असली कातिल
जल विभाग के जे ई शिवचरण रंगीन मिजाज का लङका था। नयी उम्र ऊपर से पैसे की कोई कमी नहीं, फिर खुले विचार, घर से अलग, सभी बातों ने कुछ बिगाड़ दिया था। सुरा और सुंदरी का शौक तो था ही। ऊपर से एक प्राइवेट आपरेटर लङकी भी ऐसी ही मिल गयी। सुहानी थी भी बहुत सुन्दर। फिर थोङे से पैसे में काम भी कहाॅ चलता है। जो भी कुछ रहा, पर सुहानी और जे ई दोनों एक ही साथ सरकारी आवास में रहते। दोनों के संबंधों पर सामने भले ही कोई कुछ न कहे पर पीछे हमेशा चर्चे होते। पर लिव इन रिलेशन में रहना कोई अपराध तो नहीं है।
तीन दिन से शिवचरण और सुहानी दोनों दिखाई नहीं दे रहे थे। सरकारी आवास पर ताला पङा था। पहले भी कई बार बिना बताये गायब हो चुके थे। पर इस बार जे ई शिवचरण के क्वार्टर से बदबू आने लगी। मामला संदिग्ध था। पुलिस को बुलाया। ताला तोङकर पुलिस घर में घुसी तो शिवचरण की रक्तरंजित लाश मिली। मारने बाले ने किसी चाकू या धारदार हथियार से उसे मार डाला था और ताला लगाकर चला गया था। लिव इन में रहने बाली सुहानी नदारद थी। उसकी रक्तरंजित चुन्नी शव के पास मिली।
मामले की तहकीकात कर रहे इंस्पेक्टर सुभाष ने तुरंत सब इंस्पेक्टर रीता के साथ पुलिस की एक टोली सुहानी के गृह नगर भेज दी। खुद विभिन्न पहलुओं पर जांच करने लगे। कइयों के बयान लिये। कोई दुश्मनी का एंगल नजर नहीं आ रहा था। बस संदेह की सुई सुहानी के इर्द-गिर्द घूम रही थी। ऐसे रिश्तों का क्या। कब खत्म हो जायें। कब लोभ इतना हावी हो जाये। या शिवचरण लङकी की मजबूरी का फायदा उठा रहा था। लङकी को बर्दाश्त नहीं हुआ और काम तमाम करके चली गयी।
सब इंस्पेक्टर रीता को बहुत मेहनत नही करनी पङी। सुहानी को लेकर पुलिस टीम वापस आ गयी। पूछताछ में सुहानी ने मर्डर से साफ इंकार कर दिया। यह सच है कि वह शिवचरण के साथ रहती थी और शिवचरण उसकी जरूरत भी पूरी करता था। पर तीन दिन पहले वह अपने घर गयी थी। पीछे का उसे पता नहीं। पर एक सत्य यह भी है कि कोई भी अपराधी आसानी से जुर्म स्वीकार नहीं करता। सब इंस्पेक्टर रीता यह जानती थी। अपनी नौकरी में कितनी ही महिला अपराधियों के मुख से सच निकलबा चुकी थीं। पर सुहानी से पूरी रात पूछताछ व सख्ती करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ।
शिवचरण की लाश पोस्टमार्टम के लिये भेजी गयी। शिवचरण और सुहानी दोनों की काल डिटेल व बैंक स्टेटमैंट इंस्पेक्टर सुभाष के पास थे। दोनों के मध्य अनाप सनाप लेनदेन व काल डिटेल की लोकेशन हर तरह सुहानी को अपराधी ठहरा रहे थे। शनिवार की शाम छह बजे तक सुहानी की मोवाइल लोकेशन शिवचरण का आवास थी। फिर सुहानी शिवचरण का मर्डर करके अपने घर चली गयी। शिवचरण की लाश के पास सुहानी की चुन्नी का मिलना भी उसे दोषी ठहरा रहा था।
दूसरे दिन सुहानी अदालत में पेश की गयी। पुलिस के साक्ष्य काफी हद तक उसे खूनी साबित कर रहे थे। तो पुलिस को उसकी सात दिन की रिमांड मिलने में कठिनाई नहीं हुई। इतना जरूर था कि पहले व रिमांड के बाद उसका मैडिकल कराने का आदेश अदालत ने दिया।
फिर अगले दो दिनों और रातों तक महिला लाकअप से रुक रुक कर सुहानी की चीखें आती रहीं। रीता और महिला पुलिस की टीम कठोर से कठोर अपराधियों के मुख से सच निकलबा लेतीं थीं। जब सब इंस्पेक्टर रीता ने मुह खुलबाने के खास तरीके अपनाये तो अंत में सुहानी भी टूट गयी।
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एक कमरे में कुर्सी पर सुहानी बैठी थी। सामने इंस्पेक्टर सुभाष बैठे थे। सब इंस्पेक्टर रीता भी नजदीक बैठी थी। दो महिला सिपाही सुहानी के पास खङीं थीं। सुहानी अपने अपराध को कबूल कर रही थी।
" सर। मैं थोड़ी महत्वाकांक्षी लङकी हूं। अपने सपने पूरे करने के लिये किसी का भी सहारा ले सकती हूं। जे ई को देखकर मुझे अपने सपने पूरे करने का रास्ता मिल गया। फिर मैं उसी के साथ रहने लगी। मेरी जरूरत पूरी होने लगी। पर कुछ दिन से शिवचरण मुझसे कतरा रहा था। मुझपर खुलकर खर्च नहीं कर रहा था। उस शाम मेरा इसी बात पर उससे झगङा हुआ। उसने कह दिया कि तू चली जा। तेरी जैसी दूसरी ढूंढ लूंगा। फिर गुस्से में मेने रसोई से चाकू उठाया और उसे मार दिया। फिर घर भाग गयी। "
" चाकू कहाॅ है। "
" सर। नाले में फेंक दिया। जल्दी में कहाॅ फेंका पता नहीं। पर नाले में ही कहीं फेंका था। "
इस तरह जे ई शिवचरण की मर्डर मिस्ट्री का खुलासा कर पुलिस टीम खुश हो रही थी। बस पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था। रिपोर्ट के आने के बाद पूरा केस तैयार कर अदालत में पेश करने की तैयारी थी।
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पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढते ही सब इंस्पेक्टर रीता की आंखों से आंसू निकल आये। पुलिस की नौकरी में भावनाओं को अलग रख नौकरी करना सीख चुकी थी। किसी भी अपराधी औरत की चीखें उसे विचलित नहीं कर सकतीं थीं। पर रिपोर्ट देख उसे दो दिनों तक सुहानी की चीखें व्यथित करने लगीं। पुलिस का काम सच्चाई सामने लाना है। न कि किसी निर्दोष को जुर्म कबूल करने पर विवश करना। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हिसाब से जे ई का मर्डर रात दस से ग्यारह के बीच हुआ था। सुहानी की काल डिटेल के हिसाब से वह छह बजे शहर छोड़ चुकी थी। फिर इसका मतलब दो दिन रात का बेतहाशा थर्ड डिग्री उत्पीड़न की बजह से वह जुर्म कबूल करने को मजबूर हुई थी। रीता भागकर लाकअप तक गयी। दो दिनों तक सो न पाने के कारण अब वह सो रही थी। हालांकि करबट बदलने पर दर्द की बजह से थोङा कराह लेती।
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सुहानी जगी और सब इंस्पेक्टर रीता को लाकअप में घुसते देख सुहानी अनजान डर से कांप गयी।
"डरो मत सुहानी।देखो हमें पता लग गया है कि खुन तुमने नहीं किया। फिर तुमने कबूल क्यों किया।"
"मैडम जी। आप पूछ रही हैं। अभी भी पूरे शरीर में दर्द हो रहा है। एक जानवर की तरह कितना पीटा मुझे। जब तक ताकत थी मना करती रही। फिर कबूल कर लिया। ठीक है जेल हो जायेगी। पर जिंदगी तो सलामत रहेगी। " सुहानी फूट फूट कर रोने लगी।
अब फिर से जांच शुरू हुई। अलग अलग तरीके से जे ई को नुकसान पहुंचा सकने बाले लोगों की सूची बनायी। अलग अलग काल डिटेल खंगाली जा रहीं थीं। सुहानी को कोई फसा सकता है, इस पर भी जांच चल रही थी। पर कोई खास परिणाम नहीं मिल रहा था। सब इंस्पेक्टर रीता तो केस में इस कदर डूब चुकी थी। आखिर सुहानी के साथ जो ज्यादती की, उसे भी सुधारना था।
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सुहानी के कैद में होने से जल विभाग का काम प्रभावित हो रहा था। वैसे भी वह ठेकेदार के अन्तर्गत प्राइवेट लङकी थी। कोई नियमित कर्मचारी तो थी नहीं। उसकी जगह दूसरी आपरेटर रख ली गयी। सुहानी पर एक साथ कई संकट आये थे। पहले जरुरत पूरी करने बाला जे ई को किसी ने मार दिया। जे ई की मौत का इल्ज़ाम भी उसपर लगा। और उसकी जो नौकरी थी, वह किसी और लङकी को मिल गयी। अभी तो सुहानी को बेगुनाह साबित होने की ज्यादा चिंता थी।
जल विभाग का काम पहले जैसा ही चल रहा था। सब इंस्पेक्टर रीता अक्सर किसी न किसी से पूछताछ करने आ जाती थी। इंस्पेक्टर रीता को छोटी छोटी बातों पर ज्यादा जोर दे रही थी जैसे - एक दिन तुम्हारी शिव चरण से तू तू मैं मैं हुई थी। सुहानी ने एक बार तेरी शिकायत की थी। सुहानी लोक अप में बैठकर न जाने पुलिस बालों को कितने कान भर रही है। साथ काम करते हैं। कई बार कुछ हो जाता है। घर में भी चार बर्तन होते हैं तो खटकते ही हैं। पुलिस बालों को तो सब खुनी नजर आ रहे हैं। और सुहानी को देखो। एक तरफ जे ई के साथ खुलेआम रह रही थी। किसी और ने जरा मजाक कर लिया तो इतना तूल दे दिया। वैसे इस तरह की मजाक नहीं करनी चाहिये। लोगों में कुछ न कुछ चर्चाएं होतीं। आफिस में कम पर कैंटीन में ज्यादा बातें हो जातीं।
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"रुस्तम। क्या बैठे बैठे लोगों की बातों पर कान लगाये रखता है। अभी थोङे दिन पहले काम पर रखने के लिये रिक्वेस्ट कर रहा था। अब इतनी कामचोरी । चल साहब लोगों का आर्डर ले।" कैंटीन मालिक अक्सर अठारह साल के नये लङके को फटकारता रहता। रुस्तम काम तो बढिया करता पर लोगों की बातें सुनने की अजीब सी बीमारी थी। वैसे गलती रुस्तम की नहीं थी। सरकारी विभाग में दो चार कर्मचारी कैंटीन में बैठे ही रहते। दुनिया भर की बातें करते तो कई बार तो कैंटीन मालिक भी बातों में शामिल हो जाता।
"अच्छा उस्ताद। मुझे फटकारते रहते हो। और खुद भी।"
"चल आपना काम कर।"
मालिक और नोकर में यह प्रतिवाद अक्सर हो जाता।
"अरे गंगाराम जी। पिछले महीने तुम्हारे जे ई साहब से कौन लङकी लङ रही थी।" कैंटीन मालिक गंगाराम से बोला।
" जे ई साहब की मंगेतर थी। जे ई साहब कौन कम थे। दोनों उंगली उनकी घी में थीं।"
"अपने भोलादास भी कौन कम हैं। पहले सुहानी के पीछे पागल थे। सुहानी ने कभी भाव दिया नहीं। जे ई के आगे लाइन मैन को कौन पूछे। अब भी नयी लङकी रजनी पर नजरें हैं उसकी।" शोभाराम के कहने से ज्यादा हा हा हू हू होने लगी। पुलिस की पूछताछ में अक्सर बातें छिपाते थे। अब ये तो गैरजरूरी बातें हैं। पर मजाक के समय गैरजरूरी बातें बहुत महत्वपूर्ण बन जातीं जैसे इनके बिना तो जल निगम घाटे में चला जायेगा।
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एक लाकअप में भोलादास जी बैठे थे। गाल उनके लाल दिख रहे थे। दूसरे लाकअप में एक लङकी बैठी थी। रीता की मेहमानवाजी वह ज्यादा बर्दाश्त नहीं हो पायी। उनके उस दिन अपने घर होने की बात करने पर सब इंस्पेक्टर रीता ने होटल मधुवन का सी सी टी वी चला दिया। भोलादास भी सोच रहा था कि सलोनी से उसकी एकतरफा मुहब्बत की बात पुलिस को कैसे पता चली। लङकी की लोकेशन उस रात जे ई का घर थी। पुलिस की मेहमानवाजी दोनों ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाये। फिर जे ई के मर्डर की सच्चाई सामने आयी।
