पार्क के बीचोंबीच खड़ा आम का पेड़ मुस्कुरा रहा था । शायद वह समझ रहा था कि उसने यहां उग कर पार्क पर बहुत बड़ा अहसान कर दिया है । वैसे उसका ऐसा सोचना गलत भी नहीं है । आम फलों का राजा है और उसका राज खानदानी है । खानदानी लोगों का स्वभाव है कि वे यह सोचते हैं कि वे यहां पैदा ही राज करने के लिए हुए हैं । योग्यता का प्रश्न तो कोई पूछ ही नहीं सकता है । किसकी मजाल है जो "खानदानी" लोगों से कुछ भी पूछ सके ? तो आम का पेड़ पार्क में अपना दंभ दिखा रहा था ।
पर विचारणीय बात तो यह थी कि आम का पेड़ किसने लगाया ? यह तो पक्का है कि सरकार ने तो नहीं लगवाया होगा । पार्कों में आम का पेड़ कब लगाती है सरकार ? सरकार तो नीम का पेड़ या अन्य ऐसे ही पेड़ लगवाती है, आम के पेड़ नहीं । सरकारें आम खाने में विश्वास रखती हैं आम का पेड़ लगाने में नहीं । सरकारों का मानना है कि यदि वह आम का पेड़ लगवायेगी तो फल पता नहीं वह खा पायेगी या नहीं ? पांच साल बाद जनता का क्या भरोसा ? किसको गद्दी से उतार दे और किसे बैठा दे । इसलिए रिस्क नहीं ले सकती है सरकार । फिर जो जैसा होता है वह वैसा ही तो करना चाहता है । सरकारों का स्वभाव भी कुछ कुछ नीम के पेड़ जैसा ही तो होता है । कड़वा, सख्त, खुरदुरा । तो फिर वह आम का पेड़ क्यों लगाये ?
तो फिर यह आम का पेड़ लगाया किसने है ? माली ने ? नहीं , माली अगर आम का पेड़ लगाता तो वह अपने घर पर नहीं लगाता क्या ? कौन है जो आम का पेड़ पार्क में लगायेगा ? पार्क में लगे आम के पेड़ के आमों पर तो सबका अधिकार होता है अकेले माली का नहीं । इसलिए माली ऐसा काम क्यों करेगा जिससे उसकी मेहनत का फल दूसरे लोग भी खायें ? तो फिर किसने लगाया है ये आम का पेड़ ?
इसका अनुसंधान पुलिसिया जांच की तरह बिना बुद्धि, बिना मेहनत बिना दिशा के होने लगा । ऐसे अनुसंधानों का कोई निष्कर्ष निकलता है क्या ? हत्या बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के कितने केस आज तक नहीं खोल पाई है पुलिस ? जेसिका लाल केस को ही ले लो । भरे समारोह में सबके सामने उसकी हत्या हुई थी मगर कातिलों को पकड़ने में नाकाम रही थी पुलिस । क्योंकि कातिल एक रसूख वाला था । वो तो भला हो किसी पत्रकार और न्यायालय का जिसने असली कातिलों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया वरना पुलिस ने तो सबूत मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।
तो इस अनुसंधान का परिणाम यह निकला कि यह पेड़ किसी ने लगाया नहीं था अपितु स्वयं ही उगा था । पार्कों में सब तरह के लोग आते हैं । कोई दारू पीने तो कोई इश्क के पेच लड़ाने । कोई आंख सेकने तो कोई हवाखोरी करने । कोई गपशप करने तो कोई अपने बच्चों को घुमाने । कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पार्क में लगे नीम के पेड़ के नीचे बैठकर आम खाने का आनंद लेते हैं । तो एक दिन ऐसे ही दो आदमी मौज मौज में नीम के पेड़ के नीचे आम खाने का आनंद ले रहे थे । आम खाने से ज्यादा चूसने में आनंद आता है इसीलिए तो अंग्रेजों ने जी भरकर चूसा था भारत को आम समझ कर । पर समस्या गुठलियों की है । इनका क्या करें ? दोनों में शर्त लग गई । कौन कितनी दूर फेंक सकता है गुठली ? कुछ नेता तो "फेंकने" में इतने माहिर हैं कि उनका कोई जवाब नहीं है । दोनों "सज्जनों" में होड़ लग गई कि देखें कौन कितनी दूर तक गुठलियां फेंक सकता है ?
