाम जरूर घंटाघर पङ गया।

सेठ निर्मल दास स्विटजरलैंड घूमने गये। इतनी सुंदर जगह कि मन मोहित हो गया। घङियों की दुकान पर एक बहुत बङी घङी दिखी। बिल्कुल घंटाघर की घङी जैसी। सेठ जी रुक गये। भले ही धनियों के पास घङी थीं पर गरीब तो अभी भी तारों के सहारे थे। सोचा कि खुद के लिये तो खरीदारी करता ही रहता हूं। क्यों न कुछ शहर के लिये खरीदारी कर ली जाये। वैसे ऐसे नेक ख्याल हमेशा नेक लोगों के मन में ही आते हैं। और सेठ निर्मल दास निश्चित ही नेक आदमी थी। शहर में गरीबों के लिये मुफ्त अस्पताल, मुफ्त स्कूल खुलबाया था। गर्मियों में शहर में जगह जगह ठंडे पानी के लिये वाटर कूलर भी लगवाते। जाङों में अलाब जलबाते। निश्चित ही लक्ष्मी जी का काफी भाग परोपकार में खर्च होता।

घंटाघर पर घङी लगबा दी गयी। लोगों की राय में बिना सेल और बिना सुई के चलने बाली घङी कोई जादूई घङी थी। पर वास्तव में सोलर ऊर्जा से घङी अनबरत चलती रहती। इतनी सक्षम थी कि एक बार चार्ज होने पर दस पंद्रह दिन आराम से चल जाती। वर्षा के दिनों में कई बार भगवान सूर्य निकलते नहीं है पर सेठ जी जो जादूई घङी लेकर आये, वह बरसात में भी चलती रहती। फिर कोई यह कैसे माने कि सौर ऊर्जा से चलती है। सचमुच घङी के जादूई होने में कोई शक न था।

.......................

" सुनिये जी। आपको नहीं लगता कि पापा जी दूसरों पर ज्यादा दौलत लुटा रहे हैं। पहले ही कितने खर्च बढा रखे हैं। ऊपर से इतनी मंहगी लाखों की घङी ले जाये।"

"तुम सही कह रही हों रत्ना। पर पापा भी एकदम जिद्दी हैं। समझाने पर समझते ही नहीं। उन्हें अपनी वाहवाही सुनने का नशा सा हो गया है। इसके लिये घर की पूंजी भी लगा रहे हैं। "

" पर इससे तो हमारा नुकसान हो रहा है। आपको डर लगता है। पर मुझे नहीं। इस तरह इस घर में मेरा निर्वाह नहीं हो पायेगा। "

" ठीक है। पापा से बात करता हूं।"
" हाॅ कर लेना। पर हर बार की तरह ढिलमिम तरीका मत अपनाना। नहीं फिर मत बोलना कि औरत होकर आदमियों के बीच बोलती है। "

...........

हमेशा की तरह सेठ निर्मल दास ने लङके स्वरूप को खरी खोटी सुना दी।

" बङे आये मुझको रोकने बाले। यह सारी जायदाद दिन रात मेहनत करके जुटाई है। गरीबी में पैदा हुआ। एक एक पाई जोङकर और दिन रात की मेहनत से आज यह मुकाम हासिल हुआ है। और शहजादे को देखो, मेरे खर्च पर आपत्ति हो रही है। अरे अपने बलबूते दो पैसे कमाकर तो दिखाओ। तब मेरे खर्च पर ऐतराज करना। "

स्वरूप तो बोल नहीं पाया। अदब से ज्यादा डर था। सचमुच पिता के साये में रोटी तो मिल रही है। उस जैसे कामचोर को कोई मजदूर भी न रखे। और मजदूरी कर पाने की हिम्मत भी न थी। हमेशा बैठकर खाया। पर सेठ जी को उम्मीद भी न थी कि उनसे जबान चलाने को उनकी पुत्रबधू तैयार बैठी है।

"देखो पिता जी। आपकी संपत्ति पर हमारा भी अधिकार है। आपको हक नहीं है कि इस तरह हमसे पूछे बिना बर्बाद करें। फिर दान धर्म से कौन आपको रोक रहा है। पर एक सीमा में करो। इस तरह बर्बादी मैं तो नहीं होने दूंगी।"

