shabd-logo

आलोचनाएं साहित्य और समाज का पोषण करती है

9 मार्च 2022

11 बार देखा गया 11
किसी के विचारों को सहज रूप से स्वीकार कर लेना आसान होता है। इससे ना ही मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है और ना ही उनके और आपके सम्बन्धों को कोई आघात या त्रुटि पहुंचती है और आप एक ही दायरे में अपना जीवन जीते है। तो क्या यह सही है?  यदि हम मान ले कि किसी ने भोजन बनाया है और हम उसे ग्रहण कर लिए और उसमें मौजूद कमियों का प्रश्न हमारे भीतर ही रह गया इससे आपने यह तय तो कर लिया कि इससे उसे आघात पहुंचेगा इसलिए हमें चुप रहना ही हमारे लिए उचित है। इस स्थिति में क्या आप उसके साथ न्याय कर रहे है ? नहीं यदि आप उस ब्यक्ति को उसके द्वारा किये हुये कार्य में निहित कमियां बता देते है तो हो सकता है वह उससे अच्छा भोजन बनाये और आपको और रूचिकर लगे।
यही स्थिति हमारे साहित्यिक धरातल पर भी उत्पन्न होती है साहित्य भी हमें हमेशा ग्राह्य और रूचिकर ही पसंद आते है और हम उसे पढ़ते है और उससे जो ज्ञान और रोमांच हमें मिलता है हम उसे स्वीकार करते है। कोई भी साहित्य साहित्यकार के विचारो उसके बुद्धिमत्ता का प्रतीक होता है। 
इस स्थिति में साहित्यकार द्वारा रचित साहित्य पर आलोचना करना मतलब उसके साहित्य में उन दोषों को भी प्रदर्शित करना है जो कदाचित उसमें होने चाहिए अन्यथा कुछ ऐसे तथ्य जो न भी होने चाहिए। आलोचना करने का अर्थ हम कदाचित यह न मान ले सिर्फ किसी की कमियां निकालना बल्कि इसका अर्थ साहित्यिक धरातल पर अर्थात उसके गुणों सहित दोषों का निरूपण। अगर हम सही मायनों में स्वीकार करे तो आलोचना हर क्षैत्र में एक बेहतर समाज का निर्माण करने में सहायक होती है। आलोचना करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना उचित होता है कि आपका उस क्षेत्र के प्रति पूर्ण ज्ञान हो।
आलोचना तो युग पर्यन्त से होती रही है और इससे समाज हमेशा सुदृण ही बना है कारण ही में कार्य का निर्माण होता है यहां कार्य का अर्थ यह मान ले कि यदि कोई स्थिति उत्पन्न हुयी है तो उसके निवारण के बाद यह निश्चित रूप से हमें सुख ही प्रदान करेगा। किसी कार्य या वस्तु की अगर हम कमियां जान ले तो हम और सही तरीके से उस कार्य को करने का प्रयत्न करेंगे और सफल होंगे जिससे हमारा मन मस्तिष्क ह्दय समतुल्य भाव से सुख की अनुभूति प्राप्त करेगा। यहां कबीर दास का एक दोहा इस तथ्य को बहुत ही सार्थकता प्रदान करता है निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय
            बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाव
आलोचना के कई रूप है सामाजिक आलोचना, साहित्यिक आलोचना, धार्मिक आलोचना, ब्यक्तिगत आलोचना इत्यादि यहां तक देखा जाये तो ईश्वर स्वरूप पर भी आलोचनाएं और टिप्पडियां हुयी किन्तु उन आलोचनाओं का जो भी रूप सामने आया वो फलदायी ही हुआ उदाहरण के लिए रामायण महाकाब्य के लिए कुछ आलोचको ने ये कहां कि राम तो ईश्वर थे उन्हे इतना दुःख उठाने के लिए जंगल क्यो भटकना पड़ा किन्तु राम का वन जाना निश्चित था क्योंकि उनके द्वारा अनेको का उद्धार करना था। साहित्यिक लेखन पटल पर आलोचना का प्रादुर्भाव तो मध्यकाल रीति का से ही हो गया था किन्तु आधुनिक युग में भारतेन्दु युग से ही इसका पूर्ण प्रारम्भ माना जा सकता है और समय पर्यन्त आलोचना एक विधा के रूप धारण कर सामाजिक बौद्धिक धरातल पर स्थापित हो गया।
इस तरह देखा जाय तो किसी के प्रति आपके कमियों का ज्ञान ही आपको एक सुन्दर सुदण भविष्य निर्माण करने में सहायक सिद्ध होती है।









