shabd-logo

पिजड़ा - लघुकथा

21 मार्च 2022

24 बार देखा गया 24
बेसर चूल्हे से उठते हुए धुएं से कई बार खास चुकी थी। लेकिन लकड़ीयां गीली होने की वजह से आग बार बार बुझ जाती। बेसर की सास आकर कई बार खाने के बारे में पूछ चुकी थी। अंत में देर होते देख बेसर की सास रसोई में आकर बेसर को चार पांच भद्दी भद्दी गालियां दे ड़ालती है। केसर रूआसी होकर कहती है...मां जी क्या करू लकड़ीया ही गीली है जल ही नहीं पाती तो खाना कैसे बनेगा। बेसर की सास रूपमती तुनक कर कहती है..लकड़ीया गीली है कि सूखी इसका खयाल तुझे रखना चाहिए आखिर इस घर का खयाल रखने के लिए ही तो तू आयी है। बेसर ने जैसे तैसे चूल्हा जलाकर खाना बनाया। रात दिन बेसर अपने ससुराल वालो के ताने सुनती रहती थी।
कितने सुंदर सपने सजोकर बेसर इस घर में आयी थी। बचपन में जब भी बेसर को कोई चीज नहीं मिलती तो वह कह उठती..कोई बात नही जब मेरी शादी होगी तब मै यह सब चीजे पाऊंगी मुझे मेरा पति मुझे सब कुछ ला के देगा। कुछ भी कहने मांगने की जरूरत नही होगी। जब बेसर बड़ी हुयी और उसका रिश्ता हुआ तो सगुन में आये हुए चीजों को देखकर उसकी इच्छा जैसे पूरी हो गयी। पर यह सपने बेसर के लिए मात्र छलावा ही थे। ससुराल में कदम रखते ही बेसर से उसके सारे गहने सामान छीन लिये गये। बेसर के सपने उस समय ही चकनाचूर हो गये। पति भी उस पर दिन रात हुक्म चलाता रहता था। बेसर को हर पल अपने मायके की याद आ जाती। पर वह चाहकर भी वापस नहीं लौट पाती थी। बेसर को अब लगने लगा कि कम से कम वह मायके में आजाद तो थी। अपनी खुशी तो बाट सकती थी आजाद तो थी। वह खुल कर जी तो पाती थी। बेसर को अब किसी चीज की इच्छा भी नहीं होती थी। इच्छा थी तो बस आजादी से जीने की। बेसर को दिन रात घर के कामों में ही झोका जाता था। वह अपने मन से कहीं आ जा भी नहीं पाती थी। करती भी क्या बिचारी निःशब्द सी घर में पड़ी रहती थी। अगर किसी के बातों का जवाब देती तो बेसर का पति माधव ही उस पर अत्याचार करता उसे मारता पीटता था। उस घर में उसे सुख के चार दिन भी नसीब नहीं हुआ था। एक दिन बेसर के घर उसका बचपन का दोस्त 
कमल अन्जाने में उसके घर पहुंच गया। बेसर को देखकर
उसने अचरज से पूछा तूं तो बेसर है न। बेसर ने मुस्कुराकर ...कहा हां बेसर ही हूं ,कमल ने उसके बेबस से चेहरे को देखकर कहा...बेसर याद है तुम स्कूल में कितनी चंचल लड़की हुआ करती थी और आज तुम्हे देखकर लग रहा है मैं किसी दूसरे बेसर से मिल रहा हूं। बेसर इस पर कहती है...तब मैं दुनियां दारी से अंजान थी पर अब सब कुछ समझ में आ गया है । सबके देखे हुए सपने सच्चे नहीं होते। अब तो सब समय ही बदल सा गया है। कमल ने वह रात बेसर के घर में ही गुजारी। लेकिन एक दिन में ही कमल ने बेसर के इस मुरझाये चेहरे का कारण समझ लिया। दिन भर काम में जूझने के बाद भी बेसर को ससुराल वालो के ताने सुनने पड़ते है। एकान्त पाकर कमल ने अपने मन की बात बेसर से कह ड़ाली...बेसर तुम्हे याद है जब तुम्हें बचपन में कोई चीज नही मिलती थी तो तुम हमेशा कहती थी कि जब मैं अपने ससुराल जाऊंगी तब सारी चीजे मुझे मिलेंगी। पर आज उसी बेसर के मुरझाये चेहरे को देखकर लग रहा है शायद बेसर की इंछाये आज भी अधूरी है। बेसर मायूस सी हो जाती है। कमल बेसर से कहता है ...बेसर तुम यहां अपनी पूरी जिंदगी कैसे गुजारोगी , तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा। बेसर मुस्कुराकर कहती है कौन सा घर कमल अब यही हमारा घर है और यही मेरी जिंदगी है। शादी के बाद हर लड़की का यही घर होता है। इसी पिजडे़ में उसे रहना पड़ता है। किसी को सोने का पिजड़ा मिलता है तो किसी को मामूली लोहे जैसा पिजड़ा ,पर उसे पिजडे़ में पर उसे उसी पिजडे़ मे ही सारा जीवन रहना पड़ता है।