सेठ जी संस्कारी व्यक्ति थे। बहू बेटियों से अदब से पेश आते। पर बहू की बातें उनके मन में तीर जैसी लगीं। थोङा संयम खो बैठे। विवाद बढ गया। रत्ना ने अपना बृह्मास्त्र प्रयोग किया। ससुर के खिलाफ दहेज के लिये तंग करने की रिपोर्ट लिखा दी। लङका ज्यादा ही डरपोक था। न तो सेठ जी से बात करने की उसकी हिम्मत थी और न अपनी पत्नी को फटकार पाना उसके वश में। पर सेठ जी की खुदकिस्मती थी कि ज्यादातर लोग उनके पक्ष में थे। तो जल्द जमानत मिल गयी। अलबत्ता लङका और बहू को उन्होंने हवेली से बाहर का रास्ता दिखा दिया। वैसे अगर शहर के गणमान्य लोगों का साथ न होता तो शायद ही रत्ना घर से निकलती।दोनों को शहर में तो ठिकाना मिला नहीं, अलबत्ता स्वरूप अपनी ससुराल में रहने चला गया। आराम की रोटी केवल ससुराल में ही मिल सकती थी।

सेठ निर्मल दास पर कई मुकदमे हो गये। स्वरूप जायदाद में अपना हिस्सा चाहता था। मुकदमे में नाम जरूर स्वरूप का था पर वास्तव में मास्टर माइंड रत्ना ही थी।

............

अकेले दुकान सम्हाल रहे सेठ जी को लगा कि स्वरूप वास्तव में उतना निठल्ला नहीं था जितना वह उसे मानते थे। कम से कम देखभाल तो करता ही था। बुढापे का शरीर। अब उनमें जबानी की बात नहीं थी। बस मन में भ्रम पाल रखा था कि सब कुछ वही कर रहे हैं। अब नौकरों पर नियंत्रण तक तो कर नहीं पा रहे। सचमुच व्यापार में स्वरूप की भी कुछ तो मेहनत थी। पर हिसाब से बात करता। बेइज्जती तो नहीं करता। और तो और औरत के इशारे पर इस तरह नांच रहा है। पुलिस को भी सही बात बताने की हिम्मत नहीं थी। वो तो शहर में इतना मान है। नहीं तो पता नहीं कब तक जेल में रहते। ईश्वर ऐसे औलाद से बचाये।

ऊपर से तो ऐसा ही कहते पर मन ही मन प्रार्थना करते कि कोई चमत्कार हो जाये। लङका ओर बहू किसी तरह एक बार आकर झूठ मूठ को ही माफी मांग ले। फिर धीरे धीरे सब सही हो जायेगा। पर स्वरूप को अब पहले से भी ज्यादा आराम था। तो सेठ जी के सपने बस सपने ही रह गये।

.............

सुबह सुबह गलियों की सफाई करने बाले जमादार को घंटाघर में कुछ फर्क तो लगा। अंधेरे में दूर से ज्यादा नहीं दिखा तो नजदीक से देखने पहुंचा। कई बार आंखें बंद कर खोलीं। शायद विश्वास ही नहीं हो रहा हो।थोङी ही देर में पुलिस की गाड़ी घंटाघर पर थी। आखिर सेठ जी ने जो घङी घंटाघर पर लगवाई थी, वह चोरी हो गयी। बङे अरमान से सेठ जी घङी लेकर आये थे। अभी दो ही महीने हुए थे। सही बात है कि भले लोगों की कमी नहीं है तो बुरे लोगों की भी कोई कमी नहीं है।

इंस्पेक्टर राजेश चौहान ने कितने ही जेबकतरों और चोर उचक्कों को उठवा लिया। पर कोई खास जानकारी नहीं निकल रही थी। हालांकि शहर वासी काफी वक्त से बिना घङी रह रहे थे। पर इंस्पेक्टर राजेश की कुछ सनक ही थी कि मामले को सुलझाये बिना चुप नहीं बैठता। कइयों से पूछताछ की। घङी सेठ जी ने लगबाई थी तो सेठ जी के दुश्मनों की भी सुची तैयार हुई। खुदा न खास्ता सेठ जी का किसी से भी झगङा न था सिवाय बेटे और बहू के। संभावना तो कम थी पर उनसे भी बात की। अब पहली बार इंस्पेक्टर राजेश को यह चोरी का केस बंद करना पङा।

................

