रामदीन का परिवार जितना भरा पूरा सुंदर था। उतना ही पूरे गाँव में नाम वाला भी था। रामदीन और उनकी पत्नी सुनन्दा अपने भरे पूरे परिवार में इस तरह सलग्न थे कि उन्हे कभी किसी दुःख का आभास तक नहीं होता था। रामदीन के पाँच बेटों में सबसे बड़ा बेटा अभय गाँव के ही राजकीय विद्यालय में अध्यापक था। नीरज और आयुस भी एक ही कम्पनी में कार्यरत थे। और दो बेटे तन्मय और मंजीत भी अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी के लिए आवेदन में लगे हुए थे। पाँच बेटो के भरे पुरे परिवार में अभय की शादी हो गयी थी। और उसके दो बेटे भी थे। इसलिए अब रामदीन को पोतो का भी सुख मिल गया था। फिर भी अभी चार बेटो की शादी करनी बाकी थी। रामदीन सरकारी कार्यालय में एक क्लर्क की नौकरी करने के बाद। अपने उम्र के अट्ठारवे बसंत पार करते करते रिटायर्ड भी हो चुके थे। उन्होने अपने जीवन की पूरी कमायी अपने बच्चों के पढ़ाई लिखायी में खर्च कर दी थी। और अब सिर्फ पेंशन का ही सहारा था। फिर भी रामदीन अपने छोटे से पेंशन से घर की छोटी छोटी आवश्यकता पूरी भी करते रहते थे। उनके सभी बेटे अपनी अपनी जगह पर सेटल थे। और अपना खर्च भी उठा सकने के लायक थे। फिर भी रामदीन अपने जिम्मेदारीयों के प्रति पल प्रतिपल चिंतित रहते थे। पर उन्हें यह विश्वास था कि उनकी ये चिंता उनके बेटे आसानी से कम कर देंगे। ये सोचकर रामदीन ने अपने दोनों बेटो का विवाह अपने पेंशन से मिले हुए इकट्ठे पैसो से पूराकर दिये। दो बहुओं को घर में बढ़ जाने से घर की रौनक और दुगनी हो गयी। रामदीन के घर की रौनक देखकर पास पड़ोस के लोग भी तारीफ करने से नहीं रह पाते थे। आयुस और नीरज के बाद अब तन्मय और मंजीत की शादी करनी बाकी थी। रामदीन ने एक दिन पूरे घर मे तन्मय और मंजीत के शादी का जीक्र किया तो परिवार के सभी लोग काफी खुश दिखे। इस खुशी को देखते हुए रामदीन की यह चिंता भी अब खत्म हो गयी। कि शायद उनके कन्धों का भार अब उनके बच्चे भी वहन कर सकते है। फिर रामदीन ने अपने बेटो तन्मय के शादी तय करके खर्च वहन अपने अन्य बेटो के उपर यह कहकर डाली कि ....बेटा मैने जीवन भर जो भी कमाया वह सब अपनी जिम्मेदारी समझ कर तुम सब पर खर्च
कर दिया। अब मेरे पास पेंशन के अलावा दूसरा कोई आय का साधन नही है। तो मै सोचता हूं तन्मय और मंजीत की शादी सभी लोग मिलकर करे। रामदीन के फैसले से उनके सभी बच्चे कुछ विशेष रूचि न दिखाते हुए चुपचाप ही रहे। रामदीन और उनकी पत्नी सुनन्दा उनकी चुप्पी यह सोचकर कि आगे की बात नहीं किये कि। शायद वे इसके लिए गम्भीरता से सोचेंगे।रामदीन की बाते खत्म होते होते ही उनके सभी बेटे वहां से अलग थलग हो गये। अगली ही सुबह रामदीन के बडे़ बेटे अभय ने यह कहकर बात खत्म कर दी कि मुझे अभी बच्चों के अच्छी पढ़ाई के लिए पैसो की आवश्यकता है।और उनके दो बेटे आयुस और नीरज यह कहकर कि हमारी तो अभी नयी नयी ज्वाइनिंग हुयी है। अभी तो हम खुद ठीक से खडे़ नही है पाये है। इतनी बाते सुनकर रामदीन यह तो समझ गये कि शायद उनके ये बच्चे उनका सहयोग न करे। तन्मय और मंजीत ने यह कहकर रोस दिखाया कि पिताजी जब हमारी शादी हमे अपने ही पैसो से करनी है तो हम खुद ही कर लेंगे। इन सब बातों के बाद ही अगली सुबह रामदीन के सभी बेटे अलग थलग होकर जैसे बट से गये। रामदीन अब उस घर में अपने को एकदम से अकेला महसूस किये। रामदीन घर की दिवारो को देखते हुए सोचने लगे कि हमारे इस घर की दिवारे कितनी कच्ची थी। एक ही झटके में सबके सम्बन्धो की नींव भसक गयी।