राजनीति के गढ्ढे ( कहानी अंतिम क़िश्त)
अब तक - पार्षद के चुनाव मे विमल और शेर सिंह प्रत्याशी थे । मतगणना के समय कुछ देर बाद मतदान केद्र की बिजली गल हो गै तो वहां अफरा तफरी मच गई)
जैसे ही मतदान केन्द्र में हो रही हुल्लड़ा बाज़ी की खबर पोलिस मुख्यालय पहुंची तो वहां से पोलिस वालों का दस्ता मतदान केन्द्र की ओर रवाना कर दिया गया । पोलिस वाले दस मिन्टों में वहां पहुंच गए और इसी बीच वहां की बिजली भी बहाल हो गई । मतदान केन्द्र में गड़बड़ी होने के पूर्व वहां की मतगणना कह रही थी कि शेर सिंग 10 मतों से आगे है अत: इसी बिन्दू को परिणाम के रुप में घोषित कर दिया गया। इस तरह शेर सिंग विजयी घोषित कर दिया गया ।
उधर सरकार के लोग परिस्थितियों को समझ अपनी चालें चलना प्रारंभ कर दिया । वे अपनी प्रत्याशी विमल की हार को स्वीकार तो कर लिया पर साथ ही शेर सिंग को यह खबर पहुंचाई गई कि तुम अगर हमारी पार्टी को ज्वाइन कर लेते हो तब तुम्हारी जीत का किसी भी स्तर पर विरोध नहीं किया जाएगा, वरना तुम जानते हो कि सरकार क्या क्या कर सकती है? शेरसिंग ने इस खबर को प्राप्त करते ही प्रदेश के डिप्टी मुख़्यमंत्री को फोन करके पार्टी ज्वाइन करने की अपनी सहमति ज़ाहिर कर दिया । अगले दिन से शेर सिंग के साथ अन्य पार्षदों को शपथ दिलाने की तैयारी होने लगी । शपथ के कार्यक्रम में उपमुख़्यमंत्री भी पधारे थे । उन्होंने अपने उदबोधन में कहा कि राजनीति में शेर सिंग जैसे व्यक्तिओं को ज्यादा से ज्यादा संख्या में भाग लेना चाहिए। ऐसे लोग ही जनता की सेवा अच्छे से कर सकते हैं । इस तरह शेरसिंह बाज़ार वार्ड का पार्षद बन गया और अगले 2 सालों में सफ़लता की सीढी चढते हुए दुर्ग का विधायक बन गया ।
विधायक बनने के कुछ महीनों बाद वह अपना जलवा दिखाना प्रारंभ करते हुए सारे नए विधायकों को अकेले व एकान्त में रौब दिखाते हुए कहने लगा कि मैं अगला मुख़्य मंत्री बनने जा रहा हूं । आप सबका सहयोग मिलना ही चाहिए। आप ने अगर मेरा विरोध किया तो फिर कुछ ठीक नहीं होगा ।
कुछ महीनों बाद ही राज्य के मुख्यमंत्री राम सिंह का निधन हो गया । उनके निधन के कारण का खुलासा नहीं हो पाया कि उनका निधन स्वाभाविक था या कुछ और । इसके बाद पार्टी के विधायकों ने बहुमत के आधार से शेर सिंह को अपना नेता चुन लिया और उसे विधायकों ने मुख्यमंत्री बना दिया।
समय बीतते गया, पिछले 10 सालों से शेरसिंग राज्य का मुख़्य मंत्री है । उसके शासन में राज्य का भरपूर विकास हुआ है और यह राज्य राष्ट्रीय स्तर पर विकास के नाम पर तीसरे नंबर पर आ गया है । राज्य का विकास तो बहुत हुआ है पर अब इस राज्य में फ़ेयर चुनाव नहीं होता । शेरसिंह के लोग ही हर पद को अपने हिसाब से तय करते हैं और अपने अधिकान्श विरोधियों को डरा धमकाकर चुनाव की प्रक्रिया से या तो हटा देते हैं या फिर डमी के रुप में ही लडने की मंज़ूरी देते हैं ।