                                           





गुण दोष युक्त समीक्षा करना है।

Sunita gond की अन्य किताबें

1

कवयित्री परिचय

7 मार्च 2022
1
1
1

नाम सुनीता गोंडपिता नाम श्री नदू राममाता नाम श्री मती ममता सिंह गोंडजन्मतिथि 21.01.1989पता &nb

2

आलोचनाएं साहित्य और समाज का पोषण करती है

9 मार्च 2022
0
0
0

किसी के विचारों को सहज रूप से स्वीकार कर लेना आसान होता है। इससे ना ही मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है और ना ही उनके और आपके सम्बन्धों को कोई आघात या त्रुटि पहुंचती है और आप एक ही दायरे में अपना जीवन

3

दर्द पर मेरे मुस्कुराना चाहते हो

10 मार्च 2022
0
0
0

हंस के मेरे दर्द पर कहते हो तुमकि मैं मुस्कुराना चाहते होडुबो कर मेरी कस्ती दरिया मेंकहते हो कि मैं किनारा चाहता हूं,खड़ी हूं मैं अब भी वही!जहां से लौट कर तुम दूबारा आना चाहते हो,चलो छोड़ो अब सब

4

लघुकथा, इंसानियत

10 मार्च 2022
0
0
0

उसकी आंखे उस रात भी नहीं सोई , दूध की चांशनी से सराबोर वह रात आज भी सुगना को उसकी याद दिला दिला देती है। गठीला शरीर रस्सी जैसी बांहे धसी हुयी तेज आंखे रोबदार मूंछे जिसे देखकर एक आम आदमी का रूप कम एक क

5

रात अकेली है- लघुकथा

11 मार्च 2022
0
0
0

पश्चिम से आती हुयी बयारो की ठंडी हवाओ का झोका जैसे ही आंगन तक पहुंचा रात में खिलती हुयी चांदनी जैसे खिलखीला उठी थी। बेसुध मयूरी ने एक बार फिर से खिड़की से बाहर झाका रात का चद्रमा अभी खिड़की के सिरहाने

6

पीली धूप , लघुकथा

12 मार्च 2022
0
0
0

खेत में बचे हुए अनाजों को ढकने की जुगत में रानो ने फिर से खाना नही खाया , पोटली में बधी हुयी रोटी और दो प्याज के टुकड़ों को रानो ने कई बार खाने की कोशिश की पर असाढ़ी के घूमते बादलों को देखकर रानो हर ब

7

क्या लिखूं

14 मार्च 2022
0
0
0

क्या लिखूं ?मान लिखूंअपमान लिखूंया शब्दों का तूफान लिखूं,कुछ जाने कुछ अनजानेउन लम्हों का फरमान लिखूंचलो यूं ही पहचान लिखूंजो कुछ पायी हूं इस जग सेउनका भी अब नाम लिखूंरंग फूल खुशबू और बादलथोड़ा थोड़ा न

8

मीट्टी के घर -लघुकथा

15 मार्च 2022
0
0
0

सारा दिन उधड़ बुन में ही बीत गये, सरोजनी ने अपने पानदान को उठाते हुए एक चैन की सांस ली और पास ही पड़ी चारपायी पर बैठकर सुपाड़ीया कुतरने लगी....अरे मां अभी तो रहने ही दो ये सब, मीना ने गमागर्म पकौड़ीयो

