सब कुछ तो अच्छा चल रहा था। मीता ने घर के काम खत्म करके राजन के खाने की टीफिन तैयार की । और खुद राजन के आफिस की ओर चल दी। आँफिस पहुँचने पर मीता ने राजन को आँफिस में नही पाया। आँफिस के प्यून से पूछने पर पता चला कि राजन ने चार दिन की छुट्टी ली है। मीता को राजन के इस बात पर आश्चर्य तो हुआ। और उसका मन भी दुःखी हुआ। मीता नीराश मन से घर वापस लौट गयी। घर आकर मीता का किसी और काम में मन नहीं लगा। वह चुपचाप बैठकर राजन का इंतजार करने लगी। राजन शाम को उसी समय आँफिस से घर आया। और उतनी ही स्फूर्ति से मीता से बात भी किया कि आँफिस में क्या क्या हुआ। मीता चुपचाप राजन की बाते सुनती रही। और मीता ने राजन से कोई सवाल किये बिना ही हर शाम की तरह चाय का प्याला राजन के सामने रख दिया। और चुपचाप राजन के सामने बैठ गयी। राजन अपनी दिन भर की झूठी बाते मीता को सुनाता रहा। और मीता खुद एक अपराधी की तरह राजन की झूठी बाते सुनती रही। बातों बातों में राजन ने मीता से यह भी पूछा कि तुम मायके कब जाओगी। मीता ने जैसे अपने झूठे लब्जों से ही कह दिया....जल्दी ही चली जाऊंगी। और मीता रात के खाने की तैयारी में लग गयी। मीता ने खाने के टेबल पर भी राजन से कुछ नही पूछा। मीता जितनी बार भी राजन की तरफ देखती उसकी झूठी बातों का बोध स्पष्ट रूप से मीता के सामने आ जाता। मीता मन ही मन सोचे जा रही थी कि राजन तुम सच में कितने झूठे हो। और उस झूठ को भी तुम कितने अच्छे तरीके से सच साबित करने में लगे हो। मीता यह सोचकर कि जो भी राजन का सच है एक ना एक दिन तो सामने आयेगा ही। इसलिए मीता ने कुछ नही पूछा। और अगली ही सुबह मीता अपने मायके चली गयी। जाते वक्त मीता ने राजन से कोई बात भी नही की। पर खुद राजन ने मीता को यह कहकर कि तुम जितना दिन चाहो वहाँ रूक सकती हो। मीता राजन की बाते सुनकर मुस्कुराकर चली गयी। कितने दिनों तक मीता और राजन की कोई बात नही हुयी। मीता तो जानबूझकर काँल नही करती थी। पर राजन, राजन को तो जैसे पूरी स्वतंत्रता मिल गयी थी। मीता का स्वभाव भी सरल और शान्त ही था। वह कभी गलती से भी राजन से झगड़ा नहीं करती थी। चाहे कोई भी परिस्थिति रहे वह शान्त ही रहती थी। एक महीने तक राजन का मीता के लिए कोई काँल नहीं आया। फिर अचानक से एक दिन राजन ने मीता को जल्दी घर बुलाया। मीता को विश्वास ही था कि राजन कुछ विशेष ही करना चाहता है। जब मीता घर आयी तो राजन ने मीता के सामने एक डिवोश पेपर रख दिया। मीता ने कहा मै जानती थी राजन तुम क्या करना चाहते थे। राजन ने अपने कड़वे से शब्दों में मीता से कह दिया मीता मैं तुमसे डिवोश लेना चाहता हूं। मुझे मेरे आँफिस की एक लड़की से प्यार हो गया है। और मैं उससे जल्दी ही शादी करना चाहता हूँ। मीता ने कहा राजन तुम जानते हो कि तुम उससे प्यार करते हो। राजन ने कहा ,....हाँ मैं और मेथाली सचमुच में एक दूसरे से प्यार करते है। मीता ने कहा राजन मुझे तुमसे दूर जाने के लिए डिवोश पेपर की जरूरत नही है। तुम्हारी खुशी के लिए मैं खुद ही यहाँ से चली जाऊंगी। बताओ कब जाना है यहाँ से। राजन.....हम अगले ही सप्ताह शादी करने जा रहे है। मीता दूसरे दिन ही घर से चली गयी। मीता ने अपनी जग। मायके में बना ली। और एक छोटी सी नौकरी में अपना जीवन गुजारने लगी। कुछ समय बीतने के बाद अचानक से राजन मीता के घर आया। मीता ने उतनी ही खुशी से राजन का स्वागत किया। मीता ने राजन से उहके जीवन के नयी शुरूआत के बारे में पूछा तो राजन फूटकर रोने लगा।मीता राजन के पास जाकर उसकी बाँहे पकड़कर पूछा....क्या हुआ राजन सब ठीक तो है। राजन.....मीता मैने जीवन में बहुत बड़ी गलती की है। शायद तुम्हारे सच्चे प्यार को मै नहीं समझ सका।मेथाली मुझसे झूठा प्यार करती थी। मेरे अलावा भी उसके कई दोस्त थे । जिससे वह छुपकर मिलती थी। अब मेरी आँखे खुल गयी है। शायद तुम्हारे अपराध का मैं भोगी हूँ। मीता मैं तुम्हे लेने आया हूँ। तुम वापस लौट चलो घर।जो तुम्हारा इंतजार कर रहा है। मीता ने कहा मुझे पता था राजन तुम वापस जरूर लोटोगे। तुम्हारे बिना मेरा जीवन उस सांझ की परछायी की तरह था। जो रात में साथ न होकर किरण फूटते ही फिर से मेरे साथ आ गया।