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मन मयूर हो गया

19 मार्च 2022

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अषाढ़ के बादल छाये ही थे कि मन मयूर हो गया। शायद मन का कार्य निश्चित नहीं है। मन तो हर क्षण अपने भाव बदलता है। पर मन मयूर हो गया तो निश्चित ही नृत्य भी करना चाहिए पर करेगा नही अपने मन पर काबू भी है। मानव ही क्यों उलाहने लेता है। मानव स्वभाव ही है ऐसा, मानव शब्द चुराता है। तरह तरह के शब्द। चलो अच्छा ही है जो मन करे वो कर सकता है। पर मयूर तो अपने मन की ही सुनकर स्वयं ही नृत्य करने को आतुर है उसे किसी के उलाहने की जरूरत नही। उसे जो परमेश्वर से आशीष मिला है उसी के अनुरूप करता है। मानव को अपने भाव बदलने की आदत है। यह उसकी चाटुकारीता है जो जिसे वह शायद छोड़ नही सकता। एक समय किसी प्रेमी का मन अपने प्रेमिका से मिलकर मयूर हो गया। प्रेमिका के पूछने पर की तुम्हे या हुआ है प्रेमी कहता है तुमसे मिलकर मेरा मन मयूर हो गया। पर उस समय मौसम भी वैसा नहीं था बसंत भी नही था अषाढ के बादल भी नही छाये थे पर उचटती धूप मे फिर भी प्रेमी का मन मयूर हो गया। प्रेमिका क्या करती प्रेमी को अपने उत्साह बताने का सबसे उचित उलाहना मयूर ही लगा प्रेमिका को आभास हो गया कि उसका प्रेमी सच में अत्यन्त खुश है। वैसे मोर का सौन्दर्य अद्भुत
माना जाता है तभी तो उसके पंखो से सुशोभित श्री कृष्ण को प्रेम का सच्चा प्रतिक माना गया है। इसलिए शायद मोर को राट्रीय पंछी भी घोषित किया गया है।

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