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क्या पुरुष को पिता बनने का अअधिकार नहीं है

9 अक्टूबर 2022

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अभी कुछ दिन पूर्व माननीय उच्चतम न्यायालय के भावी मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया है जिसमें महिलाओं को पूर्ण अधिकार दे दिया गया है कि वे चाहें तो कभी भी गर्भपात करवा सकती हैं । महिला विवाहित है अथवा नहीं , इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा । इस निर्णय का अधिकार केवल महिला को ही है, इसमें पुरुष की आवश्यता ही नहीं है । 
इसका मतलब यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया है कि मां बनने या नहीं बनने का एकाधिकार केवल महिला को है पुरुष को नहीं । यदि पति चाहे तो भी वह पत्नी को गर्भपात कराने से नहीं रोक सकता है क्योंकि पत्नी गर्भपात कराना चाहती है और यह उसका अधिकारहो गया है अब । अविवाहित स्त्री को यह अधिकार दिया जाये , यहां तक तो ठीक है लेकिन विवाहित स्त्री को गर्भपात कराने के समस्त अधिकार देना मेरी समझ में भारतीय विवाह पद्धति और पारिवारिक संस्कृति पर करारा प्रहार है । 
इसी तरह इसी निर्णय में यह भी कहा गया है कि बच्चा पैदा करना है या नहीं , यह निर्णय भी केवल पत्नी ही ले सकेगी । फिर पति की क्या आवश्यकता है ? उसकी सहमति / असहमति का कोई महत्व नहीं है । पति बाप बनना भी चाहे तो वह बाप तब तक नहीं बन सकता है जब तक कि पत्नी मां बनने की सहमति नहीं दे दे । पत्नी के गर्भवती होने के बाद भी यह गारण्टी नहीं है कि वह बच्चे को जन्म दे ही देगी । क्योंकि उसके पास गर्भपात कराने का विकल्प हमेशा मौजूद है और इसके लिए उसे पति से पूछने की आवश्यकता भी नहीं है । एक दिन पत्नी का अचानक मन किया कि उसे बच्चा नहीं चाहिए और वह गर्भपात कराना चाहती है तो वह तुरंत अस्पताल जाकर बच्चे को निकलवा सकती है । घर आकर वह शान से कहेगी कि मैं बच्चा निकलवा आई हूं ।  पति बेचारा ठगा सा रह जायेगा । क्या यह अति नारीवादी सोच नहीं है ? 

अभी कुछ दिनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय सुना दिया था कि पत्नी की सहमति के बिना सहवास बलात्कार की श्रेणी में आयेगा और पति को सजा भी उसी के अनुसार होगी । बड़ा शानदार निर्णय है यह । पत्नी अगर महीनों तक न चाहे तो पति सहवास नहीं कर सकता है । तो वह फिर अपनी हसरतों की पूर्ति के लिए कहां जायेगा ? किसी कोठे पर ? फिर इससे जो विसंगतियां होंगी उसका जिम्मेदार कौन होगा ? क्या सुप्रीम कोर्ट ? 

जिस तरह से ये निर्णय हुए हैं मेरी समझ में परिवार के हित में बिल्कुल नहीं हैं । जो न्यायपालिका बलात्कार पीड़िताओं को बरसों तक इंसाफ नहीं दिला पाती हो , उस न्यायपालिका को ऐसे निर्णय बहुत सोच समझकर लेने चाहिए । ऐसे निर्णय दूरगामी असर करते हैं । पहले ही परिवार बहुत सारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं अब कुछ और नई समस्याओं से उनका शीघ्र ही पाला पड़ने वाला है   

श्री हरि 
9.10.22 

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रचनाएँ
गुलदस्ता
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राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक और अन्यविषयों से संबंधित हास्य व्यंग्य की रचनाओं का एक संकलन ।
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