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आजकल के दोहे

18 फरवरी 2015

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पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज! कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!! भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास! बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!! मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश! बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!! बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान! पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!! पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग! मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!! फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर! पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर! पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप! भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!!.
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आजकल के दोहे

18 फरवरी 2015
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पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज! कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!! भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास! बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!! मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश! बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!

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“मेरा देश”

19 फरवरी 2015
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उठो जागो अब दम्भ भरो, समय लौट नहीं आयेगा।। इस बार चूक हुई तुमसे तो देश मेरा मिट जायेगा।। फिरंगी आये लूटने जब तब, लूट खूब मचाई थी,, फिर उबला खून वीरों का, उनको धुल चटाई थी, भगत, सुभाष, आज़ाद, बिस्मिल ने, आजादी हमें दिलायी थी, वतन के खातिर इन वीरों ने, जान अपनी गवांई थी. भूल गए शहादतों क

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जब भी बोलो मीठा बोलो मधुर बोलों

5 मई 2015
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शब्दों के दांत नहीं होते है लेकिन शब्द जब काटते है तो दर्द बहुत होता है और कभी कभी घाव इतने गहरे हो जाते है की जीवन समाप्त हो जाता है परन्तु घाव नहीं भरते............. इसलिए जीवन में जब भी बोलो मीठा बोलो मधुर बोलों 'शब्द' 'शब्द' सब कोई कहे, 'शब्द' के हाथ न पांव; एक 'शब्द' 'औषधि" करे, और एक 'शब्द'

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छोटा बनके रहो

5 मई 2015
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जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो, एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना। और.... जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो, किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना। जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो, एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना। और…. जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो, अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना। जीभ जन्म से

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कोशिश कर

5 मई 2015
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कोशिश कर, हल निकलेगा। आज नही तो, कल निकलेगा। अर्जुन के तीर सा सध, मरूस्थल से भी जल निकलेगा।। मेहनत कर, पौधो को पानी दे, बंजर जमीन से भी फल निकलेगा। ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे, फौलाद का भी बल निकलेगा। जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को, गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा। कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की

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