Sunita gond की अन्य किताबें

1

कवयित्री परिचय

7 मार्च 2022
1
1
1

नाम सुनीता गोंडपिता नाम श्री नदू राममाता नाम श्री मती ममता सिंह गोंडजन्मतिथि 21.01.1989पता &nb

2

आलोचनाएं साहित्य और समाज का पोषण करती है

9 मार्च 2022
0
0
0

किसी के विचारों को सहज रूप से स्वीकार कर लेना आसान होता है। इससे ना ही मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है और ना ही उनके और आपके सम्बन्धों को कोई आघात या त्रुटि पहुंचती है और आप एक ही दायरे में अपना जीवन

3

दर्द पर मेरे मुस्कुराना चाहते हो

10 मार्च 2022
0
0
0

हंस के मेरे दर्द पर कहते हो तुमकि मैं मुस्कुराना चाहते होडुबो कर मेरी कस्ती दरिया मेंकहते हो कि मैं किनारा चाहता हूं,खड़ी हूं मैं अब भी वही!जहां से लौट कर तुम दूबारा आना चाहते हो,चलो छोड़ो अब सब

4

लघुकथा, इंसानियत

10 मार्च 2022
0
0
0

उसकी आंखे उस रात भी नहीं सोई , दूध की चांशनी से सराबोर वह रात आज भी सुगना को उसकी याद दिला दिला देती है। गठीला शरीर रस्सी जैसी बांहे धसी हुयी तेज आंखे रोबदार मूंछे जिसे देखकर एक आम आदमी का रूप कम एक क

5

रात अकेली है- लघुकथा

11 मार्च 2022
0
0
0

पश्चिम से आती हुयी बयारो की ठंडी हवाओ का झोका जैसे ही आंगन तक पहुंचा रात में खिलती हुयी चांदनी जैसे खिलखीला उठी थी। बेसुध मयूरी ने एक बार फिर से खिड़की से बाहर झाका रात का चद्रमा अभी खिड़की के सिरहाने

6

पीली धूप , लघुकथा

12 मार्च 2022
0
0
0

खेत में बचे हुए अनाजों को ढकने की जुगत में रानो ने फिर से खाना नही खाया , पोटली में बधी हुयी रोटी और दो प्याज के टुकड़ों को रानो ने कई बार खाने की कोशिश की पर असाढ़ी के घूमते बादलों को देखकर रानो हर ब

7

क्या लिखूं

14 मार्च 2022
0
0
0

क्या लिखूं ?मान लिखूंअपमान लिखूंया शब्दों का तूफान लिखूं,कुछ जाने कुछ अनजानेउन लम्हों का फरमान लिखूंचलो यूं ही पहचान लिखूंजो कुछ पायी हूं इस जग सेउनका भी अब नाम लिखूंरंग फूल खुशबू और बादलथोड़ा थोड़ा न