फिर क्या था , पूरे पार्क में गुठलियां बिखर गईं । कुछ गुठलियां समय रूपी हवा पानी का सेवन करके उग आईं और बाकी की भ्रूण हत्या हो गई । अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी भ्रूण हत्या को मंजूरी दे दी है । यह आम का पेड़ बिना किसी मदद के भारतीय लड़की की तरह स्वयं अपने प्रयासों से खड़ा हो पाया है । भारतीय समाज में लड़कियों ने अपनी मेहनत और काबिलियत से यह मुकाम पाया है वरना उन्हें आगे बढने से रोकने की हर संभव कोशिशें सबने कीं । लड़कियों की तरह ही आम के पेड़ की जिजीविषा और तकदीर के चमत्कार के कारण वह इस मुकाम तक आ गया था ।
जिस तरह एक धनी व्यक्ति को देखकर निठल्ले , आलसी, कंगले आदमी जल भुन जाते हैं और उसकी आलोचना करना शुरू कर देते हैं उसी तरह आम के पेड़ को देखकर बबूल टाइप के पेड़ बहुत जलते भुनते हैं । ऐसे लोग खुद तो किसी को कुछ देने की स्थिति में होते नहीं हैं अपितु मेहनती, सफल लोगों की राहों में कांटे बिछाने का काम करते हैं । ऐसे नाकारा लोगों को आम जैसे पेड़ क्यों अच्छे लगने लगेंगे ? इन्हें तो बबूल जैसे पेड़ अच्छे लगते हैं । तीखे, नुकीले । जो कुछ दे तो नहीं सकते अपितु शरीर को छेदने की ताकत रखते हैं । नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों को सकारात्मक प्रवृत्ति के लोग सबसे बड़े दुश्मन लगते हैं । वे उनका समूल नाश कर देना चाहते हैं । तभी तो उद्योगों का विरोध ये नाकारा श्रम यूनियनों के नेता और जनता को बरगलाने वाले सफेदपोश नेता ही करते हैं । नकारात्मक लोगों की पसंद बबूल जैसे पेड़ हैं न कि आम जैसे पेड़ ।
जैसे तैसे करके आम के पेड़ में फल आ गये थे । पेड़ लगाने और उसकी सार संभाल करने को कोई आगे नहीं आता है मगर आम खाने हर कोई आ जाता है । तो पार्क के आम के पेड़ की यह बात बबूल के पेड़ों को हजम नहीं हुई क्योंकि उन्हें आम खाने को नहीं मिल रहे थे । "अगर हमें नहीं मिले तो हम और किसी को भी खाने नहीं देंगे । यदि फिर भी नहीं माने तो आम के पेड़ को ही जड़ से उखाड़ फेंकेंगे" । बबूल के पेड़ों ने संकल्प कर लिया । नकारात्मक आदमी जब कोई संकल्प करता है तो उसे पूरा अवश्य करता है ।
इस तरह बबूल के पेड़ों ने आम के पेड़ को चारों ओर से घेर लिया । ये बड़ी विडंबना है कि नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग "झुण्ड" या समूह में अपनी क्रियाविधि करते हैं,अकेले नहीं । उन्हें पता है कि एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है इसलिए सब लोग सामूहिक प्रयास कर सफलता प्राप्त कर लेते हैं जबकि सकारात्मक प्रवृत्ति के लोग अकेले अकेले रहकर ही कार्य करते हैं । इस प्रकार नकारात्मक प्रवृत्ति के झुण्ड सकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों को एक एक कर निगल जाते हैं, समाप्त कर देते हैं । सकारात्मक प्रवृत्ति के बाकी लोग इस "नृशंस हत्या" को देखते रहते हैं मगर नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों की तरह कभी एकजुट होकर ऐसे लोगों का विरोध नहीं करते हैं । इससे नकारात्मक लोग और अधिक प्रेरित होते हैं और इस तरह वे धीरे धीरे सज्जन आदमी को समाप्त कर देते हैं ।
आम का पेड़ संकट में पड़ गया था । बबूल के पेड़ों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था । जिन लोगों को आम खाने थे उन्हें बबूल के पेड़ों के कारण इसमें बाधा आने लगी । जब आदमी के पेट पर चोट लगती है तो वह बिलबिला उठता है । आम खाने वालों के पेट पर बबूल के पेड़ों ने लात मार दी थी तो वे बिलबिला उठे । माली से गुहार लगाई । माली खुद आम खाना चाहता था पर बबूल के पेड़ों से डरता था । उसे अपने पैरों में कांटे चुभने का डर था, कपड़े फटने का डर था इसलिए माली चुपचाप पड़ा रहा । दुष्ट लोगों से कौन पंगा मोल लेना चाहता है ? इसमें उस दुष्ट आदमी का तो कुछ नहीं बिगड़ता है मगर शरीफ आदमी का तो सत्यानाश ही हो जाता है ।