" मेडम। शिव चरण से मेरी शादी होने वाली थी। पर वह ओपरेटर लङकी के साथ अय्याशी कर रहा था। मुझे उनके आफिस के भोलादास ने बताया तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। पता करने आयी तो बात सही निकली। मेरी शिवचरण से बहुत लङाई हुई। फिर एक दिन भोलादास जी का फोन आया कि आज सुहानी घर जा रही है। इस समय शिवचरण से बात करके उसे समझायेंगे। मैं भोलादास की बातों में आ गयी। होटल मधुवन में मेरे रुकने की व्यवस्था भी उन्होंने ही की। रात के समय मैं शिवचरण को समझाने चली। भोलादास भी मिल गये। पर घर पहुंचते ही भोलादास ने शिवचरण को ताबड़तोड़ चाकू से मार दिया। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। भोलादास से धमकी दी कि अगर मेने किसी को बताया तो वह ही फसेगी। होटल मधुवन में मेरी उपस्थित और मेरी मोवाइल लोकेशन भी मुझे दोषी दर्शायेगी। मेरे पास चुप रहने के अलाबा कोई चारा नहीं था। " शिवचरण की प्रेमिका आनंदी खुद भोलादास की साजिश का शिकार बनी थी।
" हाॅ भोलादास जी ।अब सच बता भी दो। कितनी मेहनत कराओंगे ।अब सब सच बता भी दो। बर्ना अभी आपके इलाज के कई तरीके मुझे मालूम है। "इंस्पेक्टर संतोष ने बोला।
"नहीं सर। सब सच सच बताता हूं। सुहानी के भाव ज्यादा बढ गये थे। जे ई के साथ रहकर खुद को भी जे ई समझने लगी थी। एक बार उसपर लाइन मारी तो उसने बबात कर दिया। शिव चरण ने भी उसी का साथ दिया। मेरी बङी बेइज्जती हुई। अपनी बेइज्जती का बदला लेना था। तभी मुझे पता चला कि शिव चरण की मंतेतर भी है। मेने आनंदी का शुभचिंतक बनने का नाटक किया। आनंदी और शिवचरण में खूब लङाई हुई। मेने आनंदी को समझाया कि शिवचरण को तब समझाना चाहिये जब सुहानी घर चली जाये। बस फिर मेने अपनी आनंदी को अपनी योजना का शिकार बना दिया। सुहानी की चुन्नी मेने शिवचरण के पास छोड़ दी। मुझे पता था कि शक तो सुहानी पर ही जायेगा। पुलिस अपने तरीके से उससे मर्डर कबूलबा ही लेगी। और किसी तरह सुहानी बच निकली तो दूसरा संदेह आनंदी पर होता। न मेरा मोटिव, न मेरी लोकेशन, आनंदी कितना भी बोलती मेरी ही बातें सही मानी जातीं। और अभी भले ही लोकअप में मुझसे कबूलबा लिया पर तुम्हारे पास मेरे खिलाफ कोई सबूत ही नहीं है। खुद तो छूट जाउंगा और फिर तुम्हें सुहानी से रिश्वत लेने का गुनहगार बनाऊंगा। आखिर अदालत भी देखेगी कि लाश के पास चुन्नी किसकी थी। हा हा हा। "
" अभी हस लो भोलादास जी। एक तो शिवचरण का कत्ल रात दस से ग्यारह के बीच हुआ था। और सुहानी तो शाम छह बजे ही शहर से बाहर थी। अब तेरे खिलाफ सबूत। कितनी ही रिकोर्डिंग मेरे पास हैं जिसमें तू खुद अपने गुनाह को बता रहा है। चल सुन ले। "
भोलादास उस रिकोर्डिंग को सुनकर चौक गया। वह रजनी को पटाना चाहता था पर रजनी खुद उससे प्रभावित थी। एक बार भोलादास को शराब पिलाते समय न जाने क्या पूछ रही थी। नशे में जो भी बोला होगा, सच ही बोला होगा। अरे राम। यह तो पुलिस की चाल थी।
" क्या सोच रहे हो भोलादास। वह हमारे खुफिया विभाग की जाबाज जासूस है। और इतने लोगों में उसने तुम्हें ही प्यार के लिये क्यों चुना। कैंटीन का रुस्तम भी हमारा ही जासूस है। जब हमारी सारी तरकीब फेल हो जाती हैं तो जासूस ही सही खबर मय प्रमाण देते हैं। कई बार तो खुफिया मिशन में उनका जीवन भी संकट में पङ जाता है। अगर वे दोनों हमारी मदद नहीं करते तो शायद हम आप तक पहुंच ही नहीं पाते। और पहुंच भी जाते तो सबूत कहाॅ से लाते। "सब इंस्पेक्टर रीता असली कातिल को पकङकर बहुत खुश थीं।
अदालत ने भोलादास को शिवचरण की हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सुहानी को बरी कर दिया। आनंदी का बस इतना दोष था कि उसने डर की बजह से कानून की मदद नहीं की। तो दो महीने जेल काटकर आनंदी भी आजाद हो गयी।
दिवा शंकर सारस्वत