भले यहां विकास बहुत हुआ है पर सरकार के विरुद्ध बोलने की आज़ादी किसी को नहीं है । समय गुज़रता गया। लोगों की आर्थिक उन्नति तो हो गई है, पर जनता के अंदर एक छटपटाहट व्याप्त है कि वे जब सरकार के ग़लत कामों को उजागर करने का प्रयास करते हैं तो प्रशासन हम पर ज़ुल्म ढाता है । यह बात धीरे धीरे लोगों की दिलों के अंदर पैठ बनाते जा रही थी ।
कुछ महीनों बाद फिर यहां विधान सभा का चुनाव होना है । दुर्ग का ही एक बाशिन्दा “ बजरंग पहलवान “ ने घोषणा कर दिया है कि वह इस बार शेरसिंह के विरुद्ध चुनाव लड़ेगा । साथ ही उसने एक नई पार्टी बनाकर प्रदेश की सारी सीटो पर अपने प्रत्याशी खड़े करने का भी फ़ैसला कर लिया है ।
शेरसिंग यह जानकर कुछ परेशान तो हुआ पर उसे अपनी शतरंजी चाल पर पूरा भरोसा है । उसने प्रशासन की मदद से बजरंग पहलवान को डराने का षड़यंत्र भी रचा और बजरंग पहलवान के घर पर हमला करवा दिया । इस हमले में न जाने किधर से गोलियां चलीं । जिसके कारण बजरंग पहलवान के गुट के तीन लोग मारे गए पर बजरंग पहलवान बच गया। शहर में जैसे ही यह खबर फ़ैली कि बजरंग पहलवान व उनके आदमियों पर शेरसिंग ने हमला करवा कर तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया है तो जनता के सब्र का जाम टूट गया और वे हज़ारों की संख्या में शेरसिंग के सरकारी आवास की ओर बढने लगे । जनता को शेरसिंग के आवास पर आते देख पहले तो शेरसिंग के सरकारी गार्डस छत की मुंडेर पर चढ कर बंदूक तानकर खड़े हो गए।लेकिन जब उन्हें भीड़ का सैलाब नज़र आया तो इतनी भीड़ पर गोलियां चलाने के बदले हथियार डालकर चुपचाप नीचे आ गए। इस बीच शेरसिंग छत पर पहुंचकर हाथों में पिस्तौल पकड़कर भीड़ को ललकारने लगा । शेरसिंग के धमकाने के जवाब में भीड़ ने पत्थर चलाना प्रारंभ कर दिया । एक बड़ा सा पत्थर शेरसिंह के ललाट पर लगा तो वह संभल नहीं सका और छत से नीचे गिर गया। मिन्टों में ही शेरसिंग की ईहलीला समाप्त हो गई ।
शेरसिंग की मौत के बाद इस राज्य में ठीक ठाक तरीके से चुनाव होने लगे । राज्य में जनतांत्रिक सोच वाले शख्स ही लोगों के द्वारा चुनाव में जीतकर आने लगे । लेकिन कुछ समय बाद लोगों को महसूस हुआ कि लोगों में प्रशासन के ज़ुल्मों का डर तो नहीं रहा पर राज्य में विकास की गति धीमी पड़ गई है । कुछ लोग विकास की गति की धीमी पड़ने के कारण की समीक्षा करने लगे, पर वे किसी नतीज़े पर नहीं पहुंच पा रहे हैं कि आखिर दमन का राज़ समाप्त होने के बाद व जनतांत्रिक तरीके से राजनेताओं के चुनकर आने के बाद भी विकास की गति धीमी क्यूं पड़ रही है ? हो सकता है समय के साथ विकास की गति की धीमी पड़ने के कारणों का पता चल जाएगा और उन कारणों के निवारण का रस्ता भी पता चल जाएगा,पर यह सब कब होगा भविष्य के गर्भ में है।
(समाप्त )