गुजरात विजय में अलाउद्दीन खिलजी को बहुत सारा माल हाथ लगा था । गुजरात प्राचीन काल से ही समृद्ध राज्य रहा है । इसीलिए यहां बहुतायत में सोना, चांदी, हीरे, मोती वगैरह के कोठे भरे पड़े थे । अलाउद्दीन की सेना कई दिनों तक गुजरात में लूटमार करती रही । जब मन भर गया तब वह समस्त माल असबाब के साथ वापस लौटी ।
सेना का नेतृत्व अल्मास बेग उर्फ उलुग खान और नुसरत खान कर रहा था । इस सेना में मंगोल से मुसलमान बने लोग भी थे जो "नये मुसलमान" कहलाते थे । इन नये मुसलमानों का नेतृत्व मुहम्मद शाह कर रहा था । उसका छोटा भाई कैहब्रु शाह भी साथ में था । जब सेना लौट रही थी तो जालोर के निकट सेना ने लौटते हुए रात में पड़ाव डाला । तब किसी ने यह अफवाह उड़ा दी कि लूट का माल अकेले अकेले उलुग खान हड़प करना चाहता है । उन दिनों सेना और सरदारों को कोई नियमित वेतन नहीं मिलता था । लूट में हिस्सेदारी ही उनका पारिश्रमिक था । इसलिए हर सरदार अधिक से अधिक माल लूटना चाहता था जिससे उसे लूट में अधिक से अधिक हिस्सा मिल सके । इसलिए सेना लूटपाट बहुत करती थी ।
जब नये मुसलमानों के सरदार मुहम्मद शाह ने यह सुना कि लूट का माल अकेले उलुग खान हड़प करना चाहता है तो वह क्रोध से आगबबूला हो उठा । उसने अपने भाई कैहब्रु शाह के साथ मिलकर सारा माल लूटने और उसे हड़पने की एक योजना बनाई । दोनों भाइयों ने रात में सोते हुए उलुग खान और नुसरत खान के डेरों पर आक्रमण कर दिया । उलुग खान गुसलखाने में छुप गया और नुसरत खान भाग गया । मुहम्मद शाह ने सारा माल लूट लिया और अपने भाई के साथ वहां से भाग गया ।
सुबह होने पर उलुग खान और नुसरत खान ने अपनी सेना तैयार की और मुहम्मद शाह का पीछा किया । मुहम्मद शाह के पास 4000 जवान थे जबकि शाही सेना में 15000 जवान थे । शीघ्र ही मुहम्मद शाह और उसके भाई को रास्ते में ही शाही सेना ने घेर लिया और फिर दोनों में भयंकर युद्ध हुआ । अंत में शाही सेना विजयी रही । मुहम्मद शाह और कैहब्रु शाह दोनों भाग गये ।
इस घटना से अलाउद्दीन खिलजी बहुत अप्रसन्न हुआ । उसने पूरे राज्य में मुनादी करा दी कि मुहम्मद शाह और कैहब्रु शाह दोनों आदमी दिल्ली सल्तनत के अपराधी हैं, भगोड़े हैं और ये दिल्ली के दुश्मन हैं । जो भी कोई इन्हें शरण देगा वह दिल्ली सल्तनत का शत्रु कहलायेगा और उसे दिल्ली के कोप का भाजन बनना होगा । उसे कठिन से कठिन दंड दिया जायेगा ।
मुहम्मद शाह और उसका भाई शरण लेने के लिए विभिन्न राजपूत राजाओं के चक्कर काटते रहे मगर किसी ने उन्हें शरण नहीं दी । अलाउद्दीन खिलजी की ताकत और उसकी बर्बरता से सभी लोग भयभीत थे इसलिए "आ बैल मुझे मार" वाली कहावत कोई भी चरितार्थ करना नहीं चाहता था ।
मुहम्मद शाह अपने भाई के साथ इधर उधर भटकता रहा । अंत में दोनों भाई रणथम्भौर के राजा हम्मीर सिंह के दरबार में पहुंचे और उनसे अपने राज्य में शरण मांगी । उस समय हम्मीर सिंह राजपूताने का सर्वश्रेष्ठ योद्धा था । उसने अपने पराक्रम से अपना राज्य रणथम्भौर से बढाकर कोटा बूंदी से आगे मालवा तक बढा लिया था । उसकी ताकत काफी बढ गई थी । 1292 में उसने जलालुद्दीन खिलजी को भी धूल चटाई थी इसलिए हम्मीर सिंह समझता था कि वह अलाउद्दीन खिलजी को भी परास्त कर देगा । हम्मीर सिंह ने 17 युद्ध लड़े थे जिनमें से उसने 16 में विजय प्राप्त की थी । इसलिए उसका आत्मविश्वास चरम पर था । दूसरा , रणथम्भौर का किला भी अभेद्य था । आज तक उसे कोई जीत नहीं पाया था । तीसरे वह पृथ्वीराज चव्हाण का वंशज था इसलिए शौर्य उसके खून में बहता था । चौथे, राजपूत अपनी वीरता के लिए जाने जाते थे और वे कभी पीठ नहीं दिखाते थे । इन सब कारणों से हम्मीर सिंह ने अलाउद्दीन खिलजी से बैर मोल ले लिया ।