9

एक बहाने से

16 मार्च 2022
0
0
0

फूल खिलेंगे तो बहार भी आयेंगेटूटेंगे जब पत्ते तो पतझड़ भी कहलायेंगेबिखरे है जो आशियाने फिर से सिमट जायेंगेतुम्हें याद दिलाने लौट के फिर आयेंगे !साज है हम यूं ही बजते जायेंगेबनके खनक तेरे दिल में धड़क

10

रामचिरैया- लघुकथा

17 मार्च 2022
0
0
0

मटियाये हाथों से ही केसर ने सारा गोबर उठाया और गाय की पीठ थपथपा कर आगे निकल गयी। बगीचे से होते हुए केसर झोपडे़ की तरफ चली ही थी कि ये क्या, रामचिरैया बोली .....भला हो इस चिरैया का जब जब बोली है

11

मन मयूर हो गया

19 मार्च 2022
0
0
0

अषाढ़ के बादल छाये ही थे कि मन मयूर हो गया। शायद मन का कार्य निश्चित नहीं है। मन तो हर क्षण अपने भाव बदलता है। पर मन मयूर हो गया तो निश्चित ही नृत्य भी करना चाहिए पर करेगा नही अपने मन पर काबू भी है। म

12

पिजड़ा - लघुकथा

21 मार्च 2022
4
1
0

बेसर चूल्हे से उठते हुए धुएं से कई बार खास चुकी थी। लेकिन लकड़ीयां गीली होने की वजह से आग बार बार बुझ जाती। बेसर की सास आकर कई बार खाने के बारे में पूछ चुकी थी। अंत में देर होते देख बेसर की सास रसोई म

13

अधूरापन- लघुकथा

26 मार्च 2022
0
0
0

संज्ञा अपनी जीवन के उस मोड़ पर निकल चुकी थी जहां से जाकर शायद वह कभी लौट ही न पाये। यही तो वह चाहती थी। फिर क्यों इतनी सहमी और निराश है। उसे तो जीवन के वे सारे सुख मिल गये थे जिसकी कल्पना उसने की थी।

14

धूप छांव- लघुकथा

27 मार्च 2022
0
0
0

विद्यानन्द अपनी सुबह की चाय लेकर जैसे ही कुर्सी पर बैठे थे कि । उन्हें अचानक से याद आया कि उनका छोटा बेटा नीतिन अपनी पढ़ाई पूरी करके दिल्ली से आज ही लौटने वाला है। विद्यानन्द ने जल्दी से अपनी सुबह की

15

कच्ची दिवारे- लघुकथा

28 मार्च 2022
0
0
0

रामदीन का परिवार जितना भरा पूरा सुंदर था। उतना ही पूरे गाँव में नाम वाला भी था। रामदीन और उनकी पत्नी सुनन्दा अपने भरे पूरे परिवार में इस तरह सलग्न थे कि उन्हे कभी किसी दुःख का आभास तक नहीं होता था। रा

16

सांझ की परछाई- लघुकथा

29 मार्च 2022
1
0
0

सब कुछ तो अच्छा चल रहा था। मीता ने घर के काम खत्म करके राजन के खाने की टीफिन तैयार की । और खुद राजन के आफिस की ओर चल दी। आँफिस पहुँचने पर मीता ने राजन को आँफिस में नही पाया। आँफिस के प्यून से पूछने पर

17

तुम्हारा अक्श

30 मार्च 2022
0
0
0

तुम्हारे अक्श में मैने खुद को जाना हैतुम्हारी बनकर ही ़खुदको पहचाना हैमैं निःशब्द थी हर बार खुद के लिएतुम्हे पाकर ही मैने खुद को अपना माना है।लिपटी रहती थी हर शाम मेरी तन्हायी मेंलौटी थी हर बार ग

---

किताब पढ़िए