आम खाने वालों ने एक समूह बनाना शुरू कर दिया तो बबूल के पेड़ों ने भी नकारात्मक लोगों को आम के पेड़ के खिलाफ लामबंद करना शुरू कर दिया । बबूल के पेड़ों के हिमायतियों की एक फौज तैयार हो गई । वह बबूल के पेडों के समर्थन में कुछ इस तरह खड़ी हो गई जैसे कुछ लोग आतंकवादियों के समर्थन में खड़े हो जाते हैं । बबूल के पेड़ों के मानवाधिकारों की दुहाई दी जाने लगी । चूंकि पार्क पर नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों का प्रभुत्व रहता है क्योंकि ये लोग झुंड में रहते हैं और सज्जन लोग अकेले अकेले । तो नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों का ऊपर तक बोलबाला है । ऐसे में बबूल के पेड़ को बेचारा , मासूम, भोलाभाला बताया जाने लगा और आम के पेड़ को भारी भरकम, दुष्ट, बुर्जुआ, दक्षिणपंथी और न जाने क्या क्या कहा जाने लगा ।
बबूल के पेड़ के पक्ष में नये नये तर्क गढे जाने लगे । जैसे कि बबूल की दातुन कितनी बढिया होती है , कितना फायदा करती है । बबूल का पेड़ ऑक्सीजन देता है , लकड़ी भी देता है । ऐसे लोग यह जानबूझकर नहीं बताते कि आम का पेड़ तो ऑक्सीजन और लकड़ियों का भंडार है । पर ये नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग बबूल को महान पेड़ घोषित करने में लगे रहे ।
बात सरकार तक पहुंची । सरकार ने एक सर्वे करवाया कि आम के पेड़ के पक्ष में कितने लोग हैं और बबूल के पेड़ के पक्ष में कितने ? जो सज्जन लोग आम के पेड़ के पक्ष में पहले नजर आ रहे थे वे अब एक एक कर कम होने लगे । कुछ तो नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों से डरकर अपने अपने घरों में दुबक गये । कुछ "मूढ" लोग बबूल के पेड़ के पक्ष में गढे गये कुतर्कों से प्रभावित हो गये और वे अब बबूल के पेड़ों का समर्थन करने लग गये । कुछ "निरपेक्ष" लोग हमेशा "निरपेक्ष" ही रहते हैं । उनका कहना है कि उन्हें तो पार्क में लगे पेड़ के आम खाने नहीं हैं । वे तो सक्षम हैं बाजार से खरीद कर लाने में । ऐसे में अगर पार्क में आम का पेड़ नहीं भी रहेगा तो इससे क्या फर्क पड़ जायेगा ? दरअसल आम के पेड़ को सबसे अधिक खतरा ऐसे "निरपेक्ष" लोगों की सोच से ज्यादा है ।
सर्वे में आम के पेड़ के पक्ष में 5 और बबूल के पेड़ के पक्ष में 25 वोट आये । ऐसे बहुत से लोग थे जो चाहते थे कि आम का पेड़ पार्क में रहना चाहिए मगर ऐसे लोग सर्वे के समय "वोट" देने नहीं आते । कुछ तो वही उदासीनता का भाव कुछ लाइन में लगने का डर । कुछ का काम केवल सरकारों को कोसने का ही है । खुद वोट देने भी नहीं जायेंगे मगर सरकार को पानी पी पीकर कोसेंगे ।
सर्वे के परिणाम के अनुरूप सरकार ने आम का पेड़ कटवा दिया । सरकार तो वोटों से चलती है । क्या सही है और क्या गलत, इससे उसे कोई लेना देना नहीं है । जो बहुमत कहेगा वैसा ही होगा । नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग 100 % वोट डालते हैं मगर सकारात्मक प्रवृत्ति के लोग घरों में AC में बैठे रहते हैं । इसका परिणाम यह हुआ कि पार्क में चारों तरफ बबूल ही बबूल हो गये और सब जगह कांटे बिखर गये । पार्क पर नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों का पूर्ण आधिपत्य हो गया । सज्जन और सकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों का घरों से निकलना दूभर हो गया । एक एक कर वे खत्म होने लगे । अब उन्हें महसूस होने लगा कि यदि सर्वे के समय वे भी वोट देते तो आज आम का पेड़ नहीं कटता अपितु बबूलों से पीछा छूट जाता । पर,अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत । बेचारे सज्जन लोग और बेचारा आम का पेड़ ।
श्री हरि
11.10.22