आखिर सेठ जी का सपना एक दिन साकार हो गया। बेटा और बहू दोनों उनके पैरों पर सर रखे थे। वैसे समाज के सामने सेठ जी बहुत गर्म होकर दिखा रहे थे। पर दूसरों के कहने पर आखिर उन्हें रखने को तैयार हो गये। चलो सेठ जी के घर में शांति हुई। शांति ही नहीं खुशियां भी आयीं। सेठ जी दादा बनने बाले थे। लङके और बहू के लिये कंजूस रहे सेठ जी अब उनपर बहुत दयालु थे। बहू की देखभाल के लिये चौबीसों घंटे की नौकरानी थी। थोङी बहुत नर्स की पढाई की एक लङकी भी रत्ना की देखभाल कर जाती। हालांकि सेठ जी को शुरू में तो नर्स पर खर्च करना ठीक नहीं लगा। पर फिर मान गये। खाना बनाने को भी नौकरानी लगा दी। जबकि पहले उनकी राय खाना तो घर की औरतों से ही बनबाने की थी। पर आपत्ति में खुद भी नौकरों के हाथ का बना खा चुके थे। तो अब क्या दिक्कत करते।

.................

इंस्पेक्टर राजेश को देख सेठ निर्मल दास चौंक गये। आदर से बिठाला।

"कहिये। इंस्पेक्टर साहब। कैसे खिदमत की आपने।"

"सेठ जी। आपकी घङी चोरी हो गयी। ईश्वर भी घोर अन्याय करता है। अपनी पूरी नौकरी में सभी केस हल किये पर आपके केस के किसी सिरे तक पहुंच नहीं पाया। सोचा कि आपसे क्षमा ही मांग आता हूं। इसमें तो कोई परेशानी नहीं होगी।"

" इंस्पेक्टर साहब। आप तो लज्जित कर रहे हैं। आप जैसे काबिल अधिकारी भी चोर को ढूंढ नहीं पाया तो ईश्वर का ही विधान होगा। यही सोच संतोष कर लेता हूं। "

" अवश्य सेठ जी। ईश्वर की लीला अपरंपार है। उनकी इच्छा के बिना भला कौन सफल हो सकता है। यदि ईश्वर की कृपा हुई तो अब भी घङी का चोर मिल जाये। ईश्वर की इच्छा हो तो घङी अभी चोर से बरामद हो जाये। "

" बिलकुल इंस्पेक्टर साहब। ईश्वर सर्व शक्तिमान है। "

" सेठ जी। आप तो इतने परोपकारी हैं। ईश्वर भक्त हैं। मैं सोच रहा था कि यदि आप आशीर्वाद मुझे दें तो शायद मैं इसमें कामयाब हो जाऊं। "

" अरे आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। मैं भला कौन भक्त हूं। यूं ही प्रभु के गुणगान कर लेता हूं। "

पर इंस्पेक्टर को सेठ जी पर श्रद्धा थी। आखिर सेठ जी ने भी इंस्पेक्टर को आशीर्वाद देने के लिये हाथ उठाया। और इंस्पेक्टर ने चुपचाप सेठ जी के हाथ में हथकङी डाल दी।

" इंस्पेक्टर। यह क्या बत्तमीजी है। "

" सेठ जी। आपके आशीर्वाद से मेने घङी चोर को पकङ लिया है। रुक्मणी... बाहर आओ।"

इंस्पेक्टर राजेश के आवाज देते ही नर्स सौम्या बाहर आयी। पुलिस बालों की तरह इंस्पेक्टर को सैल्यूट किया और खङी रही।

