सारा दिन उधड़ बुन में ही बीत गये, सरोजनी ने अपने पानदान को उठाते हुए एक चैन की सांस ली और पास ही पड़ी चारपायी पर बैठकर सुपाड़ीया कुतरने लगी....अरे मां अभी तो रहने ही दो ये सब, मीना ने गमागर्म पकौड़ीयों की प्लेट सरोजनी के सामने रख दी..अरे मीना पहले बाहर दलान में बैठे लोगो को तो भिजवा देती...सबको दे दिया है अम्मा अब आप भी खा लो मीना ने रसोई से ही तेज आवाज लगा दी । , बाहर से आती हुयी तेज हल्ला हुल्लड़ से सरोजनी का मन जैसे गदगद हो जाता। बसंत सरोजनी के पास आकर ...मां यहां तो जैसे रात दिन का पता ही नही चल रहा है ।.. हां बेटा यही तो गांव घर की खासीयत है आस पड़ोस जैसे सब अपने ही । बाते करते करते बसंत ने कहा मां वहां नये मकान में भी तुमको वही सुख शान्ति मिलेगी कही पर धूल मीट्टी नही हर समय लाइट पंखे के नीचे ही रहोगी। नये घर की सुग सुविधाओं का खयाल आते ही सरोजनी का मन गदगद हो जाता..अच्छा है इतने दिनों बाद फिर से सब एक घर में रहेंगे..पर बसंत तेरे बाऊजी को तो इसी आंगन के कुएं के मीठे और ठंडे पानी की आदत है..अरे मां वहां भी तुम्हें इतना ही ठंडा और मीठा पानी मिलेगा बस चल चलो। सुबह सुबह ही सभी नये मकान के लिए चल देते ट्रेन की लम्बी यात्रा के बाद जब सरोजनी नये मकान में पहुंची मकान के बाहर ही सन्नाटा पसरा हुआ था बगीचे में लगे पौधे भी अकेले और उदास से लगे। सरोजनी घर के अन्दर पहुंची तो सनसनात हुआ पंखा चला कल सब लोग बैठे तो बसंत ने चहक कर कहा मां यह ड्राईम रूम है यहां देखो टीबी पंखा लगा हुआ है जब तक चाहो यहां बैठ कर टीबी देख सकती हो। इतना कहकर बसंत मीना बच्चों के साथ अपने अपने कमरे में चले गये। सरोजनी और उसके पति शोभनाथ घंटो ड्राईग रूम में बैठे रहे टी बी बेजुबानों की तरह चलती रही। मीना ड्राईग रूम में आकर खाने के लिए कहकर वापस अपने कमरे में चली गयी। खाना भी परोसने वाला कोई नही। सरोजनी को एक दिन में ही यह नया मकान काटने को दोड़ने लगा। शाम हुआ तो सरोजनी और शोभनाथ बाहर घूमने के लिए निकले पर पास पड़ोस भी जैसे सब अनजाने...सरोजनी, हमारे गांव में तो अनजान लोग को देखकर भी लोग हाल चाल पूछ लिया करते है पर यहा देखो जैसे सब अपने में ही डूबे है। रात होते होते बसंत और मीना कही बाहर चले गये और फिर सरोजनी को कह गये कि फ्रीज में खाना रखा है गर्म करके खा लेना आप लोग। शैभनाथ ने सरोजनी से कहा..देखा सरोजनी मै कहता था न कि वहां जाकर हमें अपना घर बहुत याद आने वाला है। आप ठीक कहते थे जी, हम कल ही अपने घर लौट जायेंगे। जब मीना और बसंत घर लौटे तो सरोजनी और शोभनाथ अपना सामान बांध रहे थे..अरे मां ये क्या आपने अपना सामान क्यो बांध लिया अभी तो कल ही आये है आप लोग..सरोजनी, बेटा बसंत हमें हमारे घर पहुंचा दो हमे तो हमारा वही मीट्टी का घर ही सुकून पहुंचाता है। ..घर लौटते ही राह में ही लोगों ने रूक रूक कर सरोजनी से बातें करना शुरू कर दिया। घर के आंगन में पहुंचते ही ठंडी ठंडी बयार से सरोजनी का मन जैसे सुख का अनुभव कर बैठा मीट्टी के दलान में बैठते ही शोभनाथ ने कहा...सरोजनी सच में बहुत सुख इस घर में सच यहीसुख और सुकून है यही है हमारा घर ,हमारा मीट्टी का घर।