क्या गजब करती हो प्रतिलिपि जी ! सबकी पोल खुलवा रही हो यहां पर । लोग कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते, मगर यहां तो हर कोई अपने दिल में न जाने कितने "ताजमहल" बसाये घूम रहा है । जब पहली मुहब्बत का ही पता नहीं तो आखिरी का कैसे पता चलेगा ? ये जिंदगी आज ही खत्म होने वाली तो है नहीं । जब तक सांस तब तक आस । और इस आस पर ही तो ये धरती टिकी है । हां आसमान बेचारा उल्टा लटका पड़ा है । क्या पता कहीं वह अपनी पहली और आखिरी मुहब्बत की सजा पा रहा हो ? आखिर धरती भी तो पत्थर दिल है, ऐसे ही थोड़ी ना पिघल जायेगी ? शायद वह मुहब्बत का इम्तिहान ले रही है । बेचारा आसमान कबसे इम्तिहान दे रहा है मगर यह धरती पसीज ही नहीं रही है । बेरहम , पत्थर दिल कहीं की । इसीलिए विद्वान लोग कभी एक से ही दिल नहीं लगाते हैं , विकल्प हमेशा रखते हैं वे । यदि एक छोड़कर चली जाये तो फिर गम में मजनूं बनकर रेगिस्तान में तो भटकना नहीं पड़े कम से कम । किसी दूसरी लैला की बाहों में जाकर समाया जा सके, यह इंतजाम पहले से ही करके रखते हैं ऐसे लोग । इसलिए आखिरी मुहब्बत की खिड़की हमेशा खुली रखते हैं लोग ।
हम यह सोच ही रहे थे कि सामने से रसिकलाल जी आते हुए दिख गये । यथा नाम तथा गुण । पूरे रसिया हैं । उनके किस्से पूरे मौहल्ले में चर्चित रहते हैं पर मजाल है कि कभी अपने मुखारविंद से वे इनका जिक्र कर दें । आखिर समाज में इज्जत नाम की कोई चीज है कि नहीं ? यद्यपि उनके दो चार खास वीडियो मार्केट में भी आ गये हैं लेकिन उन्हें "डॉक्टर्ड" कहकर खारिज कर चुके हैं वे । दिल हथेली पर लेकर चलते हैं रसिकलाल जी । जिस तरह दुनिया में दिलफेंक आशिकों की कमी नहीं है उसी तरह "छमियाओं" की भी कोई कमी नहीं है । एक से पेट भरता ही नहीं है ऐसे लोगों का । जब उनसे "आखिरी मुहब्बत" के बारे में पूछा तो कहने लगे "अभी आखिरी कहां ? अभी तो दिल लगाने का सिलसिला शुरू ही हुआ है" । असल में मुहब्बत का नाम इन रसिकलालों ने ही फैलाया है दुनिया में वरना लोग अपनी बीवी में ही डूबकर रह जाते ।
इतने में धनीराम जी आ गये । कहने लगे "भई, अपनी तो पहली और आखिरी मुहब्बत "पैसा" है । अगर पैसा पास है तो अनेक लड़कियां चारों ओर घूमती मिल जायेंगी । क्या कभी किसी "कंगले" के आगे पीछे किसी "मेनका" को चक्कर लगाते देखा है ? दरअसल लोग पैसों से इश्क करते हैं और किसी से नहीं" ।
बात कुछ हद तक सही थी उनकी । मैं कुछ कहता इससे पहले ही छमिया भाभी आ गईं । हमेशा की तरह वे "टिप टॉप" होकर आईं थी । मेकअप के बिना तो शायद वे बाथरूम भी नहीं जाती हैं । इस चर्चा में शामिल होते हुए वे बोलीं "आदमी केवल खुद से मुहब्बत करता है और किसी से नहीं, विशेषकर महिलाएं । इतना सजना संवरना किसके लिये ? पति या प्रेमी के लिए ? बिल्कुल नहीं । वे खुद के लिए सजती हैं, संवरती हैं और आईने में देख देखकर खुद पर ही बलिहारी होती हैं । महिला चाहे कितनी ही कुरूप क्यों न हो , मेकअप करने के बाद एक बार आईने में देखकर खुद पर जरूर मोहित होती है वो । यही सच्ची मुहब्बत है । और आदमी क्या कम इश्क करता है अपने शरीर से ? ये डोले शोले किसके लिए बनाता है ? शर्ट उतारकर अपनी बॉडी क्यों दिखाता है ? दरअसल वह अपने शरीर से ही पहली और आखिरी मुहब्बत करता है" ।
इतने में भुक्खड़ सिंह जी आ गये । उनके हाथ में "दोनों" की भरमार थी । किसी में कचोड़ी किसी में समोसा , किसी में ब्रेड पकौड़ा तो किसी में मिर्च बड़ा, कोफ्ता, सैंडविच । जलेबी, इमरतियां तो वे किलो के हिसाब से खाते हैं । कहने लगे "भई, अपनी तो पहली और आखिरी मुहब्बत 'भोजन' है । दुनिया जाये भाड़ में खाना खाओ आड़ में । खाओ पीओ ऐश करो , यही फंडा है अपना" ।
पास से "भ्रष्ट सिंह" जी गुजर रहे थे । चर्चा सुनकर ठिठक गये और कहने लगे "अपनी तो पहली और आखिरी मुहब्बत 'रिश्वत' है । बिना रिश्वत खाये चैन नहीं आता है । सब कुछ खाने को मिल जाये तो भी रिश्वत खाना जरूरी है । बिना रिश्वत के जिंदगी नीरस सी लगती है । प्रेमिका को भी रिश्वत में पहले कुछ देना पड़ता है तब जाकर वह 'कुछ' देती है । यह 'कुछ' भी 'रिश्वत' की मात्रा पर निर्भर करता है । जितनी बड़ी रिश्वत उतनी ही प्रेम की मात्रा । तो भैया, मान लो कि पहली और आखिरी मुहब्बत 'रिश्वत' ही है" ।
और भी बहुत से लोग जैसे धोखे लाल जी, खैराती लाल जी , नशेड़ी राम जी, पियक्कड़ सिंह जी, कुर्सी मल जी आये और बताने लगे कि आखिरी मुहब्बत क्या है । अब आप समझ ही गये होंगे कि किसने किस किस के गीत गाये होंगे । बवाल मच गया था । आखिर में हमें हस्तक्षेप करना ही पड़ा । हमने कहा
"हम लोग इस नश्वर शरीर को ही सब कुछ समझ बैठे जबकि यह शरीर अपना नहीं है । हम तो आत्मा हैं । वह आत्मा जो भगवान का अंश है । यह आत्मा अपने प्रभु से ही प्यार करती है और किसी से नहीं । भगवान के स्वरूप में मिल जाना ही इसका एकमात्र उद्देश्य है । अत : पहली और आखिरी मुहब्बत उस प्रभु से करो । वही हमें भवसागर से पार करने वाले हैं और कोई नहीं । पैसा,काया,पत्नी, पुत्र ये सब तो नश्वर हैं । अनश्वर केवल प्रभु हैं इसलिए सच्ची मुहब्बत के हकदार भी वही हैं । जिसने प्रभु से सच्ची मुहब्बत कर ली समझो उसने अपनी मुक्ति की तैयारी कर ली । किसी को कोई शक" ?
पिन ड्रॉप साइलेंस हो गया वहां पर ।
श्री हरि
2.11.22