बेसर चूल्हे से उठते हुए धुएं से कई बार खास चुकी थी। लेकिन लकड़ीयां गीली होने की वजह से आग बार बार बुझ जाती। बेसर की सास आकर कई बार खाने के बारे में पूछ चुकी थी। अंत में देर होते देख बेसर की सास रसोई में आकर बेसर को चार पांच भद्दी भद्दी गालियां दे ड़ालती है। केसर रूआसी होकर कहती है...मां जी क्या करू लकड़ीया ही गीली है जल ही नहीं पाती तो खाना कैसे बनेगा। बेसर की सास रूपमती तुनक कर कहती है..लकड़ीया गीली है कि सूखी इसका खयाल तुझे रखना चाहिए आखिर इस घर का खयाल रखने के लिए ही तो तू आयी है। बेसर ने जैसे तैसे चूल्हा जलाकर खाना बनाया। रात दिन बेसर अपने ससुराल वालो के ताने सुनती रहती थी।
कितने सुंदर सपने सजोकर बेसर इस घर में आयी थी। बचपन में जब भी बेसर को कोई चीज नहीं मिलती तो वह कह उठती..कोई बात नही जब मेरी शादी होगी तब मै यह सब चीजे पाऊंगी मुझे मेरा पति मुझे सब कुछ ला के देगा। कुछ भी कहने मांगने की जरूरत नही होगी। जब बेसर बड़ी हुयी और उसका रिश्ता हुआ तो सगुन में आये हुए चीजों को देखकर उसकी इच्छा जैसे पूरी हो गयी। पर यह सपने बेसर के लिए मात्र छलावा ही थे। ससुराल में कदम रखते ही बेसर से उसके सारे गहने सामान छीन लिये गये। बेसर के सपने उस समय ही चकनाचूर हो गये। पति भी उस पर दिन रात हुक्म चलाता रहता था। बेसर को हर पल अपने मायके की याद आ जाती। पर वह चाहकर भी वापस नहीं लौट पाती थी। बेसर को अब लगने लगा कि कम से कम वह मायके में आजाद तो थी। अपनी खुशी तो बाट सकती थी आजाद तो थी। वह खुल कर जी तो पाती थी। बेसर को अब किसी चीज की इच्छा भी नहीं होती थी। इच्छा थी तो बस आजादी से जीने की। बेसर को दिन रात घर के कामों में ही झोका जाता था। वह अपने मन से कहीं आ जा भी नहीं पाती थी। करती भी क्या बिचारी निःशब्द सी घर में पड़ी रहती थी। अगर किसी के बातों का जवाब देती तो बेसर का पति माधव ही उस पर अत्याचार करता उसे मारता पीटता था। उस घर में उसे सुख के चार दिन भी नसीब नहीं हुआ था। एक दिन बेसर के घर उसका बचपन का दोस्त
कमल अन्जाने में उसके घर पहुंच गया। बेसर को देखकर
उसने अचरज से पूछा तूं तो बेसर है न। बेसर ने मुस्कुराकर ...कहा हां बेसर ही हूं ,कमल ने उसके बेबस से चेहरे को देखकर कहा...बेसर याद है तुम स्कूल में कितनी चंचल लड़की हुआ करती थी और आज तुम्हे देखकर लग रहा है मैं किसी दूसरे बेसर से मिल रहा हूं। बेसर इस पर कहती है...तब मैं दुनियां दारी से अंजान थी पर अब सब कुछ समझ में आ गया है । सबके देखे हुए सपने सच्चे नहीं होते। अब तो सब समय ही बदल सा गया है। कमल ने वह रात बेसर के घर में ही गुजारी। लेकिन एक दिन में ही कमल ने बेसर के इस मुरझाये चेहरे का कारण समझ लिया। दिन भर काम में जूझने के बाद भी बेसर को ससुराल वालो के ताने सुनने पड़ते है। एकान्त पाकर कमल ने अपने मन की बात बेसर से कह ड़ाली...बेसर तुम्हे याद है जब तुम्हें बचपन में कोई चीज नही मिलती थी तो तुम हमेशा कहती थी कि जब मैं अपने ससुराल जाऊंगी तब सारी चीजे मुझे मिलेंगी। पर आज उसी बेसर के मुरझाये चेहरे को देखकर लग रहा है शायद बेसर की इंछाये आज भी अधूरी है। बेसर मायूस सी हो जाती है। कमल बेसर से कहता है ...बेसर तुम यहां अपनी पूरी जिंदगी कैसे गुजारोगी , तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा। बेसर मुस्कुराकर कहती है कौन सा घर कमल अब यही हमारा घर है और यही मेरी जिंदगी है। शादी के बाद हर लड़की का यही घर होता है। इसी पिजडे़ में उसे रहना पड़ता है। किसी को सोने का पिजड़ा मिलता है तो किसी को मामूली लोहे जैसा पिजड़ा ,पर उसे पिजडे़ में पर उसे उसी पिजडे़ मे ही सारा जीवन रहना पड़ता है।