हम्मीर सिंह अपने वचनों के लिए विश्व विख्यात है । वह एक बार जो बात कह देता था उस पर अंत तक कायम रहता था । उसकी "हठ" इतिहास प्रसिद्ध है और इसीलिए वह "हठी हम्मीर" कहलाता था । उसके लिये कवि चंद्र ने एक दोहा लिखा है
सिंह सुवन सत्पुरुष वचन कदली फलै इक बार ।
त्रिया तेल , हम्मीर हठ चढै ना दूरी बार ।।
इसका मतलब है कि जिस प्रकार सिंहनी एक बार में एक ही शावक को जन्म देती है । सत्यवादी लोग या श्रेष्ठ लोग जो बात कहते हैं उस पर वे हमेशा कायम रहते हैं और केले के वृक्ष में भी एक बार ही फल लगता है । इसी प्रकार स्त्री पर एक बार ही तेल चढता है अर्थात स्त्री का विवाह एक बार ही होता है । उसी तरह अगर हम्मीर सिंह ने किसी को कोई वचन दे दिया है तो वह टल नहीं सकता है ।
इसी आन बान और शान की खातिर हम्मीर सिंह ने अलाउद्दीन खिलजी से शत्रुता मोल ले ली थी ।
अलाउद्दीन खिलजी के राज्य की सीमाएं रणथम्भौर की सीमा से लगती थीं । अलाउद्दीन खिलजी साम्राज्यवादी तो था ही इसलिए उसको रणथम्भौर से युद्ध तो करना ही था । मुहम्मद शाह और कैहब्रु शाह के शरण देने के मामले ने युद्ध अवश्यंभावी बना दिया था ।
सन 1301 में अलाउद्दीन खिलजी ने एक विशाल सेना उलुग खान, नुसरत खान और अल्प खान के नेतृत्व में रणथम्भौर की ओर भेजी । मुगल सेना ने छानगढ जो रणथम्भौर रियासत का एक भाग था, पर कब्जा कर लिया । इससे क्रुद्ध होकर हम्मीर सिंह ने अपने दो वीर राजपूत योद्धा भीम सिंह और धर्म सिंह के नेतृत्व में एक सेना छानगढ भेज दी । छानगढ में दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ । राजपूत सेना ने मुगल सेना को परास्त कर दिया और छानगढ पर पुन : अधिकार कर लिया । उन्होंने मुगलों से लूट का सारा माल भी वापस ले लिया था ।
विजय के पश्चात भीम सिंह ने यह तय किया कि धर्म सिंह लूट का माल लेकर वापस रणथम्भौर लौट जायेगा और भीम सिंह वहीं छानगढ में ही रहेगा । दरअसल यह निर्णय बहुत ही खराब निर्णय था । एक तो राजपूत सेना वैसे ही कम थी उस पर वह अब दो भागों में विभाजित हो गई थी । एक भाग धर्म सिंह के नेतृत्व में रणथम्भौर चला गया तो बाकी आधी सेना छानगढ में ही रह गई थी । यह निर्णय विनाशकारी सिद्ध हुआ था ।
उलुग खान, नुसरत खान और अल्प खान को जब यह पता चला कि धर्म सिंह लूट का माल लेकर रणथम्भौर चला गया है तब तीनों ने मिलकर पुन : छानगढ पर आक्रमण कर दिया । भीम सिंह अपनी छोटी सी सेना के साथ अंत तक लड़ा मगर वह मारा गया और उसकी सेना भी मारी गई ।
इस समाचार से हम्मीर सिंह बहुत क्रोधित हुआ । वह धर्म सिंह से इस बात पर नाराज हुआ कि वह भीम सिंह को अकेला छोड़कर वापस क्यों आया ? भीम सिंह एक कुशल योद्धा था जिसका खामियाजा रणथम्भौर भुगत रहा था । हम्मीर सिंह ने धर्म सिंह को इस कृत्य की सजा दी और उसे अंधा करवा दिया । इस प्रकार रणथम्भौर ने दो कुशल योद्धा खो दिये ।
क्रमश :
श्री हरि
16.10.22