"चौकिये मत सेठ जी। रुक्मिणी हमारी खास जासूस है। थोङा बहुत नर्स का काम भी कर लेती है। आपने बेटे और बहू जिस नाटकीय तरीके से वापस आये, उससे हमें आपपर शक हुआ। ओर जब आपकी बहू गर्भवती हुई तो रुक्मिणी को हमने सौम्या बनाकर भेज दिया। आप किसी के सामने भले बात न करो पर पीछे की आपकी सब बातें रुक्मिणी की रिकोर्डिंग डिवाइस में रिकोर्ड होतीं थीं। डिवाइस भी मजेदार कि आपको शक भी न हो। जैसे कलम, हैयर बैंड, कङा। रुक्मिणी उन्हें अलग अलग कमरों में छोङ जाती और दूसरे दिन उनकी रिकोर्डिंग निकाल लेती। तो पहले तो घङी बरामद करें। "

इंस्पेक्टर राजेश ने एक बंद कमरे को खोला। एक बक्सा खोलकर घङी निकाल ली।

" सेठ जी। अब आप बता ही दें। आखिर यह चोरी क्यों कराईं। "

" इंस्पेक्टर। पहली बात यह कि घङी मेने दी थी तो फिर मेने कोई चोरी नहीं की। अब असल बात पर आता हूं। बेटे के जाने के बाद अकेलापन सालने लगा। मुझे लगने लगा कि यह व्यापार में उसकी भी मेहनत है। रत्ना की बात कङबीं थीं पर मुझे लगने लगा कि वह सही कह रही है। पहले तो मुझे लगा कि दोनों कुछ दिनों में वापस आ जायेंगे। फिर एक दिन मैं चुपचाप बेटा और बहू को मनाने पहुंच गया। मेने रत्ना को आश्वासन दिया कि वह जैसे कहेगी, उसी तरह खर्च करूंगा। बस एक बार लोगों के सामने माफी मांगने का नाटक कर दो। पर रत्ना ने कहा कि हम तो सबके सामने मांफी मांगें। और कल आप पहले जैसे खर्च करने लगो। तो उसने मुझे कहा कि घंटाघर से घङी निकलबा लो तो आ जाऊंगी। आखिर मेने अपने भरोसे के नोकर रामू से घङी उतरबा ली और छिपा दी। पर मेने कौन सी चोरी की है। खुद की दी घङी वापस ली है। "

" सेठ जी। मैं आपकी भावनाएं समझ रहा हूं। पर एक बार समाज को दान दी गयी वस्तु बिना बताये वापस लेना चोरी की ही परिभाषा में आता है। आपने न केवल चोरी की अपितु कानून को भी गुमराह किया। वैसे मैं आपपर बहुत गहरे चार्ज नहीं लगाऊंगा तो उम्मीद करुंगा कि आपको ज्यादा सजा नहीं होगी। आपका नौकर रामू पहले ही सब सच स्वीकार कर चुका है। वैसे चोरी की साजिश में आपके पुत्र और पुत्रवधू भी शामिल हैं। पर उम्मीद है उन्हें अदालत में तुरंत जमानत मिल जाये।"

.........

रुक्मणी अपनी वापसी की तैयारी कर रही थी। जासूस खुद के शहर में जासूसी नहीं कर सकते। खुद के शहर में कई लोग इनका बैकग्राउंड जानते हैं।

" रुक्मिणी। सचमुच इस केस में मैं फेल ही था। शक तो हो रहा था पर सेठ जी से पूछताछ भी नहीं कर सकता। कई लोग तो उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं। पर आप मदद न करती तो शायद मैं उन्हें पकङ न सकता।"इंस्पेक्टर ने रुक्मिणी से कहा।

"सर मुझे लगता है कि हालात आदमी को अपराधी बना देता है। कहाॅ सेठ जी परोपकार में जीने मरने बाले थे। और हालात ऐसे बने कि वह खुद चोर बन गये। "

" रुक्मिणी। बात तो तुम्हारी एकदम सही है। अब कब मुलाकात होगी। "

" अब सर। इस शहर में तो मेरी हकीकत खुल चुकी है। पर यदि आपका स्थानांतरण कहीं दूर हो जाये और आप मुझे याद करेंगें तो जरूर आऊंगी। "

बाय बोलकर रुक्मिणी बस में बैठ गयी। पर उस बस में जो उसके शहर को नहीं जाती। आखिर जासूस है। अपना सुराग किसी को नहीं देगी।


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