8

मीट्टी के घर -लघुकथा

15 मार्च 2022
0
0
0

सारा दिन उधड़ बुन में ही बीत गये, सरोजनी ने अपने पानदान को उठाते हुए एक चैन की सांस ली और पास ही पड़ी चारपायी पर बैठकर सुपाड़ीया कुतरने लगी....अरे मां अभी तो रहने ही दो ये सब, मीना ने गमागर्म पकौड़ीयो

9

एक बहाने से

16 मार्च 2022
0
0
0

फूल खिलेंगे तो बहार भी आयेंगेटूटेंगे जब पत्ते तो पतझड़ भी कहलायेंगेबिखरे है जो आशियाने फिर से सिमट जायेंगेतुम्हें याद दिलाने लौट के फिर आयेंगे !साज है हम यूं ही बजते जायेंगेबनके खनक तेरे दिल में धड़क

10

रामचिरैया- लघुकथा

17 मार्च 2022
0
0
0

मटियाये हाथों से ही केसर ने सारा गोबर उठाया और गाय की पीठ थपथपा कर आगे निकल गयी। बगीचे से होते हुए केसर झोपडे़ की तरफ चली ही थी कि ये क्या, रामचिरैया बोली .....भला हो इस चिरैया का जब जब बोली है

11

मन मयूर हो गया

19 मार्च 2022
0
0
0

अषाढ़ के बादल छाये ही थे कि मन मयूर हो गया। शायद मन का कार्य निश्चित नहीं है। मन तो हर क्षण अपने भाव बदलता है। पर मन मयूर हो गया तो निश्चित ही नृत्य भी करना चाहिए पर करेगा नही अपने मन पर काबू भी है। म

12

पिजड़ा - लघुकथा

21 मार्च 2022
4
1
0

बेसर चूल्हे से उठते हुए धुएं से कई बार खास चुकी थी। लेकिन लकड़ीयां गीली होने की वजह से आग बार बार बुझ जाती। बेसर की सास आकर कई बार खाने के बारे में पूछ चुकी थी। अंत में देर होते देख बेसर की सास रसोई म

13

अधूरापन- लघुकथा

26 मार्च 2022
0
0
0

संज्ञा अपनी जीवन के उस मोड़ पर निकल चुकी थी जहां से जाकर शायद वह कभी लौट ही न पाये। यही तो वह चाहती थी। फिर क्यों इतनी सहमी और निराश है। उसे तो जीवन के वे सारे सुख मिल गये थे जिसकी कल्पना उसने की थी।

14

धूप छांव- लघुकथा

27 मार्च 2022
0
0
0

विद्यानन्द अपनी सुबह की चाय लेकर जैसे ही कुर्सी पर बैठे थे कि । उन्हें अचानक से याद आया कि उनका छोटा बेटा नीतिन अपनी पढ़ाई पूरी करके दिल्ली से आज ही लौटने वाला है। विद्यानन्द ने जल्दी से अपनी सुबह की

15

कच्ची दिवारे- लघुकथा

28 मार्च 2022
0
0
0

रामदीन का परिवार जितना भरा पूरा सुंदर था। उतना ही पूरे गाँव में नाम वाला भी था। रामदीन और उनकी पत्नी सुनन्दा अपने भरे पूरे परिवार में इस तरह सलग्न थे कि उन्हे कभी किसी दुःख का आभास तक नहीं होता था। रा

16

सांझ की परछाई- लघुकथा

29 मार्च 2022
1
0
0

सब कुछ तो अच्छा चल रहा था। मीता ने घर के काम खत्म करके राजन के खाने की टीफिन तैयार की । और खुद राजन के आफिस की ओर चल दी। आँफिस पहुँचने पर मीता ने राजन को आँफिस में नही पाया। आँफिस के प्यून से पूछने पर

17

तुम्हारा अक्श

30 मार्च 2022
0
0
0

तुम्हारे अक्श में मैने खुद को जाना हैतुम्हारी बनकर ही ़खुदको पहचाना हैमैं निःशब्द थी हर बार खुद के लिएतुम्हे पाकर ही मैने खुद को अपना माना है।लिपटी रहती थी हर शाम मेरी तन्हायी मेंलौटी थी हर बार ग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए