हंस के मेरे दर्द पर कहते हो तुम
कि मैं मुस्कुराना चाहते हो
डुबो कर मेरी कस्ती दरिया में
कहते हो कि मैं किनारा चाहता हूं,
खड़ी हूं मैं अब भी वही!
जहां से लौट कर तुम दूबारा
आना चाहते हो,
चलो छोड़ो अब सब बेवजह की बाते
बताओ अब क्या बहाना चाहते हो
नया कुछ सोचे हो तकल्लुफ
या वही पुराना चाहते हो!
फिर से मत कह देना कि
तुम्हारी आंखो में डूब जाना चाहता हूं
सुबह का भूला था,
शाम को फिर आना चाहता हूं,
छोड़ो अब ये वो गिले शिकवे
मैं रूठी ही कब थी तुमसे कि
तुम मनाना चाहते हो,
मान गयी मैं फिर से तुम्हारी सारी बातें
फिर से मत कह देना तुम्हारी जुल्फो के
उलझन में उलझ जाना चाहता हूं।
हो गयी हूं अब मैं भी
सयानी बहुत
छोड़ कर तुम्हारी बस्ती को अब
मैं भी दूर कही बस जाना चाहती हूं!